मुद्दे की परख

वंशवाद की राजनीति के खिलाफ पीएम मोदी की जंग

भारत लंबे समय से वंशवाद की राजनीति के अभिशाप से त्रस्त रहा है, जहां ताकतवर राजनीतिक परिवारों के लोग अक्सर योग्यता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कीमत पर सत्ता तक पहुंच जाते हैं. इन राजघरानों ने भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के सिस्टम को बढ़ाने का काम किया है जिसने देश की प्रगति और विकास को बाधित किया है. हालांकि, 2014 में पदभार संभालने के बाद से पीएम नरेंद्र मोदी लगातार वंशवाद की राजनीति के खिलाफ कैंपेन का नेतृत्व करते रहे हैं और योग्यता एवं जवाबदेही के एक नए युग की शुरुआत करते नजर आ रहे हैं.

पीएम मोदी ने जिन तौर-तरीकों से वंशवाद की राजनीति का मुकाबला किया है, उनमें से एक महत्वपूर्ण चुनावी सुधारों को लागू करना है. पहले, राजनीतिक दल अक्सर चुनाव लड़ने के लिए प्रमुख राजनेताओं के परिवार के सदस्यों पर ज्यादा भरोसा जताते थे, भले ही उनकी योग्यता या अनुभव कुछ भी हो. वहीं मोदी सरकार ने ये सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं कि उम्मीदवारों का चयन योग्यता के आधार पर हो न कि वंशवाद के आधार पर. उदाहरण के लिए, सरकार ने इसको लेकर सख्त मानदंड लागू किए हैं, जिसके तहत उम्मीदवारों को अपनी संपत्ति, आपराधिक रिकॉर्ड और शैक्षिक योग्यता घोषित करना अनिवार्य है. इस वजह से राजनीतिक दलों के लिए पारिवारिक संबंधों के आधार पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारना अधिक कठिन हो गया है क्योंकि अब सारी जानकारियां सार्वजनिक हो गई हैं.

इसके अलावा मोदी सरकार ने चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए कई उपाय किए हैं. उदाहरण के लिए, सरकार ने अनिवार्य किया है कि एक निश्चित सीमा से ऊपर के सभी राजनीतिक चंदा डिजिटल ट्रांजैक्शन के जरिए किए जाने चाहिए, जिससे धन के स्रोत को ट्रैक करना और अवैध योगदान को रोकना आसान हो सकता है. इसके अलावा, सरकार ने एक नेशनल इलेक्टोरल फंड की स्थापना की है, जो नागरिकों को पारदर्शी तरीके से राजनीतिक दलों के लिए योगदान करने की इजाजत देता है. इन सुधारों ने चुनावी प्रक्रिया में धन और शक्ति के प्रभाव को कम करने में मदद की है.

एक और महत्वपूर्ण कदम जिसके जरिए पीएम मोदी ने वंशवाद की राजनीति का मुकाबला किया है, वह उद्यमिता और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना है. पहले, राजनीतिक परिवारों के सदस्य अक्सर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट और लाइसेंस हासिल करने के लिए अपने कनेक्शन को जरिया बनाते थे, जिससे क्रोनी कैपिटलिज्म के कल्चर को बढ़ावा मिलता था और प्रतिस्पर्धा और नवाचार के लिए यह बाधक बनता था. मोदी की सरकार ने उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए स्टार्टअप इंडिया जैसी नई पहल की शुरुआत की है, जो इच्छुक उद्यमियों के लिए फंड और उचित सलाह भी प्रदान करती है.

इसके अलावा, पीएम मोदी ने नौकरशाही और अन्य सरकारी संस्थानों में राजनीतिक परिवारों के प्रभाव को कम करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं. सरकार ने सख्त प्रदर्शन मूल्यांकन मैकेनिज्म लागू किया है, जो अधिकारियों का उनके कनेक्शन के बजाय परफॉर्मेंस के आधार पर मूल्यांकन करता है. इस कदम से राजनीतिक परिवारों के लिए सरकारी संस्थानों को प्रभावित करना और भी कठिन हो गया है क्योंकि अधिकारी अब जनता के प्रति अधिक जवाबदेह हो गए हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी ने आम नागरिकों को सरकारी सेवाओं और सूचनाओं तक अधिक पहुंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने की पहल की है. राजनीतिक परिवार अपने कनेक्शन के जरिए सरकारी सेवाओं का लाभ उठा लेते थे और आम नागरिक इससे वंचित रह जाते थे. मोदी सरकार ने डिजिटल गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि डिजिटल इंडिया की पहल, जिसका उद्देश्य डिजिटल देश के आम नागरिकों तक इस चैनल के जरिए सरकारी सेवाएं को पहुंचाना है. इससे नागरिकों के लिए सरकारी सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंचना पहले के मुकाबले आसाना हो गया है और इस तरह से राजनीतिक परिवारों का प्रभाव भी कम हुआ है.

हालांकि, वंशवाद की राजनीति से निपटने के लिए मोदी के कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी उन्हें लंबा रास्ता तय करना है. राजनीतिक परिवारों का भारतीय राजनीति, खासकर कि राज्य स्तर पर बहुत प्रभाव रहा है. मोदी सरकार ने पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन राजनीतिक फंडिंग और सरकारी कॉन्ट्रैक्ट जैसे क्षेत्रों में अभी भी अधिक पारदर्शिता की जरूरत है. वंशवाद की राजनीति के खिलाफ नरेंद्र मोदी की जंग प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल की प्रमुख खासियत रही है. चुनावी, आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों की दिशा में उठाए गए कदमों के जरिए, पीएम मोदी ने राजनीतिक परिवारों के प्रभाव को कम करने के साथ-साथ एक अधिक योग्य और जवाबदेह राजनीतिक व्यवस्था को बढ़ावा देने की पहल की है.

(मूल लेख का हिंदी अनुवाद)

-भारत एक्सप्रेस

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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