भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का झारखंड के धनबाद जिले से जुड़ा एक किस्सा लोगों में काफी प्रचलित रहा है. कहा जाता है कि जवाहर लाल नेहरू की कमला कौल नेहरू के अलावा एक और पत्नी थी, जिसे आदिवासी पत्नी के तौर पर लोग जानते थे, हालांकि इस आदिवासी महिला के साथ नेहरू ने शादी भले ही नहीं की थी, लेकिन एक घटना के चलते उस महिला का नाम जवाहर लाल नेहरू के साथ जुड़ गया था.
दरअसल, ये पूरी घटना 6 दिसंबर 1959 को घटित हुई थी, जिसने एक आदिवासी लड़की की जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था. इस घटना के बाद 16 साल की इस लड़की का उसके समाज ने बहिष्कार कर दिया. जिसका दंश वो पूरी जिंदगी झेलती रही. उस लड़की का नाम बुधनी मंझियाईन था.
6 दिसंबर 1959 को धनबाद जिले में डीवीसी (दामोदर वैली कॉरपोरेशन) की ओर से निर्मित पंचेत डैम और हाईडल पावर प्लांट का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आने वाले थे. जिसके लिए तय किया गया कि संथाली आदिवासी समाज की बुधनी मंझियाईन पीएम नेहरू का स्वागत करेंगी.
डैम के निर्माण में बुधनी भी मजदूरी कर रही थीं. जब पीएम नेहरू उद्घाटन के लिए पहुंचे तो बुधनी ने उन्हें माला पहनाकर उनका स्वागत किया. जिसके बाद सम्मान के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने अपने गले का माला उतारकर वापस बुधनी के गले में डाल दिया और बुधनी के हाथों हाईडल पावर प्लांट का बटन दबाकर उद्घाटन भी करवाया.
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कार्यक्रम खत्म होने के बाद संथाल आदिवासी समाज ने बुधनी मंझियाईन का विरोध शुरू कर दिया. आदिवासी समाज ने एक पंचायत बुलाई और बुधनी का समाज से बहिष्कार करने का फरमान सुनाया गया. कहा तो ये भी जाता है कि डीवीसी पर दबाव बनाकर उसे नौकरी से भी निकलवा दिया गया.
दरअसल, संथाल आदिवासी समाज में किसी भी लड़का या लड़की एक-दूसरे को माला नहीं पहना सकते थे, क्योंकि अगर ऐसा किया जाता था तो इसे विवाह माना जाता था. यही वजह थी कि बुधनी के गले में पंडित जवाहर लाल नेहरू का माला पहनाने की घटना ने एक अलग ही मोड़ ले लिया. अगले दिन जहां एक तरफ देशभर के अखबारों में पीएम नेहरू के साथ बुधनी की उद्घाटन करते हुए फोटो छपी तो दूसरी ओर धनबाद में संथाल आदिवासी समुदाय ने बुधनी का बहिष्कार कर दिया.
आदिवासी समाज की ओर से बुलाई गई पंचायत में इस बात का ऐलान कर दिया गया कि बुधनी मंझियाईन की पीएम नेहरू के साथ शादी हो चुकी है. अब से वह पूरी जिंदगी जवाहर लाल नेहरू की पत्नी मानी जाएगी. हालांकि नेहरू का संथाल आदिवासी समाज से कोई रिश्ता नहीं है, इसलिए बुधनी के लिए भी उनके समाज और घर-परिवार में कोई जगह नहीं है. ऐसा फैसला दिया गया.
बुधनी को डीवीसी में श्रमिक के तौर पर नौकरी मिली थी, लेकिन, 1962 में उसे अज्ञात वजहों से नौकरी से निकाल दिया गया. कहते हैं कि आदिवासी समाज के आंदोलन और विरोध की वजह से डीवीसी ने उसे हटा दिया था. इसके बाद वह काम की तलाश में बंगाल के पुरुलिया जिले के सालतोड़ गई तो वहां उसकी मुलाकात सुधीर दत्ता नामक शख्स से हई. सुधीर उन्हें अपने घर ले गए, जहां दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे. हालांकि, दोनों की औपचारिक तौर पर शादी नहीं हुई. दत्ता से बुधनी को एक बेटी भी हुई. बरसों बाद भी संथाल समुदाय ने बुधनी और उसके परिवार का बहिष्कार वापस नहीं लिया. सुधीर और बुधनी की बेटी का नाम रत्ना है. उनकी शादी हो चुकी है. बुधनी मंझियाईन का 17 नवंबर 2023 को 80 साल की उम्र में निधन हो गया था.
-भारत एक्सप्रेस
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