Baba Harbhajan Singh: ये तो सभी जानते हैं कि भारत में देवी-देवताओं के तमाम मंदिर हैं, जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन देश में एक ऐसा मंदिर भी है जिसमें एक सैनिक की पूजा होती है. क्या इसके बारे में पहले कभी आपने सुना है? हालांकि बहुत ही कम लोग होंगे जो शायद ही इस मंदिर के बारे में जानते हों. तो आइए इस लेख में जानते हैं कौन है वो जांबाज सैनिक और क्यों की जाती है उसकी पूजा?
हम जिस सैनिक की बात कर रहे हैं, उनका नाम बाबा हरभजन सिंह हैं. उनका जन्म 30 अगस्त 1946 को पंजाब के कपूरथला जिले में एक सिख परिवार में हुआ था. 20 वर्ष की छोटी उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए और सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उनको पंजाब रेजिमेंट में शामिल किया गया था. यहां पर उन्होंने एक कुशल सैनिक के तौर पर अपने कर्तव्यों का बखूबी पालन किया.
23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम सीमा पर उनकी तैनाती साल 1968 में हुई थी. बताया जाता है कि वह खच्चर पर सवार होकर जा रहे थे कि तेज बहाव की धारा में डूबकर उनका निधन हो गया था. पानी का तेज बहाव हरभजन सिंह के शरीर को बहाकर दूर ले गया और शव तीन दिन बाद मिला.
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बता दें कि बाबा हरभजन सिंह की सेवा और आध्यात्मिक शक्ति के सम्मान में भारतीय सेना ने उन्हें मानद कैप्टन के रूप में पदोन्नत किया था. बाबा हरभजन सिंह का वेतन उनके परिवार तक हर महीने पहुंचाया जाता रहा और वार्षिक छुट्टी का भी सेना ने पूरा ख्याल रखा और उनको बकायदा छुट्टी भी दी जाती रही और ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक वो सेना से काल्पनिक रूप से सेवानिवृत्त नहीं हुए.
बता दें कि बाबा हरभजन सिंह की 2 महीने की छुट्टी के दौरान सेना हाई अलर्ट पर रहती थी. भारतीय सेना के प्रति उनकी महान सेवा और समर्पण के कारण बाबा हरभजन सिंह को उनके निधन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
बाबा हरभजन के लिए कहा जाता है कि बाबा हरभजन सिंह अपने साथी सैनिक के सपने में आए और बताया कि उनका मृत शरीर कहां पर है. इस पर भारतीय सेना ने जब उनकी तलाश शुरू कि तो उनका शव उसी जगह पर मिला, जो जगह उन्होंने अपने साथी को सपने में बताई थी. यह घटना खूब प्रचारित हुई. इसके बाद पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया था.
कहा जाता है कि हरभजन सिंह अपने साथी सैनिक के सपने में आए थे और समाधि बनाने की की इच्छा भी जाहिर की थी. इसी के बाद 14 हजार फीट की ऊंचाई पर जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच उनकी समाधि बनाई गई. इसी के साथ ही उनका मंदिर भी स्थापित किया गया, जो कि यहीं पर स्थित है और यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.
बता दें कि सिक्किम में बाबा हरभजन सिंह मंदिर तीन कमरों वाले एक बंकर के अंदर बना हुआ है. मुख्य कमरे में हरभजन सिंह के साथ-साथ अन्य हिंदू देवताओं और सिख गुरुओं की एक बड़ी तस्वीर है. इसी के साथ ही दूसरे कमरे में बाबा हरभजन सिंह का निजी कमरा है, जिसमें उनके सभी निजी सामान रखे गए हैं. उसमें साफ-सुथरी वर्दी, पॉलिश किए जूते, अच्छी तरह से रखा हुआ बिस्तर और अन्य घरेलू सामान शामिल हैं. मंदिर के आखिरी कमरे में एक कार्यालय और एक स्टोर रूम है, जिसमें बाबा हरभजन सिंह को अर्पित की गई अन्य वस्तुएं रखी गई हैं. उनका कमरा और वर्दी हर रोज साफ की जाती है. मान्यता है कि रात को उनके जूते पर कीचड़ लगा दिखाई देता है.
बता दें कि बाबा हरभजन सिंह के निधन के दशकों बाद यानी आज भी उनकी पूजा भारतीय सैनिक करते हैं और उनको भगवान की तरह मानते हैं. बता दें कि जिस क्षेत्र में बाबा हरभजन सिंह का शव मिला था वहीं पर मंदिर की स्थापना की गई है. आज भी इस क्षेत्र में तैनात सेना की टुकड़ियां जब भी दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई करने या फिर किसी खतरनाक मिशन पर जाती हैं, तो बाबा का आशीर्वाद जरूर लेती हैं. ये भी मान्यता है कि बाबा हमेशा अपने सैनिकों को विदेशी देशों से होने वाले किसी भी संभावित हमले से पहले ही आगाह कर देते हैं.
बाबा हरभजन सिंह के चमत्कार के किस्से सिक्किम में खूब सुनाई देते हैं. कई बार लोगों ने दावा किया है कि उन्हें कई बार गश्त लगाते हुए और अजनबी लोगों से बात करते हुए भी देखा गया है. सीमा पर भारतीय सैनिक गश्त में जरा सी भी लापरवाही बरतते है तो वो अदृश्य तौर पर जवानों को आगाह करते है. कई सैनिक जो वर्दी के मामले में अनुशासनहीन हैं या जो रात में गश्त करते समय सो जाते हैं, उन्हें अदृश्य हरभजन सिंह थप्पड़ मारकर जगाते हैं. तो वहीं इस घठना को लेकर सैनिक कहते हैं कि वो जब उठकर चारों ओर देखते हैं तो उन्हें कोई नहीं दिखता.
बाबा हरभजन सिंह मंदिर के अनुयायियों के बीच मान्यता प्रचलित है कि यहां रखा गया पानी एक सप्ताह के बाद पवित्र हो जाता है और किसी भी बीमारी को ठीक कर सकता है. इसके अलावा, यहां रखी गई चप्पलें पैरों की समस्याओं आदि से पीड़ित रोगियों की मदद करती हैं. बहुत से लोग जो हरभजन बाबा मंदिर नहीं जा पाते हैं, वे उन्हें धन्यवाद देने या अपनी समस्याओं को हल करने के लिए मदद मांगने के लिए पत्र भेजते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब तक वह काल्पनिक रूप से सेवानिवृत्त नहीं हो गए तब तक हर साल 11 सितंबर को हरभजन सिंह को 2 महीने की छुट्टी दी जाती थी ताकि वह अपने घर जा सकें. सबसे बड़ी बात ये है कि हर साल उनके नाम पर एक बर्थ आरक्षित की जाती थी और पूरी यात्रा के लिए उनकी सीट खाली छोड़ी जाती थी. 11 सितम्बर को सेना उनके सामान को सिलीगुड़ी के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन तक ले जाती थी और फिर ट्रेन से उनके घर तक ले जाती थी.
-भारत एक्सप्रेस
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