ब्रिटिश राज्य से आजाद कराने में भारत माता की कई संतानों ने अहम योगदान दिया. उस वक्त महिलाएं ज्यादातर घर में दुबकी रहती थीं या ड्योढ़ी से बाहर कदम कम ही रखती थीं. जिन्होंने हिम्मत दिखाई वो रानी लक्ष्मी बाई, सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गांधी कहलाईं. इन वीर सेनानियों ने कइयों को प्रेरित भी किया. इनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने वालों में से एक थीं नगेन्द्र बाला. ये नाम अपने आप में ही त्याग, बलिदान और देश के प्रति जुनून की गाथा है.
13 सितंबर 1926 को राजस्थान के कोटा में पैदा हुईं नगेंद्र बाला ने देश की आजादी की लड़ाई में तो बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन जब भारत को आजादी मिली तो उनका नाम भारत के इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया. वे आजादी के बाद देश में जिला प्रमुख बनने वाली पहली महिला थीं.
दरअसल, भारत की आजादी के 12 साल बाद यानी 1959 में पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई. नगेंद्र बाला 1960 में पहली बार कोटा जिला की प्रमुख बनीं. यही नहीं, वे दो बार विधायक के पद पर भी रहीं. 1962 से 1967 तक छबड़ा-शाहाबाद और 1972 से लेकर 1977 तक दीगोद से विधायक भी चुनी गईं. इसके अलावा वे 1982 से 1988 तक ‘समाज कल्याण बोर्ड’ की अध्यक्ष रहीं. साथ ही वे ‘राज्य महिला आयोग’ की सदस्य भी रहीं.
ब्रिटिश भारत में पैदा हुईं नगेंद्र बाला का परिवार क्रांतिकारी था. इसलिए उन्होंने 1941 से 1945 तक किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाई. महिलाओं में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया और महिला कल्याण कार्यों के हित में काम भी किए. विनोबा भावे के साथ पदयात्रा में शामिल होने के बाद नगेंद्र बाला ने कोटा में ‘करणी नगर विकास समिति’ की स्थापना की थी.
उन्होंने 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया. बताया जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन के बाद वे दिल्ली से अस्थि कलश लेकर कोटा आई थीं और उनकी अस्थियों को उन्होंने चंबल नदी में विसर्जित किया. नगेंद्र बाला का 84 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने सितंबर 2010 में अंतिम सांस ली.
-भारत एक्सप्रेस
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