1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में एक अर्धसैनिक बल थे. इनका गठन पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया था और इसमें मुख्य रूप से स्थानीय सहयोगी शामिल थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया था.
बांग्लादेश के चटगाँव विश्वविद्यालय में बंगबंधु अध्यक्ष डॉ. मुंतसिर मामून ने एक समाचार एजेसी को बताया कि रजाकारों की उत्पत्ति स्वतंत्रता के बाद के भारत में हैदराबाद की तत्कालीन रियासत से जुड़ी हुई है. वे एक अर्धसैनिक बल थे, जिसका इस्तेमाल हैदराबाद के नवाब ने 1947 के बाद भारत के साथ विलय का विरोध करने के लिए किया था.ऑपरेशन पोलो में भारत द्वारा रजाकारों को पराजित करने के बाद, इसके नेता काज़िम रिज़वी पाकिस्तान चले गए.
पूर्वी पाकिस्तान के खुलना में रजाकारों का पहला समूह बना
मई 1971 में, जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ सदस्य मौलाना अबुल कलाम मुहम्मद यूसुफ ने पूर्वी पाकिस्तान के खुलना में रजाकारों का पहला समूह बनाया.सशस्त्र रजाकारों में प्रवासी लोग और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित गरीब लोग शामिल थे, जिन्होंने युद्ध के दौरान स्वतंत्रता समर्थक स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने और नागरिकों को आतंकित करने के पाकिस्तानी सेना के अभियान में मदद की. रजाकार,अन्य मिलिशिया समूहों के साथ मिलकर, बांग्लादेश की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले बंगाली नागरिकों के विरुद्ध सामूहिक हत्याओं, बलात्कारों और अन्य मानवाधिकारों के हनन सहित अत्याचारों में संलिप्त थे. आधुनिक बांग्लादेश में, अपमान और अवमानना का सबसे बुरा रूप ‘रजाकार’ कहलाना है.
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संघर्ष के दौरान युद्ध अपराधों के आरोपियों पर मुकदमा चला
2010 में, हसीना सरकार ने 1971 के संघर्ष के दौरान युद्ध अपराधों के आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया. यूसुफ को 2013 में गिरफ़्तार किया गया था और उस पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराध का आरोप लगाया गया था. एक साल बाद हिरासत में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई. 2019 में, उनकी सरकार ने 10,789 रजाकारों की एक सूची प्रकाशित की, जिन्होंने 1971 में देश के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग किया था.
-भारत एक्सप्रेस
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