Post Covid-19 Effect: कोरोना संक्रमण का शिकार हुए लोग आज भी यानी महामारी के गए कई साल बाद भी कमजोरी- थकान, सांस लेने में दिक्कत, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, स्वाद और गंध अनुभव न होना जैसी तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं. तो वहीं कोरोना के बाद हमारी शारीरिक क्षमका कितने प्रतिशत कार्य करने लायक रह गई है इसको लेकर जारी लगातार शोध में भी कई बाते सामने आई हैं. इसी बीच एक शोध में बताया गया है कि कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 वायरस, प्रोटीन जमाव के माध्यम से गुर्दे की क्षति को और खराब कर रहा है.
इस पर चीन में कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी और चिफेंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने शोध किया है. शोध के दौरान उनको मिला है कि गुर्दे में सार्स-सीओवी-2 प्रोटीन का जमाव ‘झिल्लीदार नेफ्रोपैथी’ (एमएन) की घटना और पुनरावृत्ति में योगदान दे रहा है. यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जहां शरीर गुर्दे में छोटी फिल्टरिंग इकाइयों (ग्लोमेरुलाई) पर हमला करता है.
अध्ययन में बायोप्सी-प्रमाणित एमएन वाले 38 रोगियों को शामिल किया गया था, इनमें कोविड के बाद नई शुरुआत प्रोटीनुरिया – मूत्र में हाई प्रोटीन विकसित हुई थी, और महामारी से पहले निदान किए गए प्राथमिक एमएन वाले 100 रोगियों को नियंत्रण (कंट्रोल्स) के रूप में शामिल किया गया था. किडनी इंटरनेशनल रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोधपत्र में टीम ने कहा, “38 में से 13 मरीज सार्स-सीओवी-2 न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन के लिए पॉजिटिव पाए गए. नियंत्रण रोगियों की तुलना में, कोविड संक्रमण के बाद रोगियों में नैदानिक अभिव्यक्तियां अधिक गंभीर थी.” शोध के दौरान ये भी पाया गया है कि सार्स-सीओवी-2 प्रोटीन के सकारात्मक स्तर वाले लोगों में “नेफ्रोटिक सिंड्रोम का उच्च अनुपात, सीरम एल्ब्यूमिन का निम्न स्तर और नकारात्मक सार्स-सीओवी-2 प्रोटीन के स्तर वाले रोगियों की तुलना में गुर्दे के अंतरालीय फाइब्रोसिस की अधिक गंभीरता थी.”
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शोधकर्ताओं ने बताया है कि “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि सार्स-सीओवी-2 संक्रमण एपिथेलियल कोशिकाओं के नीचे वायरल प्रोटीन के जमाव में योगदान कर सकता है और पोडोसाइट (गुर्दे की कोशिकाओं) को नुकसान पहुंचा सकता है.” इसी के साथ ही शोधकर्ताओं ने कहा है कि पिछले अध्ययनों में कोविड रोगियों के गुर्दे की चोट के साथ गुर्दे की नलिका एपिथेलियल कोशिकाओं में सार्स-सीओवी-2 को मुख्य रूप से दिखाया गया था लेकिन नए अध्ययन में पहली बार ग्लोमेरुलर बेसमेंट झिल्ली के साथ सार्स-सीओवी-2 न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन के जमाव को देखा गया. फिर भी शोधकर्ताओं ने नोट किया कि “सार्स-सीओवी-2 प्रोटीन जमाव और एमएन के रोगजनन के बीच संबंध अस्पष्ट बना हुआ है.”
शोधकर्ताओं ने ये भी बताया है कि एमएन वयस्क नेफ्रोटिक सिंड्रोम का सबसे आम रोगात्मक प्रकार है – एक किडनी विकार जिसके कारण शरीर मूत्र में बहुत अधिक प्रोटीन उत्सर्जित करता है. इसकी विशेषता ग्लोमेरुलर एपिथेलियल कोशिकाओं के नीचे प्रतिरक्षा परिसरों के जमाव से होती है, इसमें विशिष्ट एंटीजन, आईजीजी और कंप्लीमेंट मेम्ब्रेंस अटैक कॉम्प्लैक्स (एमएसी) शामिल हैं. लगभग 70 प्रतिशत एमएन को प्राथमिक माना जाता है, जबकि शेष 30 प्रतिशत विभिन्न एटियलजि के कारण होते हैं, जिनमें हेपेटाइटिस वायरस जैसे संक्रमण महत्वपूर्ण द्वितीयक कारणों में से एक हैं. हालांकि रिसर्चर्स ने आगे जांच की बात भी कही है. इसी के साथ ही कोविड प्रभावित लोगों को सलाह दी है कि वे अपनी रूटीन चेकअप कराते रहें और अपने चिकित्सक से लगातार परामर्श करते रहें.
-भारत एक्सप्रेस
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