भारत राष्ट्र समिति (BRS) के पूर्व नेता चेन्नामनेनी रमेश (Chennamaneni Ramesh) एक जर्मन नागरिक हैं और उन्होंने वेमुलावाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया. खुद को भारतीय नागरिक के रूप में पेश किया. यह फैसला तेलंगाना उच्च न्यायालय ने सोमवार को कांग्रेस के आदि श्रीनिवास द्वारा दायर एक याचिका पर सुनाया.
मीडिया खबरों के अनुसार, अदालत ने माना है कि रमेश जर्मन दूतावास से यह पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेज पेश करने में विफल रहे कि वह अब उस देश के नागरिक नहीं हैं. इसने ₹ 30 लाख का जुर्माना लगाया, जिसमें से ₹ 25 लाख श्रीनिवास को देय हैं, जिनके खिलाफ रमेश नवंबर 2023 का चुनाव हार गए थे.
एक्स पर खुशी जाहिर करते हुए एक पोस्ट में विधायक श्रीनिवास ने कहा, “पूर्व विधायक चेन्नामनेनी रमेश पर पलटवार… जर्मन नागरिक के रूप में झूठे दस्तावेजों के साथ विधायक चुने गए रमेश पर 30 लाख का जुर्माना लगाया गया.
रमेश ने इससे पहले वेमुलावाड़ा सीट चार बार जीती थी. 2009 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से और फिर 2010 से 2018 तक तीन बार, जिसमें पार्टी बदलने के बाद उपचुनाव भी शामिल है. कानून के अनुसार, गैर-भारतीय नागरिक चुनाव नहीं लड़ सकते और वोट नहीं दे सकते.
तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पार्टी BRS 2023 में कांग्रेस से विधानसभा चुनाव हार गयी थी, जो पिछले दो चुनावों से लगातार जीतती आ रही थी.
2020 में केंद्र ने तेलंगाना उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि रमेश के पास एक जर्मन पासपोर्ट है, जो 2023 तक वैध है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले ही एक आदेश जारी कर दिया था जिसमें उनके भारतीय नागरिकता को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि उन्होंने अपने आवेदन में तथ्य छिपाए थे.
गृह मंत्रालय ने कहा, “उनके (रमेश के) गलत बयानी/तथ्यों को छिपाने से भारत सरकार गुमराह हुई अगर उन्होंने खुलासा किया होता कि वे आवेदन करने से एक साल पहले भारत में नहीं रहे थे, तो इस मामले में सक्षम प्राधिकारी मंत्रालय ने नागरिकता नहीं दी होती.” इसके बाद रमेश ने गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की.
इसके बाद रमेश से हलफनामा दाखिल करने को कहा गया, जिसमें उनके जर्मन पासपोर्ट के समर्पण से संबंधित विवरण का खुलासा और इस बात का प्रमाण देने कहा गया कि उन्होंने अपनी जर्मन नागरिकता छोड़ दी है.
2013 में तत्कालीन अविभाजित आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसी कारण से उपचुनाव में उनकी जीत को रद्द कर दिया था. इसके बाद रमेश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और रोक लगाने का प्रयास किया. लेकिन जब रोक प्रभावी थी, तब उन्होंने 2014 और 2018 के चुनाव लड़े और जीते.
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-भारत एक्सप्रेस
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