प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय के शक्तियों और सीमाओं को लेकर दिए गए फैसले के बाद दायर पुर्नविचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 3 अक्टूबर को सुनवाई करेगा. मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय की मांग की. जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई को 3 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया है.
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सीटी रवि कुमार और उज्ज्वल भुयान की बेंच सुनवाई कर रही हैं. 2022 के फैसले में विजय मदनलाल चौधरी मामले में गिरफ्तारी, जब्ती, निर्दोष होने का अनुमान, कड़ी जमानत की शर्तो आदि से संबंधित पीएमएलए के प्रावधानों के संवैधानिक वैधता को कोर्ट ने बरकरार रखा था. कोर्ट ने यह माना था कि पीएमएलए कार्यवाही के तहत प्रवर्तन सूचना रिपोर्ट यानी ECIR की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है, क्योंकि ECIR एक आंतरिक दस्तावेज है और इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट के बराबर नही किया जा सकता है। जिसके बाद कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम द्वारा दायर समीक्षा याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
वहीं, एक अन्य याचिका जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच के पास लंबित है. जिस बेंच में जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं। यह बेंच पीएमएलए एक्ट की धारा 50 और 63 कि वैधता बको चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही हैं। इस धारा के तहत ईडी के पास गवाहों को बुलाने, उनके बयान दर्ज करवाने और गलत जानकारी देने पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की शक्ति मिली हुई है.
2002 के कानून के तहत ईडी को इतनी ताकत मिली हुई हैं और वे कहीं भी छापा मार सकती है. किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है. 2022 के पीएमएलए एक्ट को लेकर दिये गए फैसले ने 2002 के अधिनियम के तहत ईडी को दी गई व्यापक शक्तियों की पुष्टि की थी. कोर्ट ने इन शक्तियों को यह कहते हुए सही ठहराया था कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास देश की संपत्ति को अपराधियों से बचाने के लिए प्रभावी उपकरण होने चाहिए.
बता दें कि इन्हीं कानूनों के तहत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, हेमंत सोरेन, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव सहित कई अन्य के खिलाफ कार्रवाई की गई है.
– भारत एक्सप्रेस
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