भारत में मुसलमानों की वर्तमान स्थिति को लेकर कई तरह के बयान बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के अलावा इस्लामवादियों द्वारा दिए गए हैं. हालांकि, उनके इन बयानों में कई तरह की तर्क संगत खामियों के कारण उनकी विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है. देश में मुसलमानों पर हमले को लेकर भी गलत तरीके से प्रचार किया जाता रहा है. मुसलमानों को लेकर दिए इन बयानों के पीछे किसी तरह के ठोस सबूतों का अभाव रहता है.
अतीक अहमद की हत्या को लेकर बड़ा बयान
गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की हत्या के बाद से ही इस हत्याकांड को अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है. अतीक अहमद की हत्या का जिक्र करते हुए हाल ही में पत्रकार राणा अय्यूब ने यूनेस्को में एक विवादित टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा , “तीन हफ्ते पहले भारत में एक विधायक को कैमरे पर लाइव गोली मार दी गई थी.” वहीं इसे लेकर उनका कहना था कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर जानबूझकर हमला किया जा रहा है. ऐसे में अय्यूब के बयानों को समझना जरूरी है.
सिक्के के दोनों पहलू को दिखाना जरूरी
एक ओर जहां अय्यूब ने अतीक को विधायक कहा और सिक्के का एक ही पहलू दिखाया वहीं दूसरी तरफ उसके सबसे बड़े पक्ष को अपने बयान में अनदेखा कर दिया, जोकि उसका एक कुख्यात गैंगस्टर होना था. वहीं अतीक की हत्या के बाद मुसलमानों को लेकर की गई उनकी टिप्पणी भी इस घटना और मुसलमानों को टार्गेट किए जाने को लेकर के बीच संबंध का संकेत देती है. अय्यूब और उनकी तरह बाकियों द्वारा दिए जा रहे बयान और इस दावे को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ती दिख रही है. क्योंकि यह भारत में मुसलमानों को प्रभावित करने वाले राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता सहित कई कारकों पर आधारित है.
मुसलमानों के लिए तमाम सुविधाएं
ऐसे देश में जहां अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय अल्पसंख्यकों की समस्याओं को लेकर दिन रात अपने मिशन पर लगा हुआ है, वहीं उत्पीड़ित जातियों को आरक्षण का फायदा मिलता है, वहीं मुसलमानों के अपने निजी कानून हैं, आर्थिक रूप से पिछड़े कई छात्र विशिष्ट छात्रवृत्ति प्राप्त करते हैं, वहीं वंचितों के लिए सरकार द्वारा बनाई गईं नीतियां इनको खास लाभ पहुंचाती हैं. देश के अल्पसंख्यक सिविल सेवाओं, खेल, व्यापार, फिल्म उद्योग और रक्षा क्षेत्र में एक सफल करियर बनाते हैं. वक्फ बोर्ड से लेकर तमाम संस्थाएं जो मुसलमानों के हित के लिए बनी हैं, उन्हें देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत के मुसलमानों के पीड़ित होने के लिए अतीक की हत्या का आरोप लगाना ठीक नहीं है.
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अपराधियों की धार्मिक पहचान गलत
यह जानते हुए कि मुसलमान अतीक द्वारा सबसे अधिक सताए गए हैं. इस तरह की बातें सही नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि यूपी पुलिस के रिकॉर्ड में उसके भाई अशरफ पर दो नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के बलात्कार और अपहरण का आरोप लगाया गया है. कुख्यात गैंगस्टर और माफिया अतीक के आपराधिक रिकॉर्ड की बजाय उसकी धार्मिक पहचान पर गलत तरीके से जोर देना कहीं से भी जायज नहीं है.
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