दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) के तहत बीमाधारकों को सभी बीमा पॉलिसी दस्तावेज सौंपे जाने को सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग याचिका खारिज कर दी. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि योजना के तहत बीमा लाभ इसलिए बिना दावे के रह रहे हैं, क्योंकि मृतक पॉलिसीधारकों के नामांकित व्यक्ति या परिवार को यह जानकारी नहीं है कि मृतक व्यक्ति का बीमा किया गया था.
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इस तर्क पर असहमति जताई. पीठ ने मौखिक रूप से कहा यह जनहित याचिका इस धारणा या धारणा पर आधारित है कि परिवार के सदस्यों को इसकी जानकारी नहीं है और कोई पॉलिसी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया है. याचिकाकर्ता दिवास्वप्न देख रहा है.
पीठ ने दोहराया कि बीमा पॉलिसियाँ निजी अनुबंध हैं, साथ ही कहा कि ऐसे अनुबंधों से उत्पन्न मुद्दों को जनहित याचिका के माध्यम से निपटाना उचित नहीं है. पीठ ने कहा आप अभिभावक नहीं हो सकते. बहुत सारे हैं. आप जनहित याचिका के माध्यम से आ रहे हैं, जो एक खतरनाक रास्ता है. इससे घोटाले हो सकते हैं.
पीएमजेजेबीवाई के तहत यदि 18-55 वर्ष के बीच के किसी पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो उसके नामांकित व्यक्ति/परिवार के सदस्य 2 लाख के मुआवजे के हकदार होंगे. याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि केंद्र सरकार द्वारा 2015 में पीएमजेजेबीवाई बीमा योजना शुरू की गई थी, लेकिन संभावित दावेदारों में से केवल एक तिहाई को ही 2 लाख का मुआवज़ा दिया गया है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि दो तिहाई दावेदारों (मृतक पॉलिसीधारकों के परिवार के सदस्यों के नामांकित व्यक्ति) ने इन लाभों का दावा नहीं किया होगा, क्योंकि उन्हें मृतक के इस योजना के तहत बीमित होने की जानकारी नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भी उनसे संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं करती है. याचिकाकर्ता ने कहा कि भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (पॉलिसीधारकों के हितों का संरक्षण) विनियम, 2017 के विनियमन 8(1) में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी बीमा कंपनियों को सभी पॉलिसीधारकों को पॉलिसी दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे.
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याचिका में कहा गया है कि इसलिए, जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का यह वैधानिक कर्तव्य है कि जब कोई व्यक्ति पीएमजेजेबीवाई के तहत बीमा के लिए नामांकन करता है, तो उसे पॉलिसी दस्तावेज उपलब्ध कराए.
–भारत एक्सप्रेस
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