भारत में वांटेड खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों की कथित संलिप्तता के कनाडाई सरकार के हालिया दावों पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कूटनीतिक खींचतान बढ़ी हुई है। खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख निज्जर की जून में ब्रिटिश कोलंबिया में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इसी तरह की घटना में मई के महीने में खालिस्तान कमांडो फोर्स के प्रमुख परमजीत सिंह पंजवड़ की पाकिस्तान के लाहौर में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। पाकिस्तानी मीडिया में पंजवड़ की हत्या सरदार सिंह मलिक नामक पाकिस्तानी सिख की नियमित हत्या के रूप में रिपोर्ट की गई थी। पंजवड़ लाहौर में इसी नाम से जाना-पहचाना जाता था और पंजाब में ड्रोन के जरिए नशीली दवाओं और हथियारों की तस्करी के कारण भारत में वांछित था। ये दोनों हत्याएं खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी अलगाववादी नेता अमृतपाल सिंह संधू को भारत के पंजाब के मोगा में गिरफ्तार करने और एनएसए के तहत असम जेल भेजे जाने के बाद हुईं। अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के बाद ब्रिटेन के लंदन, अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को और कनाडा में कई भारतीय वाणिज्य दूतावासों में हिंसा हुई थी। हैरानी की बात है कि जो कनाडा निज्जर की हत्या पर इतना शोर मचा रहा है, वही पंजवड़ को दिनदहाड़े मौत के घाट उतारे जाने के बाद खामोश बैठा रहा था।
यह भी अजीबोगरीब संयोग है कि एक तरफ जहां कनाडा को पनाहगाह बनाने वाले खालिस्तान आतंकी एक-के-बाद-एक मारे जा रहे हैं, उसी तरह पाकिस्तान की सरपरस्ती में फल-फूल रहे आतंकी भी सरेआम गोलियों से भूने जा रहे हैं। सबसे हालिया हत्या पिछले महीने ही हुई थी जब 26/11 मुंबई हमले में मोस्ट वॉन्टेड हाफिज सईद के सबसे करीबी माने जाने वाले मुफ्ती कैसर फारूक को कराची में अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। कैसर फारूक लश्कर के संस्थापक सदस्यों में से एक था और हाफिज सईद का बेहद करीबी था। उससे पहले लश्कर से जुड़े जमात-उद-दावा के आतंकी मुहम्मद रियाज, जिसे अबू कासिम कश्मीरी के नाम से भी जाना जाता है, की पीओके में गोली मारकर हत्या कर दी गई। रियाज की मौत पाकिस्तान में इसी साल की चौथी ऐसी घटना है। उससे पहले हिज्बुल मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर बशीर अहमद पीर उर्फ इम्तियाज आलम को रावलपिंडी में और कश्मीर में सक्रिय अल बद्र मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर सैयद खालिद रजा की कराची में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इसे टारगेट किलिंग बताया था। इन घटनाओं से पहले भी पाकिस्तान में आतंक के कई आकाओं की अपहरण के बाद हत्या या सीधे गोली मारी गई है। जमात-उद-दावा में दूसरे नंबर का कमांडर और ग्लोबल टेररिस्ट अब्दुल रहमान मक्की जहां अगवा हो गया है, वहीं जेल में बंद मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के बेटे तल्हा की भी कई दिनों से कोई खबर नहीं मिल रही है। तल्हा भारत में लश्कर की आतंकी वारदातों की अगुवाई करता है और साल 2019 में लाहौर में एक हत्या के प्रयास में बाल-बाल बचा था। ऐसी खबरें हैं कि लश्कर के भीतर दबदबा रखने वाले एक गुट ने तल्हा को दूसरे कमांडर के रूप में नियुक्त किए जाने के खिलाफ विद्रोह कर रखा है और आतंकी समूहों के बीच की यह आंतरिक कलह ही हत्याओं की श्रृंखला के लिए जिम्मेदार है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी इनके बीच समझौता कराने में विफल रही है।
इस जानकारी के बावजूद तथ्य यही है कि हमलावर अब तक अज्ञात हैं और हमले की वजह को लेकर बना रहस्य भी बरकरार है। इस मामले में पाकिस्तान और कनाडा दोनों एक नाव पर सवार दिख रहे हैं। दोनों देशों में हत्याओं का पैटर्न एक जैसा रहा है। वारदात को अंजाम देने के बाद दोनों जगह हत्यारे भी जिस आराम से अंडरग्राउंड हुए हैं, वो बताता है कि वो सब मौका-ए-वारदात से अच्छी तरह वाकिफ रहे होंगे। ये कोई बाहरी आदमी नहीं कर सकता। पाकिस्तान की ही तरह कनाडा भी आज आतंकियों की शरणस्थली बना हुआ है। पाकिस्तान में जहां लश्कर, जैश और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकियों ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं वहीं कनाडा में खालिस्तानी आतंकी फल-फूल रहे हैं।
