संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सदस्य देशों में 1 जनवरी, 2025 से बदलाव होने जा रहा है. इस बदलाव में पाकिस्तान एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल होगा. इससे उसे आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने के मामलों में एक प्रकार की ‘वीटो शक्ति’ प्राप्त होगी, जिसका वह अक्सर अपने हितों के लिए उपयोग करता रहा है.
पाकिस्तान जून 2024 में सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था. वह अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र की दो सीटों में से एक पर जापान की जगह लेगा और 2025-2026 तक इस सीट पर बना रहेगा.
इस्लामाबाद को अब ऐसे मामलों में चीन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जैसे 26/11 मुंबई हमलों के साजिशकर्ता साजिद मीर को बचाने के लिए. सुरक्षा परिषद की ‘इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा प्रतिबंध समिति’ के जरिए वह ऐसे आतंकवादियों और समूहों को प्रतिबंधों से बचाने का प्रयास कर सकता है.
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में केवल स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति प्राप्त है, लेकिन प्रतिबंध समितियों के मामलों में गैर-स्थायी सदस्य भी सर्वसम्मति के आधार पर प्रभावी शक्ति रखते हैं.
भारत ने लंबे समय से प्रतिबंध समितियों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग की है. भारत का आरोप है कि ये समितियाँ अस्पष्ट और गैर-पारदर्शी प्रक्रियाओं पर आधारित हैं.
भारत ने इसे “भूमिगत प्रक्रिया” करार दिया है, जो कानूनी आधार के बिना काम करती है. ‘इस्लामिक स्टेट-अल-कायदा प्रतिबंध पैनल’ के पूर्व प्रमुख न्यूजीलैंड ने भी इन प्रक्रियाओं की आलोचना करते हुए कहा था कि यह समिति की प्रभावशीलता में सबसे बड़ी बाधा है.
सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को अब कश्मीर का मुद्दा जोर-शोर से उठाने का मंच मिल जाएगा. हालांकि, इसे वैश्विक समर्थन हासिल करना मुश्किल होगा. पाकिस्तान ने हमेशा कश्मीर को फिलिस्तीन समस्या से जोड़ने की कोशिश की है, लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा देशों को अपने पक्ष में नहीं ला सका है.
पाकिस्तान सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता जुलाई 2025 में करेगा, जब वह अपनी पसंद के विषयों पर चर्चा के लिए ‘सिग्नेचर इवेंट्स’ आयोजित कर सकता है. यह इवेंट भारत और कश्मीर से जुड़े दुष्प्रचार का हिस्सा हो सकते हैं.
जापान के हटने से सुरक्षा परिषद के ध्रुवीकरण में सूक्ष्म बदलाव देखने को मिलेगा. चीन, रूस और पाकिस्तान के गठजोड़ से कई मुद्दों पर दबाव बन सकता है. वहीं, दक्षिण कोरिया जैसे पश्चिम समर्थक देशों के साथ संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
पाकिस्तान फिलिस्तीन मुद्दे पर खुलकर समर्थन करता आया है और सुरक्षा परिषद में भी इस मुद्दे को उठाने की उम्मीद है. इससे वह अमेरिका के साथ आमने-सामने आ सकता है.
भारत के खिलाफ आतंकवाद को समर्थन देने वाला पाकिस्तान, अपने खिलाफ सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे समूहों की आलोचना करता है. वह अफगानिस्तान पर आरोप लगाता है कि टीटीपी को वहां से समर्थन मिलता है.
पाकिस्तान को एशिया-प्रशांत समूह की ओर से सर्वसम्मति से चुना गया. इस समूह में 53 सदस्य देश शामिल हैं. पाकिस्तान को चीन, सऊदी अरब, ईरान, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, लेबनान और सिंगापुर जैसे देशों का समर्थन प्राप्त हुआ. 193 सदस्यीय महासभा में पाकिस्तान को 182 वोट मिले, जो उसकी आठवीं बार सुरक्षा परिषद में उपस्थिति सुनिश्चित करता है.
सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान की उपस्थिति भारत और क्षेत्रीय राजनीति के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर सकती है. आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर उसका रुख, उसके विरोधाभासी रवैये को और स्पष्ट करेगा. अब यह देखना होगा कि आने वाले दो वर्षों में पाकिस्तान इस भूमिका को कैसे निभाता है और वैश्विक राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है.
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-भारत एक्सप्रेस
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