सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (22 जुलाई) को उत्तर प्रदेश (UP Govt) और उत्तराखंड सरकारों (Uttarakhand Govt) के उस आदेश के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) मार्ग पर स्थित होटल, रेस्टोरेंट या खाने-पीने की दुकानों को अपने मालिकों (Eatery Owners) और उनके द्वारा नियुक्त कर्मचारियों के नाम का खुलासा करने को कहा गया था.
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने कहा कि दुकान मालिक यह डिस्प्ले कर सकते हैं कि उनकी दुकान पर किस प्रकार का भोजन परोसा जाता है, लेकिन उन्हें अपना नाम, जाति या अपने कर्मचारियों का नाम डिस्प्ले करने की जरूरत नहीं है.
कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित दुकानदारों को अपने नाम लिखने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तराखंड सरकार और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर 26 जुलाई तक जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट इसी तारीख को अगली सुनवाई करेगा.
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मैं प्रेस रिलीज से पढ़ रहा हूं. इसमें लिखा हुआ है कि अतीत में कांवड़ यात्रियों को गलत चीजें खिला दी गईं, इसलिए विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य किया जा रहा है. आप शाकाहारी, शुद्ध शाकाहारी, जैन आहार लिख सकते हैं, लेकिन विक्रेता का नाम लिखना क्यों जरूरी है?
जज ने कहा कि इसमें तो स्वैच्छिक लिखा है. इस पर दूसरी याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह स्वैच्छिक नहीं है. वकील सीयू सिंह ने कहा कि पुलिस को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. हरिद्वार पुलिस का आदेश देखिए कठोर कार्रवाई की बात कही गई है. यह हजारों किलोमीटर का रास्ता है. लोगों की आजीविका को प्रभावित की जा रही है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि यह विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत को तरह है. वही महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इसमें विक्रेताओं को बड़े बोर्ड की जरूरत है, जिसमें सारी जानकारी साझा करनी होगी. अगर शुद्ध शाकाहारी होता तो बात समझ आती.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक आदेश पास किया है? सिंघवी ने कहा सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू रही है. पुलिस कमिश्नर ऐसे निर्देश जारी कर रहे है. कांवड़ यात्रा तो सदियों से चली आ रही है. पहले इस तरफ की बात नहीं थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ जाए. तीन आयाम हैं- सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता और तीनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. यह बात जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कही, जब सिंघवी ने कहा कि ये पहचान का बहिष्कार है और आर्थिक बहिष्कार है.
सिंघवी ने कहा कि पहले मेरठ पुलिस, फिर मुजफ्फरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कांवड़िये भी यह उम्मीद करते हैं कि खाना किसी खास वर्ग के मालिक द्वारा पकाया जाए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांवड़ियों क्या यह सोचते हैं कि उन्हें खाना किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले?
सिंघवी ने कहा कि कांवड़िये पहली बार यात्रा तो नहीं कर रहे हैं, पहले से करते आए हैं. जस्टिस SVN भट्टी ने व्यक्तिगत अनुभव का हवाला देते हुए कहा- मैं एक मुस्लिम होटल में गया था. इसमें सेफ्टी, स्टैंडर्ड और हाइजीन के मानक अंतराष्ट्रीय स्तर के थे. वहां साफ-सफाई थी, इसलिए मैं वहां गया था. ये पूरी तरह से आपकी पसंद का मामला है.
सिंघवी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम में भी केवल दो शर्तें हैं, जिसमें केवल कैलोरी और शाकाहारी या मांसाहारी भोजन को प्रदर्शित करना होगा. जस्टिस भट्टी ने कहा कि लाइसेंस भी तो प्रदर्शित करना होगा. जस्टिस SVN भट्टी ने कहा कि मेरा भी अपना अनुभव है. केरल में एक शाकाहारी होटल था, जो हिंदू का था, दूसरा मुस्लिम का था. मैं मुस्लिम वाले शाकाहारी होटल में जाता था, क्योंकि उसका मालिक दुबई से आया था और वह साफ-सफाई के मामले में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड फॉलो करता था.
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ये याचिकाएं NGO ‘एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’, पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक आकार पटेल की ओर से दायर की गई हैं. महुआ मोइत्रा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के फैसले को चुनौती दी है.
मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि तीर्थ यात्रियों के खान-पान संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लक्ष्य के साथ जारी किया गया आदेश पूरी तरह से गलत है, मनमाना है. सरकार का ये आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए समाज के सबसे कमजोर और हाशिये पर पड़े वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है.
महुआ के अलावा प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक आकार पटेल ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है. दोनों ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य द्वारा जारी आदेश अनुच्छेद 14, 15 और 17 के तहत अधिकारों को प्रभावित करता है. यह मुस्लिम लोगों के अधिकारों को भी प्रभावित करता है, जो अनुच्छेद 19(1)G का उल्लंघन है.
इस आदेश से उनकी रोजीरोटी पर प्रभाव पड़ेगा. इसके साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि यह आदेश अस्पृश्यता की प्रथा का समर्थन करता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत स्पष्ट रूप से किसी भी रूप में वर्जित है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 19 जुलाई को आदेश दिया था कि जितने भी दुकानदार कांवड़ यात्रा मार्ग पर हैं, खासकर खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ बेचने वाले, उन्हें कांवड़ यात्रा के दौरान दुकान मालिकों के नाम डिस्प्ले करना होगा. यूपी सरकार ने कहा था कि यह फैसला कानून और व्यवस्था के हित में लिया गया है.
दरअसल उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर प्रशासन ने एक आदेश पारित किया था, जिसके अनुसार कांवड़ यात्रा के रूट पर पड़ने वाली सभी दुकानों और होटलों के लिए नेमप्लेट लगाना और दुकानदारों का नाम बताना जरूरी था. इसे लेकर विपक्ष ने खूब विरोध किया था. विपक्ष की आवाज को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने यह व्यवस्था पूरे प्रदेश में लागू कर दी थी.
इसके बाद उत्तराखंड में भी ऐसे ही नियम लागू किए गए. हरिद्वार एसपी ने जानकारी देते हुए कहा था कि कांवड़ यात्रा के रूट पर स्थित सभी दुकानों को मालिक का नाम और मोबाइल नंबर लिखना अनिवार्य होगा. इसी तरह की व्यवस्था मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी लागू कर दी गई. उज्जैन मेयर ने बताया था कि इन नियमों का सख्ती से पालन कराया जाएगा. मेयर का कहना है कि इस नियम का उद्देश्य मुस्लिमों को टारगेट करना नहीं है.
-भारत एक्सप्रेस
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