Tripura Elections 2023: त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बहुमत हासिल किया है लेकिन यह पार्टी के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा. यहां लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन नहीं बल्कि दो साल पहले बनी नई पार्टी टिपरा मोथा ने एक वक्त बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी थीं. शायद यही वजह है कि आज त्रिपुरा में बीजेपी की जीत से ज्यादा टिपरा मोथा की हार के चर्चे हैं.
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बिना किसी सहयोगी दल के चुनाव लड़ने वाली और 13 सीटें जीतने वाली टिपरा मोथा ने भाजपा-इंडिजिनियस फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी और वाम-कांग्रेस गठबंधन के वोट बैंक में जबरदस्त सेंध लगाई. 2021 में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को लेकर गठित इस पार्टी का मुख्य जोर राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से जनजातीय बहुल 20 सीटों पर रहा. जनजातीय लोगों ने इस नई पार्टी पर भरोसा भी किया और नतीजा सबसे सामने है. टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 13 सीटों पर उसने जीत हासिल की. यही नहीं पार्टी ने करीब 19 प्रतिशत मत हासिल किए.
इस पार्टी के उम्मीदवार सुबोध देब बर्मा ने चरिलाम निर्वाचन क्षेत्र में उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा को 850 से अधिक मतों से हराया. भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने 33 सीटें जीतकर सत्ता तो बरकरार रखी लेकिन 2018 के मुकाबले उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ.वहीं वोटों की गिनती के दौरान कई बार बीजेपी बहुमत से दूर भी नजर आने लगी थी. हालांकि, अंत में बीजेपी गठबंधन को 33 सीटों पर जीत मिली.
दो साल पहले पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा द्वारा गठित नयी पार्टी ने वाम-कांग्रेस गठबंधन के जनजातीय मतों में भी सेंध लगाई है. इस गठबंधन को कुल 14 सीटें हासिल हुईं. 2021 में टीटीएएडीसी चुनावों में भागीदारी के साथ टिपरा मोथा का चुनावी राजनीति में प्रवेश हुआ था. इस चुनाव में 28 में से 18 सीटों पर भारी जीत के साथ उसने अपनी छाप छोड़ी थी.
2018 के विधानसभा चुनावों में आईपीएफटी की लोकप्रियता पर सवार भाजपा ने राज्य की राजनीति के इतिहास में पहली बार 10 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें जीतीं और उसकी सहयोगी आईपीएफटी ने वामपंथी दलों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई थी. उसने इस चुनाव में आठ सीटों पर परचम लहराया था.
वहीं त्रिपुरा में अपने प्रदर्शन को लेकर टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने कहा कि हम दूसरी सबसे बड़ी पार्टी हैं इसलिए हम रचनात्मक विपक्ष में बैठेंगे लेकिन सीपीएम या कांग्रेस के साथ नहीं बैठेंगे. आशारामबाड़ी सीट से चुनाव जीतने वाले टिपरा मोथा के नेता अनिमेष देबबर्मा ने दावा किया कि पार्टी ने बिना किसी सहयोगी के चुनाव लड़ा और इतिहास रचा क्योंकि इससे पहले 60 सदस्यीय विधानसभा में किसी भी क्षेत्रीय पार्टी ने इतनी सीटें नहीं जीती हैं. उन्होंने दावा किया कि अस्सी के दशक के अंत में त्रिपुरा उपजाति युवा समिति ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और आठ सीटें जीतीं जबकि आईपीएफटी ने भी 2018 के विधानसभा चुनावों में इतनी ही सीटें जीतीं.
त्रिपुरा चुनावों को लेकर उन्होंने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य था कि हम सरकार गठन में एक निर्णायक कारक बनें लेकिन भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया. हमने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया और यह पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों के लिए एक प्रेरणा होगी कि कैसे एक क्षेत्रीय पार्टी चुनाव लड़ कर अच्छी संख्या में सीटें हासिल कर सकती है.’’
-भारत एक्सप्रेस
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