बांग्लादेश एक और तख्तापलट की ओर अग्रसर है. अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर बांग्लादेश की हालत को छुपाकर विश्व के सामने देश की जो छवि पेश करने की कोशिश की जा रही है, वो कई विकसित राष्ट्रों को स्वीकार नहीं है. शायद यही वजह है कि ह्वाइट हाउस ने एक बयान जारी कर कहा है कि राष्ट्रपति जो बाइडन बांग्लादेश की स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं और अमेरिका धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए देश की अंतरिम सरकार को जवाबदेह ठहराएगा.
‘भारत एक्सप्रेस’ द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की है और विदेश सचिव विक्रम मिस्री भारत का पक्ष मजबूती के साथ मोहम्मद यूनुस के सामने रख दिया है, सरकार पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है.
भारत सबसे बड़ा खरीददार देश
दरअसल जिस तरह से चीन ने हाल के दिनों में श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में सहयोग के नाम पर दखल दिया है, वह न तो भारत को मंजूर है, न अमेरिका को. विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि ऐसा करके चीन चारों तरफ से भारत को घेरना चाहता है, क्योंकि आने वाले अगले 10 साल में चीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती भारत ही बनने वाला है.
भारत का कंज्यूमर मार्कट
भारत की धरती इतनी उर्वर है कि कोई भी विकसित राष्ट्र भारत के बगैर अपना व्यापार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ानेकी कल्पना नहीं कर सकता. भारत का कंज्यूमर मार्कट अपनी बढ़ती क्रय शक्ति के कारण भारत को भविष्य के विकास के लिए प्रमुख उभरते बाजारों में से एक माना जाता है. अपेक्षाकृत समृद्ध वर्ग के साथ-साथ एक बड़ा मध्यम वर्ग और साथ ही आर्थिक रूप से वंचित एक छोटा वर्ग शामिल है. इसके द्वारा किया जाने वाला खर्च 2025 तक दोगुना से अधिक होने का अनुमान है.
बिजनेस एक्सपर्ट का अनुमान है कि अगर बांग्लादेश के 10-11% कपड़ा निर्यात को तिरुप्पुर जैसे भारतीय केंद्रों पर पुनर्निर्देशित (Re-Direct) किया जाता है, तो भारत को मासिक कारोबार में 300-400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त लाभ मिल सकता है. वित्त वर्ष 2023-24 में भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय व्यापार 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जिससे बांग्लादेश उपमहाद्वीप में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार बन गया. हसीना के प्रशासन के तहत दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) समझौते के तहत अधिकांश टैरिफ लाइनों पर डयूटी फ्री पहुंच प्रदान की गई थी.
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर प्रदान कर सकती है. बीजिंग नए शासन के लिए आकर्षक सौदों की पेशकश कर सकता है, जैसे उसने श्रीलंका और मालदीव में शासन परिवर्तन का लाभ उठाया है. बांग्लादेश में अशांति ऐसे समय में आई है, जब भारत को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें पाकिस्तान के साथ तनाव, म्यांमार में अस्थिरता, नेपाल के साथ तनावपूर्ण संबंध, अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता पर कब्जा और मालदीव का भारत के साथ हालिया राजनयिक विवाद शामिल हैं.
2006 में चीन, बांग्लादेश के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरने के बाद से दोनों देशों का संबंध काफी जांच का विषय रहा है. द्विपक्षीय संबंधों के आसपास के अधिकांश शोधों ने दोनों देशों के बीच बढ़ती मित्रता के लिए राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक स्पष्टीकरण प्रदान किए हैं. इसके दीर्घकालिक रणनीतिक फायदे और नुकसान की गणना शायद ही 1971 में की गई थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम पर्यवेक्षकों ने बांग्लादेश के जन्म के आसपास शक्ति के वैश्विक पुनर्गठन के महत्व पर प्रकाश डाला था.
