साल 2011 में भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष का पदभार संभालने से काफी पहले बृजभूषण शरण सिंह को अपनी ताबड़तोड़ रणनीति बनाने के लिए जाना जाता था. अयोध्या आंदोलन में वह एक प्रमुख खिलाड़ी रहे हैं. उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए वह ‘वन मैन आर्मी’ (एक व्यक्ति की सेना) थे और राज्य में राजनीतिक मंच पर पार्टी की कम उपस्थिति दिखती थी.
सन् 1957 में गोंडा में जन्मे बृजभूषण शरण सिंह की राजनीति में दिलचस्पी 1970 के दशक में एक कॉलेज छात्र के रूप में शुरू हुई. उन्होंने प्रतिशोध के साथ राजनीति में प्रवेश किया जब भाजपा के वरिष्ठ नेता एल.के आडवाणी अयोध्या आंदोलन के दौरान गोंडा आए थे. बृजभूषण शरण सिंह ने आडवाणी के रथ को ‘ड्राइव’ करने की पेशकश की और इसने उन्हें भाजपा के भीतर तुरंत प्रसिद्धि दिलाई.
उन्होंने अपना पहला चुनाव 1991 में गोंडा से राजा आनंद सिंह को हराकर जीता था. अगले वर्ष, उन्हें बाबरी विध्वंस मामले में एक अभियुक्त के रूप में नामित किया गया, जिसने उनकी ‘हिंदू समर्थक छवि’ को मजबूत किया. हालांकि, उन्हें 2020 में अन्य लोगों के साथ बरी कर दिया गया था. बृजभूषण शरण सिंह गोंडा, बलरामपुर और कैसरगंज से छह बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं.
अपनी राजनीतिक कुशाग्रता से अधिक बृजभूषण शरण सिंह क्षेत्र के माफिया नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं. एक समय सिंह पर तीन दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे.
वर्ष 1996 में उन पर अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथियों को पनाह देने का आरोप लगा था. उन पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (टाडा) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और उन्हें जेल भेजा गया था.
जेल में रहने के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कथित तौर पर उन्हें पत्र लिखा था, जिसमें उन्हें साहस रखने और ‘सावरकरजी को याद करने के लिए कहा गया था, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी’. बाद में मुख्य रूप से सबूतों की कमी के कारण उन्हें मामले में बरी कर दिया गया था.
साल 1996 में जब वह जेल में थे, उस समय भाजपा ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को लोकसभा का टिकट दिया और वह बड़े अंतर से जीतीं. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने हमेशा बृजभूषण शरण सिंह को पर्याप्त राजनीतिक संरक्षण दिया है, मुख्यत: पूर्वी यूपी और राजपूतों के बीच उनके दबदबे के कारण. पार्टी नेतृत्व जानता है कि अगर उसने बृजभूषण शरण को बाहर का दरवाजा दिखाया तो पार्टी को कई सीटों का नुकसान होगा. सदी के अंत के बाद ही सिंह का दबदबा और उनकी धन शक्ति बढ़ी है.
सबसे खूंखार अपराधी भी कैमरे के सामने अपना अपराध स्वीकार नहीं करता, मगर उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने एक टीवी चैनल को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि उन्होंने एक व्यक्ति की हत्या की थी.
उनका यह बयान समाजवादी पार्टी के नेता विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह के भाई रवींद्र सिंह की हत्या के संबंध में था, जो कभी उत्तर प्रदेश के गोंडा और बहराइच पर हावी थे. बृजभूषण शरण सिंह ने साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने उस व्यक्ति को रायफल से मार दिया, जिसने रवींद्र सिंह की हत्या की थी. उन्होंने कहा, “मैंने रवींद्र को गोली मारने वाले व्यक्ति को मार डाला.”
बृजभूषण सिंह और पंडित सिंह ने लगभग एक ही समय में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. उनके राजनीतिक प्रभाव का क्षेत्र भी वही था. रवींद्र सिंह की मौत के बाद इनकी दुश्मनी और बढ़ गई. पंडित सिंह का मानना था कि उनके भाई को इसलिए मारा गया, क्योंकि वह बृजभूषण सिंह के साथ थे. पंडित सिंह की 2021 में कोविड से मौत हो गई. इससे पहले, 2009 में बृजभूषण सिंह कुछ समय के लिए भाजपा से अलग हो गए थे और सपा में शामिल हो गए थे, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत से पहले वे भाजपा में वापस आ गए.
भाजपा में जैसे-जैसे उनका कद बढ़ा, उनका ‘कारोबार’ भी फलता-फूलता गया. वह लगभग 50 स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं और शराब के ठेकों, कोयले के कारोबार और रियल एस्टेट में दबंगई के अलावा खनन क्षेत्र में भी उनकी दिलचस्पी है. बृजभूषण शरण सिंह हर साल अपने जन्मदिन पर छात्रों और समर्थकों को मोटरसाइकिल, स्कूटर और पैसे उपहार में देने के लिए जाने जाते हैं.
साल 2011 में भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति ने उनका कद और बढ़ा दिया. दिसंबर 2021 में उन्होंने रांची में एक कार्यक्रम के दौरान एक पहलवान को मंच पर थप्पड़ मारा था. तथ्य यह है कि इस मामले में उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस घटना ने उन्हें और भी साहसी बना दिया.
उनके पूर्व समर्थकों में से एक ने कहा, “उनका मानना है कि वह अजेय हैं और अपनी पार्टी के नेतृत्व से भी नहीं डरते हैं. कोई भी उनकी आलोचना करने की हिम्मत नहीं कर सकता और यहां तक कि पत्रकार भी उनसे सुरक्षित दूरी बनाए रखते हैं. पुलिस उनके सामने झुकती है. उनके प्रभाव को केवल विश्वास के रूप में देखा जा सकता है.”
बृजभूषण शरण सिंह हाल ही में उस समय विवादों में घिर गए, जब उन्होंने बाबा रामदेव पर निशाना साधा और उन्हें ‘मिलावटों का राजा’ कहा. उन्होंने भाजपा नेतृत्व के साथ योगगुरु की निकटता के बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी उन पर निशाना साधा था.
उन्होंने योगी आदित्यनाथ सरकार की भी आलोचना की और नौकरशाही को निर्वाचित प्रतिनिधियों के ‘पैर छूने’ के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था. उन्होंने बाढ़ के लिए तैयारियों में राज्य सरकार की कमी की भी आलोचना की थी. इसकी वजह से अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक वास्तव में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की कमी से चकित हैं, जो नियमित रूप से माफिया से निपटने के लिए जाने जाते हैं.
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एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “कोई यह नहीं समझ सकता कि योगी आदित्यनाथ ने बृजभूषण सिंह की गतिविधियों पर आंखें क्यों मूंद लीं. दरअसल, उन पर ऊपर से दबाव है, जो मुख्यमंत्री को अपना बुलडोजर सिंह की जागीर की ओर मोड़ने से रोक रहा है.” यह कहानी बृजभूषण शरण सिंह के अपनी ही पार्टी के भीतर प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताती है.
-भारत एक्सप्रेस
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