वो कहते है न जिसने भी जन्म लिया उसका मरना भी तय है. ये कड़वी सच्चाई है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है, लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया में एक ऐसा शहर भी है, जहां पर 70 सालों में कोई इंसान मरा नहीं है. हम जानते हैं यह पढ़कर आपको अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह पूरी तरह से सच है. अगर आप सोच रहे हैं अगर इस शहर में मरना मना है, तो यकीनन यहां कब्रिस्तान भी नहीं होगा. लेकिन ऐसा नहीं है यहां कब्रिस्तान तो है, पर 70 सालों से इस शहर में किसी को भी दफनाया नहीं गया है.
हम बात कर रहे हैं नार्वे (Norway) के एक छोटे से शहर लॉन्गइयरबेन (Longyearbyen) की, इस आइलैंड पर ठंड के मौसम में तापमान इतना कम हो जाता है कि जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है और इसी कारण यहां मरने की भी इजाजत नहीं है. यहां पिछले 70 सालों में किसी की भी मौत नहीं हुई है.
अब आपको बताते हैं कि आखिर यहां मौत का आना क्यों मना है. दरअसल, ठंड के चलते डेड बॉडी (Dead Body) कई सालों तक ऐसी की ऐसी ही पड़ी रहती है. कड़ाके की ठंड की वजह से न तो वो गलती है और न ही सड़ती है. इस वजह से शवों को नष्ट करने में सालों लग जाता है. लंबे समय तक शव नष्ट नहीं होते.
कुछ साल पहले जब वैज्ञानिकों ने एक बॉडी पर शोध किया तो पाया कि साल 1917 में जिस शख्स की मौत इनफ्लुएंजा की वजह से हुई थी, उसके शरीर में इनफ्लुएंजा के वायरस जस के तस पड़े थे. इससे इस इलाके में ये बीमारी फैल सकती थी. इस जांच के बाद प्रशासन ने इस इलाके में लोगों के मरने पर रोक लगा दी है.
इसके बाद लोगों में खौफ हो गया था. इंनफ्लुएंजा (Influenza) के वायरस (Virus) जस के तस पड़े रहने से लोगों पर बिमारी का खतरा मंडराने लगा था. इसके बाद प्रशासन ने शहर में मौत पर पाबंदी लगा दी थी. अब अगर यहां कोई व्यक्ति मरने वाला होता है या उसे कोई इमरजेंसी आती है तो उस व्यक्ति को हेलिकॉप्टर की मदद से देश के दूसरे क्षेत्र में ले जाया जाता है और मरने के बाद वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.
इस शहर में साल पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों और एडवेंचर टूरिस्ट्स का जमावड़ा लगा रहता है. सामान्य लोग इस जगह जाना पसंद नहीं करते हैं. 2000 हजार की आबादी वाले इस शहर में अगर कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है, तो उसे प्लेन या हेलीकॉपटर से दूसरी जगह पर पहुंचा दिया जाता है और मरने के बाद वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.
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