सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले और राष्ट्रपति के फैसले को पलटते हुए 25 साल बाद एक व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है. क्योंकि अपराध करने के दौरान उसकी मात्र 14 साल थी. लेकिन उसे बालिग मानकर सजा सुनाई गई. जस्टिस सुंदरेश की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला देते हुए कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें अपीलकर्ता अदालतों की गलतियों के चलते पीड़ित है.
कोर्ट ने कहा कि दोषी ओम प्रकाश ने ट्रायल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान बार-बार अपने नाबालिग होने की दलील दी थी. लेकिन अदालतों ने दस्तावेजों को अनदेखा करके या उन को गंभीरता से नहीं देखकर अन्याय किया है. कोर्ट ने कहा कि हमें बताया गया है कि जेल में ओम प्रकाश का जेल में आचरण नॉर्मल है. कोई गलत रिपोर्ट नही है. उसने समाज में फिर से घुलने मिलने का अवसर खो दिया. उसने अपनी गलती के बिना जो समय खो दिया है. वह कभी वापस नही सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को ओम प्रकाश के पुनर्वास के लिए केंद्र या राज्य सरकार की किसी भी कल्याणकारी योजना की पहचान करने और उसकी रिहाई के बाद समाज में सुचारू रूप से पुनः एकीकरण की सुविधा प्रदान करने के लिए समुचित कदम उठाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने विधिक प्राधिकरण को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत आजीविका आश्रय और भरण पोषण के उसके अधिकार पर विशेष जोर देने में सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया है.
बता दें कि साल 1994 में एक आर्मी ऑफिसर के परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी गई. हत्या के आरोप में साल 2000 में मौत की सजा सुनाई गई. 2012 में राष्ट्रपति ने मौत की सजा को 60 साल की कैद में तब्दील कर दिया.
– भारत एक्सप्रेस
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