कल्पना कीजिए, आज से लाखों साल बाद दुनिया का नक्शा कैसा होगा. क्या धरती का एक हिस्सा टूटकर एक अलग द्वीप बन जाएगा? क्या एक नया महासागर जन्म लेगा? इन सवालों का जवाब छुपा है पूर्वी अफ्रीका में हो रही उन घटनाओं में, जिन पर वैज्ञानिकों की नजरें टिकी हुई हैं. पूर्वी अफ्रीका के विशाल रेगिस्तानों और मोजाम्बिक से लाल सागर तक फैले इलाकों में धरती की परतें टूट रही हैं. ये कोई साधारण दरारें नहीं हैं. ये दरारें उस भूगर्भीय बदलाव का संकेत दे रही हैं, जो आने वाले समय में एक नया महासागर बना सकती हैं. सोचिए, जहां आज सूखी जमीन है, वहां एक दिन लहरें हिलोरे मारेंगी.
पृथ्वी की सतह विभिन्न टेक्टोनिक प्लेट्स से बनी है, जो लगातार हलचल में रहती हैं. ये प्लेट्स कभी टकराती हैं, तो कभी अलग होती हैं. पूर्वी अफ्रीका में अफ्रीकी प्लेट और सोमाली प्लेट के बीच ऐसा ही कुछ हो रहा है. इन दोनों प्लेट्स के अलग होने की प्रक्रिया ने जमीन में दरारें पैदा कर दी हैं, जो हर साल थोड़ी-थोड़ी चौड़ी हो रही हैं.
यह प्रक्रिया अफ्रीकी महाद्वीप के पूर्वी हिस्से में हो रही है, जिसे ग्रेट रिफ्ट वैली कहते हैं. यह दरार इथियोपियाई रेगिस्तान से शुरू होकर मोजाम्बिक तक फैली हुई है. इस इलाके में लगभग 60 किमी लंबी दरार पहले ही बन चुकी है. यह दरार धीरे-धीरे और बड़ी होती जा रही है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रक्रिया इतनी धीमी है कि इसे पूरी तरह समझने में करोड़ों साल लगेंगे. इस बदलाव के कारण अफ्रीका का पूर्वी हिस्सा अलग होकर एक द्वीप बन सकता है. इन प्लेट्स के अलग होने से समुद्र का पानी दरारों को भर सकता है, जो अंततः एक नए महासागर का निर्माण करेगा.
वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि अटलांटिक महासागर का निर्माण भी कभी इसी तरह की प्रक्रिया के कारण हुआ था. पूर्वी अफ्रीकी दरार में हो रहे बदलाव अतीत की भू-गर्भीय गतिविधियों की याद दिलाते हैं और भविष्य में एक नई भूगर्भीय संरचना का आधार तैयार कर रहे हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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