Aloe Vera Farming: मौजूदा समय में आयुर्वेद की तरफ लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है. इसके उत्पादों को बनाने में जड़ी बूटियों और सेहत के लिए फायदेमंद, पेड़-पौधों का उपयोग हो रहा है. इस वजह से पैदावार की तुलना में इनकी डिमांड ज्यादा है.
इसे देखते हुए कई लोगों ने अपनी खेती के पारंपरिक तरीकों और उत्पाद में बदलाव किया है. ऐसा ही एक पौधा है एलोवेरा (Aloe vera), जिसकी डिमांड इस समय आयुर्वेद (Ayurveda) में काफी अधिक है. इससे बनने वाले प्रोडक्ट चाहे वह सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetic products) जैसे एलोवेरा जेल, एलोवेरा फेस पैक, एलोवेरा क्रीम आदि हों या हेल्थ प्रोडक्ट्स (Health products) जैसे एलोवेरा जूस, एलोवेरा टेबलेट इत्यादि हों आज मार्केट में लोगों द्वारा हाथों हाथ लिए जा रहे हैं.
ऐसे में इसकी खेती से अच्छी खासी आमदनी हो सकती है. आज हम आपको कुछ ऐसे फार्मूले बताने जा रहे हैं, जिसे आजमा कर 6 गुना मुनाफा कमाया जा सकता है.
एलोवेरा की खेती को शुरु करने से पहले इससे जु़ड़ी जानकारी का होना जरूरी है. एलोवेरा की खेती के लिए ऐसी जमीन का चयन किया जाता है, जिसमें पानी न ठहरता हो. बात करें इसकी मिट्टी की तो इसके लिए रेतीली मिट्टी को बेहतर माना जाता है. पहाड़ी और बलुई दोमट मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है. अगर आपको अपनी मिट्टी को लेकर किसी तरह का संशय हो तो आप सरकारी या निजी लैब में थोड़ी सी मिट्टी ले जाकर उसके P.H. मान की चांज करा सकते हैं. इसकी खेती के लिए 8.5 तक के P.H. मान को उपयुक्त माना गया है.
एलोवेरा के अधिक उत्पादन के साथ यह भी जरूरी है कि इसके अंदर निकलने वाले जेल की मात्रा भी अधिक होनी चाहिए. अधिक कमाई के लिए एलोवेरा की एलो बारबाडेंसिस (Aloe Barbadensis) नामक प्रजाति को काफी अच्छा माना जाता है.
इसमें जेल की क्वांटिटि सबसे ज्यादा होती है. इसका उपयोग जूस से लेकर का कास्मेटिक प्रोडक्ट बनानें में अधिक होता है. एलोवेरा (Aloe vera) की खेती करने वाले कई किसान इस प्रजाति की फसल से अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. इसके अलावा कई किसान इंडिगो प्रजाति (Indigo Aloe vera) और एल- 1,2,5 , सिम-सीतल और 49 प्रजाति का भी उपयोग करते हैं.
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इन बातों का रखें ख्याल
अगर आप एलोवेरा (Aloe vera) की खेती करने जा रहे हैं तो सबसे पहले खेत की जुताई आदि करवाते हुए उसे अच्छे से तैयार कर लें. एलोवेरा के पौधों को कई तरह के फसली कीटों से नुकसान पहुंचने की आशंका बनी रहती है. एलोवेरा की पत्तियों में भी सड़न और धब्बा जैसे लगने वाले रोग के रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब, रिडोमिल और डाइथेन एम-45 की सही मात्रा का छिड़काव करे. प्रति एकड़ एलोवेरा के पौधों कि लिए 25 किलो यूरिया, 35 किलो फॉस्फोरस और 10 किलो पोटाश के अलावा प्रति एकड़ के साथ 3 से 4 टन गोबर के खाद की जरूरत पड़ती है.
समय-समय पर खेतों में उगने वाले खरपतवार को निकालते रहें. इसकी वजह से पौधों की वृद्धि पर असर पड़ सकता है. अगर आप बारबाडेंसिस (Aloe Barbadensis) प्रजाति का पौधा लगा रहे हैं तो दो पौधों के बीच लगभग 2 फीट की दूरी रखें. अधिक पैदावार के लिए इसके दूसरे प्रजाति के पौधों के बीच में 60 CM की दूरी जरूर रखें. इसकी खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप नजदीकी कृषि सेवा केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.
ऐसे मिलता है मुनाफा
एलोवेरा की खेती किसी भी सीजन में की जा सकती. लेकिन इसकी बुवाई के लिए अक्टूबर से नवंबर के बीच का समय ठीक माना जाता है. अगर आपने एक बार इसे लगा दिया तो साल में दो बार इनकी कटाई की जा सकती है. जिससे की लागत से कई गुना मुनाफा होता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अगर आप एक एकड़ खेत से इसकी खेती की शुरुआत करने जा रहे हैं तो इसके लिए आपको एलोवेरा के लगभग 14,000 पौधों की जरूरत पड़ेगी. इसके अलावा खेत के अनुसार इनकी संख्या घट बढ़ सकती है.
बात करें इसके एक पौधे के दाम की तो यह 3-4 रुपये तक का एक मिल जाता है. कुल मिलाकर एक एकड़ में इसकी खेती करने का खर्च 50,000 रुपये के लगभग आता है. वहीं इसके एक पौधे से 3-5 किलो वजन तक के पत्ते निकल जाते हैं. इनके पत्तों की कीमत 8-9 रुपये के आसपास रहती है. कई कंपनियां तो किसानों से सीधा खेत से में ही सौदा कर लेती हैं. इसके अलावा आप भी पौधे से जेल निकालकर इन्हें बेच सकते हैं. इससे आपकी जबरदस्त कमाई होगी.
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