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“मेरी आवाज सुनो, मैं अलेक्जेंडर…” टेलीफोन का आविष्कार कर आज के दिन ही पहली बार अपने मित्र से बोले थे ग्राहम बेल

Graham Bell: इतिहास के पन्नों में 10 मार्च की तारीख को बहुत ही विशेष कार्यों और तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं को लेकर याद किया जाता है. इसी दिन यानी 10 मार्च 1876 को ग्राहम बेल ने पहली बार टेलीफोन पर अपने मित्र से बात की. उन्होंने अपने मित्र से कहा कि “मेरी आवाज़ सुनो, मैं एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल ( Alexander Graham Bell).” हालांकि 10 मार्च की तारीख को देश-दुनिया की तमाम अन्य घटनाओं के लिए भी जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा अगर किसी घटना पर चर्चा होती है तो वो है टेलीफोन के अविष्कार की. क्योंकि आप सोच सकते हैं कि अगर टेलीफोन नहीं होता तो आज जिंदगी कैसी होती, क्योंकि आज टेलीफोन लोगों के लिए इतना सुविधाजनक हो गया है कि, लोग अपनी बातों को जल्द से जल्द दूर बैठे लोगों तक पहुंचा देते हैं.

बता दें कि इतिहास के पन्नों पर भी उसी शख्सियत की कहानी को दर्ज किया जाता है जो लीक से हटकर कुछ अलग करता है. जिन्होंने भीड़ से हटकर कुछ नया और अलग करने का साहस किया हो दुनिया उसी को याद रखती है. 19वीं सदी के महान आविष्कारों में से एक का श्रेय अलेक्जेंडर ग्राहम बेल को भी उनके खास अविष्कार के लिए ही जाना जाता है. उन्होंने टेलीफोन के आविष्कार (inventing telephon) के जरिए दुनिया को एक जबरदस्त तोहफा दिया. आज की आधुनिक जीवन को देखते हुए यह बात सच है कि आज की तकनीक की दुनिया में लोग मोबाइल फोन और इंटरनेट के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं,लेकिन जब मोबाइल फोन या कई दूसरा साधन संचार का नहीं था तब सर अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार करके दूरसंचार में क्रांति ला दी थी और इसके लिए उनको हमेशा याद किया जाता है. वो बात अलग है कि अब आधुनिक युग में मोबाइल फोन लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है.

मां की नहीं थी सुनने की क्षमता

एलेक्जेंडर ग्राहम बेल एलेक्जेंडर मेलविले बेल और एलिज़ा ग्रेस साइमंड्स बेल के बेटे थे और उनका जन्म 3 मार्च, 1847 को स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग में हुआ था. उनके पिता पेशे से एक शिक्षक थे, जो मूक-बधिर लोगों को शिक्षित करते थे और उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम करते थे तो वहीं उनकी माँ एक गृहिणी थीं जो स्वयं सुन नही पाती थीं यानी उनकी सुनने की क्षमता नहीं थी अर्थात वह बहरी थीं. बेल के दो भाई थे, एडवर्ड चार्ल्स बेल और मेलविले जेम्स बेल, जिनमें से एक की तपेदिक के कारण मृत्यु हो गई थी.

बचपन से ही जिज्ञासु स्वभाव के थे बेल

अगर ग्राहम बेल के बचपन की बात करें तो वह बहुत ही जिज्ञासु स्वभाव के थे. हमेशा नई चीजें सीखने और खोजने की इच्छा उनके अंदर रहती थी और वह हमेशा ही कुछ नया करने की सोचते रहते थे. विज्ञान में रुचि के अलावा, उन्हें कला में भी गहरी रुचि थी. उनकी मां के बहरे होने के बावजूद उन्होंने उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहित किया. हालांकि बेल की किताबों में रुचि नहीं थी, लेकिन वह नई चीजें सीखने की इच्छा रखते थे. बहुत कम उम्र में उन्होंने दुर्लभ पौधों के नमूने एकत्र करना और उन पर प्रयोग करना शुरू कर दिया था. यही वजह रही कि उनकी रुचि धीरे-धीरे प्रबल होती गई.

मां को लेकर रहते थे दुखी

अलेक्जेंडर बेल के लिए कहा जाता है कि वह अपनी मां से बहुत ही लगाव रखते थे, लेकिन मां के बहरे होने के कारण वह दुखा रहते थे. उनके पिता और भाई दोनों मूक-बधिरों के जीवन को आसान बनाने के लिए, बोलने में अक्षम लोगों को पढ़ाने के काम में शामिल थे. बचपन के दौरान, बेल के पिता ने उन्हें और उनके भाइयों को दृश्य भाषण के बारे में सिखाया और उन्हें ध्वनियों की पहचान करना भी सिखाया. इसके कुछ ही सालों बाद अलेक्जेंडर ग्राहम बेल अपने पिता के साथ सार्वजनिक प्रदर्शनों में जाने लगे और फिर धीरे-धीरे वह कई भाषाओं को पढ़ने और लिखने में कुशल हो गये. दुनिया की सबसे कठिन भाषाओं में से एक मानी जाने वाली संस्कृत, लैटिन और स्कॉटिश गेलिक भाषा को भी वह समझने लगे थे और इसी के साथ ही अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने दृश्य भाषा को भी समझना शुरू किया. उनकी इस प्रतिभा से उनके पिता बहुत की प्रभावित हुए थे.

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-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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