बहरहाल, बांग्लादेश के लिए इसके दो महत्व हैं- चीन ने संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के प्रवेश के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपना पहला वीटो लगाया था, जिसे बाद में 1971 में चीन की भूराजनीतिक गणना का परिणाम माना गया. चीन के लिए, क्या दक्षिण एशिया में अपने सदाबहार दोस्त- पाकिस्तान और उसकी क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए अटूट समर्थन सामने आया. दूसरा, देशों का भू-राजनीतिक महत्व समय के साथ बदलता रहता है, जैसा कि 21वीं सदी के दूसरे दशक में चीन और अमेरिका दोनों के बांग्लादेश को रणनीतिक रूप से मनाने में उलझने से स्पष्ट है. अपनी उपस्थिति स्थापित करने के लिए चीन और भारत के बीच क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का तो जिक्र ही नहीं किया जा रहा है.
भारत-चीन-अमेरिका और बांग्लादेश संबध
अमेरिका, बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यातक देश बना हुआ है – कुल निर्यात का 14.5 प्रतिशत, मुख्य रूप से परिधान, जो देश की मुख्य निर्यात और विदेशी मुद्रा की जीवन रेखा है. हालांकि चीन ने 97 प्रतिशत बांग्लादेशी उत्पादों को शुल्क-मुक्त प्रवेश दे रखा है., जो बांग्लादेशी निर्यात के लिए बाजार की संभावनाओं को सीमित करता है. जर्मनी बांग्लादेश के परिधान व्यापार के लिए शीर्ष निर्यातक देश बना हुआ है, जिसने 2021 में 6.20 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया; जर्मनी कुल मिलाकर बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है, जो कुल निर्यात का 14.2 प्रतिशत है.
भारत और चीन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा में चीन बढ़त हासिल कर रहा है. 2015 में इसने भारत को बांग्लादेश के शीर्ष व्यापारिक भागीदार के रूप में विस्थापित कर दिया, जिससे भारत 40 वर्षों से अपने स्थान से बाहर हो गया. चीन से आयात 2019 में बांग्लादेश के कुल आयात का 34 प्रतिशत था. यह देखते हुए कि चीन एक ही स्रोत से बांग्लादेश के उच्चतम निवेश और द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का स्रोत भी था. नई दिल्ली को स्वाभाविक रूप से लगा कि वह पिछड़ रहा है. जवाब में भारत ने चीन की घुसपैठ का मुकाबला करने के लिए कई प्रकार के उपकरण तैनात किए हैं, जो चीन को पसंद नहीं आ रहा है.
बांग्लादेश में एक और तख्तापलट?
फिलहाल बांग्लादेश में चीन की सक्रियता ने अमेरिका को सतर्क कर दिया है. दरअसल अमेरिका को खतरा चीन से है भारत से नहीं. ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार यह कतई नहीं पसंद करेगी कि अस्थिरता का फायदा उठाकर चीन, बांग्लादेश में वैसे ही घुसपैठ करे जैसे बीजिंग ने श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव मे किया. दरअसल सारा खेल व्यावसायिक भागीदारी और सहयोग का है और जिस तरह की अस्थिरता फिलहाल ढाका में विद्यमान है, अमेरिका की प्राथमिकता बांग्लादेश में चुनी हई सरकार को स्थापित कराने की होगी. भारत इस प्रक्रिया में अमेरिका का सहयोग करेगा. विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि मार्च 2025 तक बांग्लादेश में एक और तख्तापतट देखने को मिल सकता है.
मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि सिस्टम को साफ करने के लिए प्रस्तावित सुधार पूरा होने तक कोई चुनाव नहीं होगा. हालांकि, राजनीतिक दल चाहते हैं कि चुनाव पहले हों और वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सुधार जल्द पूरे किए जाएं. संभावना है कि बांग्लादेश में अगला संसदीय चुनाव 2026 की शुरुआत से पहले न हो और प्रयास किए जा रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और अवामी लीग के अधिकांश नेताओं को बांग्लादेश में भविष्य में चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य बना दिया जाए.
-भारत एक्सप्रेस
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