Lok sabha election 2024: राहुल के अमेठी से चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट कोई नई बात नहीं है। स्मृति ईरानी न सिर्फ उन्हें चुनौती देती रहीं हैं बल्कि जब जब भी राहुल पर हमले की बारी आई, पार्टी ने ही उन्हें आगे रखा। स्मृति ईरानी से पिछला चुनाव हारने के बाद से ही सवाल गहरा गया था कि राहुल क्या दोबारा कभी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे? अब यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय के बयान ने एक सनसनी फैला दी। जहां एक तरफ राहुल का पूरा ध्यान दक्षिण में दिखाई दिया, वहीं अब कांग्रेस उनके चेहरे को यूपी और उत्तर भारत में भुनाना चाहती है। अजय राय के इस बयान को क्यों हल्के में नहीं लिया जा सकता ये समझने जैसी बात है।
अमेठी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। गांधी परिवार ने यहां से एकतरफा जीत हासिल की है। राहुल के लिए भी 2014 का चुनाव सफलता लाया था लेकिन तभी से मुकाबला कड़ा होने की बात कही जाने लगी थी। दरअसल उस चुनाव में भी स्मृति ईरानी थीं और राहुल के लिए जीत का अंतर वैसा नहीं था जैसा कांग्रेस का आमतौर पर इस सीट पर हुआ करता था। इसका परिणाम 2019 में और स्पष्ट हुआ जब राहुल स्मृति के सामने चुनाव हार गए। शायद आशंका उन्हें पहले से थी इसलिए उन्होंने वायनाड से भी चुनाव लड़ा। वर्तमान में राहुल वहीं से सांसद हैं। उत्तर प्रदेश से बड़े चेहरों का चुनाव लड़ना इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले इस राज्य से केंद्र की सत्ता का रास्ता गुजरता है। प्रधानमंत्री मोदी खुद इसलिए वाराणसी से चुनाव लड़ने के लिए गए। इसका असर भी देखने को मिला।
इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। राहुल की छबि पहले से बहुत बदली है खासतौर पर भारत जोड़ो यात्रा के बाद तो वो एक बार फिर कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। राहुल ने अपनी यात्रा का ज्यादा फोकस दक्षिण में ही रखा। दरअसल कांग्रेस दक्षिण में अपेक्षाकृत ज्यादा ताकतवर दिखाई देती है। कर्नाटक की जीत का सेहरा भी राहुल के सर बांधा गया। खुद प्रधानमंत्री के दक्षिण की किसी सीट से लड़ने के कयास भी लगते रहे इस सबके बीच राहुल का अपनी सीट वायनाड से चुनाव लड़ना तो तय माना जा रहा है। फिर भी बहुत मुमकिन है कि वो बीते आम चुनाव की तरह इस बार भी दो सीटों से चुनाव लड़ें। यूं तो कांग्रेस के पास यूपी में खोने के लिए अब कुछ नहीं है फिर भी पाने को बहुत कुछ दिखाई पड़ता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपनी जमीन को बहुत मजबूत किया है। वो अपना बहुत समय इस सीट पर देती हैं। कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ बनाने में भी वो कामयाब साबित हुई हैं। फिर भी अमेठी का मिजाज बहुत अलग है। यूपी में यदि विपक्षी एकजुटता की गाड़ी चलती रही तो ये तय माना जा रहा है कि सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे। सपा को रायबरेली और अमेठी जैसी सीटों को छोड़ने में कोई परहेज नहीं होगा। ये बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि अखिलेश यादव खुद हाल के दिनों में अमेठी में बहुत एक्टिव दिखाई दिए हैं। यदि राहुल खुद लड़ते हैं तो सपा का साथ उन्हें और मजबूत करेगा। यदि वे नहीं लड़ते है तो कुछ दिलचस्प समीकरण बन सकते हैं जैसे सपा का कोई बड़ा चेहरा यहां से लड़े। खैर ये अभी दूर की कौड़ी है लेकिन राहुल के लड़ने की संभावनाएं अभी बढ़ गई हैं।
राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो खुद को साबित करने की है। वो 2019 की हार से घबराए नहीं हैं और अमेठी की जनता पर उन्हें भरोसा है, ये बात सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा। कांग्रेस को अमेठी पर भी उतना ही विश्वास दिखाना होगा। हालांकि कमजोर तैयारी के साथ हार का जोखिम बड़े नुकसान लाते हैं फिर भी राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2019 जैसी लहर यदि 2024 में नहीं रही तो स्मृति इरानी के लिए भी ये चुनाव कड़ी चुनौती पेश कर सकता है। यहां बात सिर्फ खुद को साबित करने की नहीं है बल्कि पूरे यूपी में विपक्षी एकजुटता और खासतौर पर कांग्रेस की सीटें बढ़ाने की भी है। कांग्रेस और सपा एक एक सीट पर फोकस कर रहे हैं क्योंकि बीजेपी ने पूरे यूपी में अपने पिछले प्रदर्शन को और बेहतर करने का प्रण लिया है। यदि 2024 में एनडीए को चुनौती देनी है तो यूपी में सीटों की संख्या विपक्षी एकजुटता के मंच को बढ़ानी ही होगी।
केजरीवाल पिछली दफा ये दांव खेल चुके हैं लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। निर्विवाद रूप से जो चेहरा इस वक्त पूरे देश में बीजेपी का सबसे शक्तिशाली चेहरा है उसे उनके गढ़ में हराने के बारे में सोचना औपचारिकता या सनसनी का प्रयास भर लगेगा। अजय राय ने भी अपने बयान में सधे हुए तरीके से कहा यदि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो उनका स्वागत है। इस बात की संभावनाएं न के बराबर है। हां प्रियंका का यूपी से जुड़ाव है तो पार्टी उन्हें यहां चुनाव लड़वा सकती है। सोनिया गांधी चुनावी राजनीति से दूर होने की बात कह चुकी हैं ऐसे में रायबरेली की सीट प्रियंका के लिए बहुत मुफीद दिखाई पड़ती है। वैसे भी कांग्रेस उन्हें इंदिरा जी की छबि के तौर पर पेश करती रही है। रायबरेली से इंदिरा गांधी का नाम भी जुड़ा है ऐसे में ज्यादा संभावनाएं इस बात की है कि वो रायबरेली से चुनाव लड़ें। हांलाकि ये सब कयासो का बाजार है इस बार टिकटों का वितरण आसान नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस अब अपने घटक दलों के साथियों के लिए भी जवाब देह है।
-भारत एक्सप्रेस
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