इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) को लेकर उम्मीद जताई जा रही है की भारत इसमें शामिल होने को लेकर जल्द ही फैसला ले सकता है. हालांकि भारत ने पिछले साल सितंबर में IPEF के व्यापार स्तंभ से जुड़ी वार्ताओं से हाथ खींच लिया था.
बता दें कि तब श्रम, पर्यावरण, डिजिटल व्यापार और सार्वजनिक खरीद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर व्यापक सहमति नहीं बन पाई थी. परिणामस्वरूप, भारत ने अंतिम रूपरेखा की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया और इस वार्ता में एक ‘पर्यवेक्षक’ बनना चुना.
जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के व्यापार प्रतिनिधि जो कि अन्य देशों के साथ अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वार्ता के समन्वय के लिए जिम्मेदार हैं ने इस साल की शुरुआत में 13 अन्य आईपीईएफ भागीदारों के साथ व्यापार स्तंभ की बातचीत को साझा किया. एक पर्यवेक्षक होने के नाते, भारत तक इनकी पहुंच सीमित है.
क्या भारत होगा IPEF में शामिल ?
उम्मीद जताई जा रही है कि भारत को अगर इसमें शामिल करने के लिए पेशकश की जाएगी तो इस बात की संभावना है कि वह शामिल हो सकता है. वाणिज्य विभाग जल्द ही इस मामले पर अंतिम फैसला लेगा, जिसमें इस पर भारत के रुख के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय से मंजूरी लेना भी शामिल होगा.
सिंगापुर और डेट्रायट में IPEF की मंत्रिस्तरीय बैठकों के दौरान, स्तंभ के कुछ पहलुओं पर अधिक स्पष्टता प्राप्त करने के लिए, भारत ने अमेरिका सहित अन्य सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी कीं.
चीन के प्रभाव को कम करने की कोशिश
एक साल पहले संयुक्त रूप से शुरू किए गए आईपीईएफ को दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक आर्थिक पहल के रूप में देखा जाता है. अमेरिका और IPEF के 13 अन्य सदस्य ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, फिजी, इंडोनेशिया, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं. IPEF के चार स्तंभ हैं: आर्थिक पहल के तहत व्यापार, आपूर्ति-श्रृंखला लचीलापन, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था (कर और भ्रष्टाचार-विरोधी). भारत और मलेशिया को छोड़कर बाकी देश चारों स्तंभों में शामिल हो गए हैं. भारत IPEF के चार स्तंभों में से तीन में शामिल हो गया है, जबकि व्यापार स्तंभ में एक पर्यवेक्षक बना हुआ है.
वहीं मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने कहा कि डिजिटल व्यापार जैसे कुछ संवेदनशील क्षेत्रों या उच्च टैरिफ के कारण भारत व्यापार स्तंभ में शामिल नहीं हो सकता है. वहीं उनका यह भी कहना है कि “हालांकि, बाद में स्तंभ में शामिल होने से हमें नुकसान हो सकता है और हम वार्ता में भाग लेने के दायरे से बाहर हो सकते हैं. इसके अलावा, अगर हम व्यापार स्तंभ में शामिल नहीं होते हैं, तो हम इसे द्विपक्षीय समझौते करने के लिए अमेरिका जैसे प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ सौदेबाजी के उपकरण के रूप में उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं.
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पीएम मोदी से IPEF में शामिल होने का आग्रह
प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी मुखर्जी ने आगे बताया कि चूंकि व्यापार और आपूर्ति-श्रृंखला स्तंभ के बीच तालमेल है और चूंकि वियतनाम और थाईलैंड जैसे भारत के प्रतिस्पर्धी दोनों का हिस्सा हैं, इसलिए उन्हें भारत के मुकाबले फायदा हो सकता है. वैकल्पिक रूप से, पिछले महीने, एक नागरिक समाज, जिसमें 32 संगठन और संयुक्त किसान मोर्चा शामिल थे, ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से IPEF के व्यापार स्तंभ में शामिल नहीं होने का आग्रह किया, क्योंकि यह भारत में एग्रीटेक फर्मों के प्रवेश को सक्षम करेगा. उन्होंने कहा कि आईपीईएफ गैर-पारदर्शी है और लगभग एकतरफा रूप से अमेरिका द्वारा डिजाइन किया गया है.
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