सीआरपीसी की धारा 64 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 20 मार्च को सुनवाई करेगा. दरअसल महिलाओं के साथ भेदभाव और समन में होने वाली देरी की वजह से न्याय मिलने में होने वाली देरी को आधार बनाते हुए सीआरपीसी की धारा 64 को चुनौती दी गई है.
बता दें कि सीआरपीपी की धारा 64 में प्रावधान है कि समन किए गए व्यक्ति की ओर से समन को घर की महिला द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता. प्रावधान कहता है कि, “जहां समन किए गए व्यक्ति तक तमाम कोशिशों के बाद भी पहुंचा नहीं जा सकता है, उसके साथ रहने वाले उसके परिवार के किसी बालिग पुरुष सदस्य के साथ उसके लिए डुप्लिकेट में से एक को छोड़कर समन की तामील की जा सकती है.
दरअसल Crpc की धारा 64 को चुनौती दी गई है. इस धारा के मुताबिक अदालत का समन आरोपी की ओर से उसके घर की महिला स्वीकार नहीं कर सकती. उसी व्यक्ति को स्वीकार करना होता है. याचिका में इसे महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण बताया गया है. इसी की वजह से यह धारा न्याय मिलने में देरी का भी कारण है. इस पर सुप्रीम कोर्ट विचार करे.
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गौरतलब है कि सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन भी किए गए हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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