कुश्ती को दुनिया के सबसे प्राचीन खेलों में से एक माना जाता है, और भारत में इसका एक गौरवशाली इतिहास है. प्राचीन काल से ही भारत में कुश्ती एक लोकप्रिय खेल रहा है. कुश्ती मैट्स का विकास और इसका इतिहास बहुत ही रोचक है. अगर हम इसकी शुरुआत की बात करें तो लगभग 7000 ईसा पूर्व तक कुश्ती के लिए कोई विशेष मैट्स या कोर्ट नहीं हुआ करते थे. उस समय इसे “मल्ल-युद्ध” के नाम से जाना जाता था, जिसे विशेष स्थान “अखाड़ा” में आयोजित किया जाता था. इस खेल के कई संदर्भ रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं. उस समय कुश्ती मिट्टी के पैचों पर लड़ी जाती थी.
कुश्ती मैट्स सिर्फ एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह उस खेल की नींव है, जिस पर पूरा खेल टिका हुआ है. यह नियमित रूप से फोम कुशनिंग से बना होता है, जो एक मजबूत विनाइल कवर में लिपटा होता है. इससे कुश्ती के खेल में क्रांतिकारी बदलाव आया. कुश्ती मैट्स न केवल एथलेटिक मुकाबलों के लिए मंच का काम करते हैं, बल्कि खेल की भावना को भी बढ़ाते हैं. हर मुकाबला, हर टेकडाउन और हर पिन मानवीय साहस और उत्कृष्टता की खोज का प्रतीक है. इसके अलावा, कुश्ती मैट्स खिलाड़ियों के बीच मित्रता और सामुदायिक भावना को भी प्रोत्साहित करते हैं.
प्राचीन समय में, भारत में कुश्ती का इस्तेमाल सैन्य अभ्यास के लिए किया जाता था क्योंकि उस समय कोई हथियार उपलब्ध नहीं थे. कुश्ती के माध्यम से शरीर को मजबूत किया जाता था. कुश्ती न केवल फिट रहने का तरीका था, बल्कि पहलवानों को समाज में उच्च सम्मान भी मिलता था. मिट्टी से मैट्स पर खेलना खेल के प्रदर्शन को और भी बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण तरीका बना और इससे खेल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली. भारतीय मल्ल-युद्ध का खेल विभिन्न त्योहारों और मेलों से जुड़ा हुआ था, जहां लोग दूर-दूर से इसे देखने आते थे, जिससे सामाजिक संबंध और सामुदायिक पहचान मजबूत होती थी.
कुश्ती के नियम प्राचीन समय से लेकर अब तक काफी हद तक समान रहे हैं, जैसे उपकरणों का उपयोग, पकड़ने की तकनीक और सम्मानपूर्वक मुकाबला जीतना. समय के साथ कुश्ती मैट्स पहलवानों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए, और आज यह जरूरी है कि उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले इंटरलॉकिंग मैट्स मिले जो बेहतर ग्रिप और प्रदर्शन के साथ चोटों से बचाव भी कर सकें. हाल के वर्षों में, कुश्ती मैट्स ने खेल में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं और सुरक्षा मानकों को भी बेहतर किया है.
कुश्ती को ओलंपिक खेलों में सबसे पुराने और प्रतिष्ठित खेलों में से एक माना जाता है. इसे 708 ईसा पूर्व ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया था. यदि हम कुश्ती में नवाचार की बात करें, तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका तकनीक की रही है. आधुनिक कुश्ती में तकनीक ने खिलाड़ियों को प्रदर्शन का विश्लेषण करने और उनकी प्रतिभा को निखारने में मदद की है. वीडियो रिव्यू तकनीक से खिलाड़ी विभिन्न कोणों से अपने प्रदर्शन का अध्ययन कर सकते हैं, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण समझ प्राप्त होती है. आज के कुश्ती खेल में तकनीक ने खिलाड़ियों, कोचों, अधिकारियों और प्रशंसकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है और यह भविष्य में भी कुश्ती को आकार देने में मदद करेगी.
भारतीय पारंपरिक कुश्ती मिट्टी के अखाड़ों में खेली जाती थी. भारत में कुश्ती मैट्स का विकास देश के खेल परिदृश्य के विकास और खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है. बाद में, भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और ओलंपिक जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया.
कुश्ती मैट्स का निर्माण पहलवानों की फिटनेस और प्रदर्शन को ध्यान में रखकर किया जाता है. इनका मुख्य उद्देश्य कुश्ती मुकाबलों में पकड़ने, फेंकने और टेकडाउन तकनीकों के लिए उपयुक्त होना चाहिए. इसका सतह नॉन-एब्रेसिव होना चाहिए, जिससे पहलवान आराम से जटिल मूव्स कर सकें. मैट्स का आकार नियामक संस्थाओं द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना चाहिए ताकि समानता बनी रहे. इसलिए, अगली बार जब आप कुश्ती का मुकाबला देखें, तो पहलवानों के पैरों के नीचे की मैट्स की महत्वपूर्ण भूमिका को जरूर याद करें.
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-भारत एक्सप्रेस
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