बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्तापलट हो चुका है. हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद देश छोड़ दिया था, उन्होंने अभी फिलहाल भारत में शरण ले रखी है. वहीं बांग्लादेश में हुए सियासी उथल-पुथल के बाद देश पर सेना का नियंत्रण हो गया है. सेना ने अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान किया है. बांग्लादेश में सत्ता के खिलाफ उपजे इस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में छात्रों का बड़ा रोल रहा है. जिसमें तीन ऐसे छात्र हैं, जिन्होंने हसीना सरकार के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया. आइये जानते हैं वो तीनों छात्र कौन हैं?
इस फेहरिस्त में पहला नाम नाहिद हसन का है. जो इस आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा है. नाहिद हसन ही वो छात्र है, जिसने हसीना सरकार की नींव को हिला कर रख दिया. हसीना सरकार ने जब आरक्षण का बिल पेश किया था, तभी नाहिद हसन ने सरकार को एक बड़े आंदोलन की चेतावनी दी थी. इस बिल के आने के बाद से ही नाहिद ढाका विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर रहा था.
4 अगस्त को नाहिद हसन ने कहा था कि “आज हमने लाठी उठाई है, लेकिन अगर ये लाठी काम नहीं आती है तो हम हथियार भी उठाने के लिए तैयार हैं. अब शेख हसीना को ये तय करना है कि वे खुद प्रधानमंत्री पद से हटेंगी या फिर खून-खराबा का सहारा लेंगी.” बता दें कि नाहिद हसन को पुलिस ने 20 जुलाई की सुबह बिना किसी जानकारी के उठा लिया था, लेकिन पुलिस ये इनकार करती रही कि उसने नाहिद को हिरासत में लिया है. जबकि एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वर्दी पहने कुछ लोग नाहिद को गाड़ी में बैठाते हुए दिखाई दिए थे. गायब होने के करीब 24 घंटे बाद नाहिद एक पुल के नीचे बेहोशी की हालत में पाया गया था. नाहिद ने दावा किया था कि उसकी बेरहमी से लोहे की रॉड से पिटाई की गई थी.
इस आंदोलन का दूसरा किरदार आसिफ महमूद है. आसिफ महमूद भी ढाका यूनिवर्सिटी का छात्र है. आसिफ आरक्षण के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन से जून के महीने में जुड़ा था. जिसके बाद पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उसे 26 जुलाई को हिरासत में लिया था. रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने हिरासत में लेने के बाद आसिफ को डिटेक्टिव ब्रांच के दफ्तर में रखा था. आसिफ के परिवार, दोस्त और किसी भी रिश्तेदार को मिलने पर रोक लगा रखी थी. 29 जुलाई को आसिफ से मिलने की परमिशन पुलिस ने दी, लेकिन उससे पहले आसिफ ने हिरासत में लिए गए अन्य दोस्तों के साथ मिलकर एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने आंदोलन को वापस लेने की अपील की थी.
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कुछ रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि आसिफ और उसके दोस्तों से जबरन वीडियो बनाकर वायरल कराया गया था. इतना ही नहीं, आसिफ को बेहोशी के इंजेक्शन भी दिए गए, जिससे वो कई दिनों तक बेहोश रहा.
आरक्षण के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले छात्रों में तीसरा नाम अबु बकर मजूमदार का है. अबु बकर ढाका विश्वविद्यालय का छात्र होने के साथ ही सिविल राइट्स और ह्यूमन राइट्स को लेकर काम करता है. 5 जून को जब हाई कोर्ट ने आरक्षण को लेकर फैसला सुनाया था, उसी के बाद इसने अपने साथियों के साथ मिलकर स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन अभियान की शुरुआत की थी. दावा किया जा रहा है कि सरकार ने अबु बकर पर आंदोलन को वापस लेने का भी दबाव बनाया था. अबु बकर ने दावा किया था कि 19 जुलाई को पुलिस ने उसे उठा लिया था और एक बंद कमरे में उसपर आंदोलन को वापस लेने का दबाव बना रही थी. उसने जब ऐसा करने से मना किया तो उसके साथ मारपीट की गई. जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गया था. जिसे बाद में धानमंडी के गोनोशस्थया नगर अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
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रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि जब ये तीनों छात्र पुलिस की हिरासत में थे, तो गृह मंत्री ने बयान जारी कर कहा था कि इन लोगों ने अपनी मर्जी से वीडियो के जरिए आंदोलन को खत्म करने के लिए बयान जारी किया है, हालांकि जब ये तीनों कैद से बाहर आए तो उन्होंने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया था, जिसके बाद आंदोलन और उग्र हो गया. जिसका नतीजा ये हुआ कि शेख हसीना को सत्ता छोड़कर देश से भागना पड़ा.
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-भारत एक्सप्रेस
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