Patanjali Misleading Ads Case: पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में बाबा रामदेव के वकील की ओर से बताया गया कि पतंजलि ने उत्पादों की बिक्री रोक दी है. जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि आपको स्टॉक के बारे में भी एक हलफनामा देना होगा. कोर्ट ने इसके लिए बाबा रामदेव को तीन सप्ताह का समय दिया है. साथ ही कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को अगली पेशी से छूट दे दी है.
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि लोगों की बाबा रामदेव के प्रति बहुत आस्था है, उन्हें लोगों को हल्के में नहीं लेना चाहिए. लोग वास्तव में बाबा रामदेव पर विश्वास करते हैं. जस्टिस हिमा कोहली ने भी कहा कि रामदेव और उनकी टीम का आयुर्वेद में एक बड़ा योगदान है, लेकिन यह मसला अलग है और दवा खरीदने वाले उपभोक्ताओं से जुड़ा है. इसमें लापरवाही नहीं बरती जा सकती. बाबा रामदेव ने कोर्ट से निकलते जजों को प्रणाम बोला, जस्टिस ए अमानुल्लाह ने जवाब में प्रणाम कहा.
वहीं कोर्ट ने आईएमए के अध्यक्ष डॉ. अशोकन पर कोर्ट को लेकर टिप्पणी करने पर फटकार लगाई है. जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि हमें आपसे अधिक जिम्मेदारी की भावना की उम्मीद थी. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि आप इस तरह प्रेस में कोर्ट के खिलाफ अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकते, आप इस तरह अचानक क्यों चले गए? डॉ अशोकन ने कहा कि मैं बिना शर्त कोर्ट से माफी मांगता हूं. डॉक्टर अशोकन से जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि क्या हमें ऐसे बयानों के बाद आपको माफ करना चाहिए.
जस्टिस अमानुल्लाह ने डॉक्टर आरवी अशोकन से कहा कि हम आपको संदेह का लाभ कैसे दे सकते हैं. जस्टिस कोहली ने कहा कि हम आपके हलफनामे से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं. कोर्ट ने आईएमए अध्यक्ष से कहा कि आपने भी सार्वजनिक माफी क्यों नहीं मांगी? सब कुछ काले और सफेद रंग में लिखा गया था. अगर आप वास्तव में माफी मांगना चाहते थे तो आपने संशोधन माफीनामा क्यों नहीं दायर किया?
बता दें कि आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि आईएमए अध्यक्ष डॉक्टर अशोकन के जान-बूझकर दिए गए बयान तात्कालिक कार्यवाही में सीधा हस्तक्षेप है और न्याय की प्रक्रिया में दखलंदाजी करते है. उन्होंने अशोकन के बयान को निंदनीय प्रकृति का बताया और कहा कि यह टिप्पणी जनता की नजर में इस न्यायालय की गरिमा और कानून की महिमा को कम करने का एक स्पष्ट प्रयास है. बालकृष्ण की अपनी याचिका में अशोकन के खिलाफ कानून के अनुरूप कार्रवाई की मांग की है.
आईएमए के अध्यक्ष अशोकन ने एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए कहा था कि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, कि सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए और प्राइवेट डॉक्टरों की प्रैक्टिस की आलोचना की. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है और हमें ऐसा लगता है कि उन्हें देखना चाहिए था कि उनके सामने क्या जानकारी रखी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए यह भी कहा कि प्रख्यात और सार्वजनिक हस्तियों को किसी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान जिम्मेदाराना व्यवहार करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि किसी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के अनुसार विज्ञापनदाताओं से एक स्व घोषणा पत्र हासिल किया जाए. वर्ष 1994 के इस कानून का नियम-7 एक विज्ञापन संहिता का प्रावधान करता है, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापन देश के कानूनों के अनुरूप बनाये जाने चाहिए. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालयों को इसे भ्रामक विज्ञापनों और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा की गई या प्रस्तावित कार्रवाई से अवगत कराने को भी कहा था.
कोर्ट ने कहा था कि प्रख्यात लोगों, ‘इन्फ्लुएंसर’ और सार्वजनिक हस्तियों द्वारा समर्थन किये जाने के उत्पादों का प्रचार प्रसार करने में काफी मदद मिलती है तथा विज्ञापन के दौरान किसी भी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान किसी भी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान और उसकी जिम्मेदारी लेते समय उनके लिए जिम्मेदारी के साथ काम करना अनिवार्य है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा 2022 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पतंजलि और योग गुरु रामदेव ने कोविड टीकाकरण और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों को बदनाम करने का अभियान चलाया. कोर्ट ने पतंजलि के उत्पादों के बारे में भ्रामक विज्ञापनों की आलोचना की. इन विज्ञापनों को अब निषिद्ध कर दिया गया है, लेकिन वे विभिन्न इंटरनेट चैनलों पर अब भी उपलब्ध है.
-भारत एक्सप्रेस
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