UP Nikay Chunav 2023: जहां एक ओर अभी तक उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव-2023 को लेकर आरक्षण के नोटिफिकेशन का इंतजार किया जा रहा है औऱ कयास लगाया जा रहा है कि इस आरक्षण के बाद किसका अधिक फायदा होगा और किसका नहीं, तो इसी बीच उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय ने अपनी गणना से एक-एक पत्ते खोल कर रख दिए हैं और ये साफ कर दिया है कि आखिर इसमें सबसे ज्यादा फायदा किसे होने वाला है. इसे में उनके विश्लेषण के बाद विपक्ष के सिर में तेज दर्ज जरूर हो सकता है. बता दें कि 761 नगर निकाय में सीटों पर आरक्षण की घोषणा होनी है.
वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय बताते हैं कि, यूपी में जब से नगर निकाय चुनाव में आरक्षण शुरू हुए हैं, तब से भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) का दी दबदबा रहा है. वह बताते हैं कि तीन तरह के स्थानीय निकाय के अंतर्गत चुनाव कराए जाते हैं, एक नगर निगम, दूसरा नगर पालिका परिषद और तीसरा नगर पंचायत. नगर निगम के अंतर्गत शहर और मेट्रो सिटी आते हैं, इसी के साथ कम विकसित शहरों को भी इसी में जोड़ा जाता है, जैसे मेरठ, अलीगढ़ आदि. नगर निगम में आरक्षण की जबसे शुरूआत हुई है, भाजपा का ही दबदबा रहा है. भाजपा ने ही हमेशा ही सीटें जीती है. पहला आरक्षण 1993-94-95 में हुआ था. तब से भाजपा का ही दबदबा रहा है.
नगर निगम में भाजपा का वर्चस्व रहा है. जब पार्षदों में सपा व बसपा के लोग जीतते रहे हैं तो फिर भी मेयर हमेशा भाजपा का ही रहा है. उन्होंने बताया कि यूपी का स्थानीय लॉ है, जिसमें नियम है कि मेयर सीधे इलेक्ट होता है. उसके खिलाफ कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. मेयर सीधे जनता से चुना जाता है. वो बात अलग है कि उसे बजट पास कराने में दिक्कतें आती है. अगर बात करें नगर पालिका परिषद की तो, यूपी में नगर पालिका अध्यक्ष चुना जाता है, इसमें भी भाजपा का ही वर्चस्व रहा है और सपा दूसरे नम्बर पर रही है. अलीगढ़ व मेरठ में 2017 में सपा थी और हर जगह भाजपा थी. 2017 में भी ज्यादा सीटें भाजपा को ही मिली थी.
उन्होंने नगर पंचाय़त के चुनावों को लेकर बताया कि 20 हजार से ऊपर की जनसंख्या वाले क्षेत्रों में नगर पंचायत का चुनाव होता है. हालांकि नगर पंचाय़त के चुनावों में एक समय सपा और बसपा का दबदबा रहा है, लेकिन 2017 के बाद से भाजपा ने इसमें भी बाजी मारनी शुरू कर दी है. इसका सीधा सम्बंध 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से है. क्योंकि 2014 के बाद मोदी सरकार बनने के बाद भाजपा की ओर 54 प्रतिशत ओबीसी का झुकाव हो गया था. है इसमें मुस्लिम भी शामिल हो जाते हैं. वही मुस्लिम जिनको पसमांदा कहते हैं. हालांकि पिछड़ो में यादव भाजपा को वोट नहीं करता, लेकिन लोहार, बढ़ई, कुम्हार, कुर्मी, जाट, कुशवाहा सहित तमाम पिछड़ी जातियों का वोट भाजपा में ही जाता है.
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अर्थात जो मोस्ट बैकवर्ड कास्ट है वही भाजपा के लिए सबसे ज्यादा पावर बूस्टर है. 2017 में भाजपा को जो जीत मिली, वो इसीलिए मिली क्योंकि अति पिछड़ी जातियों के साथ ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, पंजाबी सहित सभी ने भाजपा को वोट किया. वैसे भी शहरों में तो भाजपा का ही वर्चस्व है. चूंकि शहर में बाल्मिकी, खटिक भी हैं, जो कि पहले बसपा में थे लेकिन बाद में भाजपा में चले गए. इसीलिए प्रदेश के कई जिलों में भाजपा का ही वर्चस्व रहा है. अगर पिछले चुनावों को देखा जाए तो विपक्ष के सामने और भी चैलेंज साबित होने वाला है इस बार का नगर निकाय चुनाव. हां विपक्ष सत्ता पक्ष की इकोनॉमी सहित महंगाई आदि को मुद्दा बनाकर आगे बढ़ सकती है लेकिन विपक्ष 2017 में उस वक्त भी फेल हुआ था जब जीएसटी और नोटबंदी के बाद भी भाजपा ने परचम लहराया और सत्ता में फिर से काबिज हुई. हालांकि नगर निकाय चुनाव ही लोकसभा की नींव तैयार करेगा. फिलहाल अभी सरकार को निकाय चुनाव से जुड़े अधिनियम में संशोधन करना है. इसी के बाद से आरक्षण की स्थिति साफ हो सकेगी.
-भारत एक्सप्रेस
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