Space News: हम सब इंसानों को छींक आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. यहां तक कि जानवरों को भी छींक आती है, लेकिन आपको ये जानकर बड़ी हैरानी होगी कि तारों को भी छींक आती है. क्या कभी आपने सुना है कि ऐसा हो सकता है? हालांकि बच्चों की कहानी की किताबों में जरूर इन बातों का जिक्र सुना था लेकिन अभ तो वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि हां तारों को हम इंसानों की तरह ही छींक आती है. एक शोध में इसका खुलासा हुआ है. क्यूशू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक घने और कूल पैच इंटरस्टेलर गैस और धूल बड़े पैमाने पर बादलों के भीतर इकट्ठा होते हैं जिसे स्टेलर नर्सरी कहा जाता है. बता दें कि ब्रह्मांड में मौजूद हर तारा यहां तक की सूर्य ने भी जहां जन्म लिया, उस जगह को तारकीय नर्सरी कहते हैं और इसीको इंग्लिश में स्टेलर नर्सरी भी कहा जाता है. यह एक गैस और धूल की बड़ी सांद्रता है. इसी नर्सरी के कोर में बेबी स्टार का निर्माण होता है.
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तारे छींकते भी हैं, इसको लेकर वैज्ञानिकों को उस वक्त मालूम हुआ जब उन्होंने MC 27 का अध्ययन किया जो कि पृथ्वी से करीब 450 प्रकाश वर्ष दूर है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जब उन्होंने इस तारे का अध्ययन किया तो उन्हें पता चला कि इस तारे के प्रोटोस्टेलर डिस्क में स्पाइक जैसी संरचनाएं थीं. वैज्ञानिकों की मानें तो ये संरचनाएं शायद चुंबकीय प्रवाह से निकलने वाले धूल और गैस के कणों की वजह से बनी थीं. इस तरह की घटना को विज्ञान की भाषा में इंटरचेंज अस्थिरता भी कहते हैं और इसी को हम सबकी भाषा यानी आम भाषा में तारों का छींकना कहते हैं. वैज्ञानिक का मानना है कि आने वाले समय में इस तरह के छीकों से उन्हें तारों के निर्माण को लेकर कई बातें मालूम हो सकती हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैज्ञानिकों ने इस तारे पर अध्ययन करने के लिए 66 हाई क्वालिटी वाले रेडियो दूरबीनों की सहायता ली.
वैज्ञानिकों को शोध में मिला है कि ये तारे हमेशा नहीं छींकते. वे उस वक्त छींकते हैं जब वे अपने निर्माण के दौर में होते हैं. इन तारों को आप शिशु तारे या प्रोटोस्टार कह सकते हैं. जब छींकते हैं तो इनकी छींक की वजह से धूल, गैस और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का एक प्लम डिस्चार्ज होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ठीक उसी तरह लगता है जैसे तारे के चारों ओर एक चिंगारियों का फव्वारा फूट गया हो. ये काफी अद्भुत होता है.
-भारत एक्सप्रेस
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