इतनी समानताएं संयोग नहीं हो सकतीं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि कनाडा को अब एक नए पाकिस्तान के रूप में देखा जाने लगा है। नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के मौके पर संक्षिप्त बैठक के बाद भारत-कनाडा के द्विपक्षीय रिश्तों की जो झलक मिल रही है, उसमें कनाडा का पाकिस्तान के रास्ते पर जाना तय दिख रहा है। जस्टिन ट्रूडो की घरेलू राजनीतिक मजबूरियों ने उन्हें कनाडा के सार्वजनिक जीवन के कुछ सबसे खतरनाक तत्वों की मदद करने के लिए मजबूर किया है। खालिस्तान आंदोलन के इन समर्थकों में से कई ट्रूडो की पार्टी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भी हैं। विडंबना यह है कि कनाडा और खालिस्तानी कनाडाई खुले तौर पर आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन करके भारत में हस्तक्षेप कर रहे हैं और भारत में गैंगवॉर की जिम्मेदारी ले रहे हैं लेकिन इसके बावजूद कनाडा प्रशासन भारत पर उसके देश के मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगा रहा है। यह अपरिपक्वता नहीं, बल्कि दुनिया के लिए नासूर बन चुके आतंकवाद का खुला समर्थन है। एक तरह से पाकिस्तान की ही तरह कनाडा के साथ भारत के विवाद का मूल मुद्दा भी आतंकवाद बनता जा रहा है।
निज्जर की हत्या पर उठे विवाद में भी कनाडा और पाकिस्तान एक ही बोली बोल रहे हैं। पाकिस्तान ने भी अतीत में भारत पर उन लोगों को मारने की साजिश रचने का आरोप लगाया है, जिनके बारे में उसका मानना है कि वे जम्मू-कश्मीर के एकीकरण की भारत की रणनीति के लिए खतरा हैं। दो साल पहले पाकिस्तान ने एक डोजियर सार्वजनिक किया था जिसमें लाहौर हमले का ठीकरा भारत पर फोड़ते हुए हाफिज सईद को हमले का टारगेट बताया था। पाकिस्तान की बेचैनी समझ भी आती है क्योंकि उसके भारत-विरोधी एजेंडे को अब पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय तवज्जो नहीं मिल रही है। इसलिए वो कनाडा को सीढ़ी बनाकर दुनिया को इस झांसे में डालना चाहता है कि निज्जर की हत्या कोई अलग घटना नहीं है, बल्कि भारत के व्यवहार का एक पैटर्न है। हालांकि ऐसी कवायदें करते हुए पाकिस्तान यह भूल जाता है कि दुनिया को अपने दावों पर यकीन दिलाने से पहले उसे अपना खुद का घर व्यवस्थित करने की जरूरत है जो आज आतंकियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन चुका है।
ठीक इसी तरह भारत के खिलाफ अपनी धरती पर काम कर रहे खालिस्तानी आतंकियों का समर्थन करना एक तरह से कनाडा की राज्य नीति बन गई है। आतंकवाद पर नकेल कसने की रट लगाने में कनाडा को भी पाकिस्तान से अलग रखकर नहीं देखा जा सकता। निज्जर हो या पंजवड़, आतंकी वारदातों को लेकर दोनों भारत में वांछित थे। ये कोई आज-कल की बात नहीं है। 12 साल पहले जब भारत ने 50 मोस्ट वांटेड और पाकिस्तान में शरण लेने वाले आतंकियों की जो सूची सौंपी थी, पंजवड़ का नाम उस सूची में भी शामिल था। इसी तरह, भारत ने निज्जर के खिलाफ 1987 की प्रत्यर्पण संधि और 1998 की पारस्परिक कानूनी सहायता संधि के तहत या इंटरपोल के माध्यम से जानकारी या कार्रवाई की भी मांग की थी। साल 2022 में पंजाब पुलिस ने निज्जर के भारत प्रत्यर्पण की मांग करते हुए कनाडाई अधिकारियों से संपर्क भी किया था। लेकिन कनाडा दोनों आतंकियों की ढाल बना रहा। यह भी आश्चर्य की बात है कि खालिस्तानी आतंकियों के साथ पाकिस्तानी राजनयिकों का खुले तौर पर सौदेबाजी करना कनाडा को सामान्य राजनयिक गतिविधि क्यों लगता है? यदि ऐसा है, तो कनाडा को खालिस्तानी कनाडाई और पाकिस्तानियों के बीच सांठगांठ की याद दिलाने की जरूरत है जिसने 1980 और 1990 के दशक में पंजाब में कहर बरपाया था। इसलिए आज कनाडा में जो कुछ हो रहा है, उसे भारत किसी भी सूरत में नजरंदाज नहीं कर सकता।
-भारत एक्सप्रेस
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