UP Rajya Sabha Election: जैसा कि पहले से ही भाजपा दावा कर रही थी कि राज्यसभा चुनाव में उसके सभी आठो प्रत्याशी जीतेंगे, वैसा ही हुआ और अब बीजेपी खेमें में उत्साह का माहौल है तो वहीं सपा के तीन में से दो ही प्रत्याशी राज्यसभा जा सके हैं. दूसरी ओर सपा के बागियों का चेहरा भी खुल कर सामने आ गया है. तो वहीं इस पूरे खेल को लेकर कहा जा रहा है कि, समाजवादियों की नियत डिनर के दौरान ही डोल गई थी. इसी के साथ ही यूपी की राजनीति में उस बंगले का भी जिक्र तेजी से हो रहा है, जहां पर सभी चालें सेट की गईं. कहा जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में सपा के तीसरे प्रत्याशी की हार उसके खराब रणकौशल और सत्ताधारी दल की आकर्षण चालों की वजह से हुई है.
बता दें कि कल यानी मंगलवार को यूपी में 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ था, जिसमें भाजपा ने 8 वें प्रत्याशी को उतार कर इस चुनाव को रोचक कर दिया था तो वहीं सपा की ओर से तीन प्रत्याशी मैदान में थे. भाजपा के पास 7 प्रत्याशियों के लिए वोट थे लेकिन 8वें की जीत के लिए भाजपा ने हर ऐड़ी-चोटी की जोर लगाई और शाम होते-होते अपने 8वें प्रत्याशी की भी जीत तय कर ली. तो दूसरी ओर एक-एक कर सपा की अंतर्कलह भी जगजाहिर हो गई. विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडे समेत उसके सात विधायकों ने भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया. तो वहीं अमेठी से विधायक महाराजी प्रजापति वोट देने नहीं आईं. दरअसल सपा ने जब अपने प्रत्याशी तय किए, तभी से सपा में विरोध के स्वर मुखर होने लगे थे. नतीजतन सपा के तीसरे प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा.
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बता दें कि राज्यसभा चुनाव से एक दिन पहले भाजपा और सपा की डिनर पार्टी थी. सपा की डिनर पार्टी से आठ विधायकों के गायब रहने के बाद से ही क्रॉस वोटिंग के आसार प्रबल हो गए थे. तो वहीं विरोध का बिगुल सबसे पहले ऊंचाहार से पार्टी विधायक मनोज पांडे ने मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा देकर फूंका. मंगलवार को वोट डालने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसी के बाद एक-एक कर 8 विधायकों ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया. तो वहीं चुनावी राजनीति के माहिर माने जाने वाले सपा महासचिव शिवपाल यादव को पोलिंग एजेंट बनाए जाने पर भी विधायकों की फूट को रोका नहीं जा सका.
बता दें कि राज्यसभा के लिए सपा नेतृत्व ने पीडीए के समीकरणों के विपरीत जाकर कायस्थ जाति से ही दो प्रत्याशी मैदान में उतार दिए. इसी के बाद से विरोध के स्वर मुखर हो गए थे. इसको लेकर पल्लवी पटेल ने पहले ही विरोध दर्ज करा दिया था और इसके बाद पार्टी महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी ने इस्तीफा दे दिया था. इसी के साथ ही अखिलेश पर पीडीए की उपेक्षा करने का आरोप लगाया था. तो वहीं पल्लवी अखिलेश से खफा जरूर हुईं लेकिन अपना वादा निभाया और सपा प्रत्याशी को ही वोट दिया. प्रत्याशियों के चयन के फैसले का विरोध करने वाले सपा नेताओं ने कहा कि, सपा ने उस जाति से दो प्रत्याशी दिए, जो वर्षों से मूलतः भाजपा का वोट बैंक है. इसी के साथ ही सपा विधायक शहजिल इस्लाम का वोट रद्द होने को भी पार्टी की खराब रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. सपा नेताओं का कहना है कि, शहजिल के साथ मजबूती से खड़े होने का भरोसा दिलाकर कम से कम इस नुकसान से तो बचा जा ही सकता था. तो वहीं सपा के जिम्मेदार नेताओं का यहां तक कहना है कि पार्टी के तीसरे प्रत्याशी आलोक रंजन ने अपनी ओर से किसी भी विधायक से संपर्क तक नहीं किया थी.
बता दें कि राज्यसभा चुनाव के दौरान पांच सामान्य और दो पीडीए विधायकों ने पाला बदला है. सपा के सात विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला है, जिनमें मनोज पांडे, राकेश पांडे, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह व विनोद चतुर्वेदी का नाम शामिल है जो कि सामान्य जाति से आते हैं तो वहीं पूजा पाल व आशुतोष मौर्य क्रमशः पिछड़ी व दलित जाति से आते हैं तो वहीं विधायक व पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी प्रजापति भी पिछड़ी जाति से ही आती हैं. फिलहाल महाराजी वोट डालने के लिए पहुंची ही नहीं थीं.
बता दें कि राज्यसभा चुनाव से पहले जो भी पूरा खेल हुआ है, उसमें एक बंगले को लेकर चर्चा जोरो पर है. कहा जा रहा है कि, जब अखिलेश डिनर पार्टी कर रहे थे, उस वक्त भाजपा अपने सीटों के नम्बर जुटाने में लगी थी. माना जा रहा है कि सपा में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने दया शंकर सिंह के बंगले को अपना अड्डा बनाया. सूत्रों की मानें तो रात भर सपा के विधायक बीजेपी नेता के बंगले पर आते-जाते रहे और सभी डील इसी बंगले पर हुई. सूत्रों की मानें तो भाजपा के आठवें प्रत्याशी संजय सेठ भी राज्यसभा चुनाव से पहले इसी बंगले पर डेरा डाले रहे.
-भारत एक्सप्रेस
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