काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर से संबंधित जिला अदालत और सिविल जज की अदालत में लंबित मुकदमों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई कर सकता है. ज्ञानवापी परिसर में दर्शन, पूजा का अधिकार मांगने वाली चार महिला याचिकाकर्ताओं ने दाखिल सभी मुकदमों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर की मांग की है. ज्ञानवापी परिसर से जुड़े 15 मुकदमों को हाईकोर्ट में ट्रांसफर की मांग की गई है. जिनमे जिला अदालत में 9 और सिविल जज की अदालत में 6 मुक़दमे लंबित है.
याचिकाकर्ताओं की मांग है कि सभी याचिकाओं पर हाई कोर्ट एक साथ सुनवाई करें. मुकदमों में ऐतिहासिक तथ्य पुरातत्व और संवैधानिक अधिकारों के मुद्दे शामिल है. एक ही अदालत में सुनवाई से विरोधाभासी आदेशों की संभावना कम है. इससे पहले ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई में ही रही देरी को लेकर हिंदू पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में ज्ञानवापी से जुड़े सभी मामले हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने और अयोध्या के रामजन्म भूमि के तर्ज पर तीन जजों की बेंच में सुनवाई की गुहार लगाई गई थी. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि 11 महीने से ज्ञानवापी मामले की सुनवाई में देरी हुई है. इसका असर मुकदमों पर पड़ा है और इसलिए हिंदू पक्ष की तरफ से जिला अदालत में पक्ष रखा गया कि 1991 मूल वाद सहित ज्ञानवापी से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई एक साथ होनी चाहिए थी.
चार हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजुखाने में मिली शिवलिंग जैसी संरचना की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI )से वैज्ञानिक जांच कराने की मांग की थी. 18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने सिविल जज के सामने एक याचिका दायर किया था. महिलाओं की मांग पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था. याचिका में दावा किया था कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.
-भारत एक्सप्रेस
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