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चुनावों के दौरान धारा 144 लगाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया? क्या है पूरा मामला…

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि चुनाव के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए जुलूस और बैठकें आयोजित करने की अनुमति मांगने वाले आवेदनों पर राज्य प्रशासन के अधिकारियों द्वारा तीन दिनों की समयावधि के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए. एक्टिविस्ट अरुणा रॉय और निखिल डे द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह निर्देश दिया.

पीठ ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 144 का उपयोग करके ऐसी सभाओं की अनुमति देने से इनकार करने पर आश्चर्य व्यक्त किया.

अदालत ने सवाल उठाया

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस गवई ने पूछा, ‘वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’ कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा और आदेश दिया कि अनुमति के लिए ऐसे आवेदनों पर आवेदन दायर करने की तारीख से 3 दिनों के भीतर फैसला किया जाए.

अदालत ने कहा, ‘यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने चुनाव के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए यात्राएं आयोजित करने की अनुमति के लिए आवेदन किया था. इस पर निर्णय नहीं लिया गया है. हम निर्देश देते हैं कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा सक्षम प्राधिकारियों को कोई आवेदन दिया जाता है, तो ऐसे आवेदन के तीन दिनों के भीतर उस पर निर्णय लिया जाएगा.’

पीठ मौजूदा लोकसभा चुनावों के बीच सीआरपीसी की धारा 144 लगाने के आदेश को चुनौती देने वाली एक्टिविस्ट अरुणा रॉय और निखिल डे द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी.

याचिकाकर्ताओं की दलील

वकील प्रसन्ना एस. के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि मजिस्ट्रेटों और राज्य सरकारों को धारा 144 के तहत इस तरह के अंधाधुंध आदेश पारित करने से रोका जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस तरह की कार्रवाई वोट देने के अधिकार में अवैध हस्तक्षेप है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सार्वजनिक भागीदारी को विफल और बाधित करती है.

याचिका में कहा गया है, धारा 144 निषेधाज्ञा आदेश को बार-बार लागू करने से राज्य को नियम के रूप में अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति मिल गई है. यह स्पष्ट रूप से अनुपातहीन होने के कारण स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है. अधिकारी केवल इस अनुमान के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकते कि चुनावों की घोषणा हो जाने के कारण सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा खड़ा हो जाएगा. ये आदेश न तो वैध हैं, न ही कम से कम प्रतिबंधात्मक हैं, न ही लोकतांत्रिक समाज में स्पष्ट रूप से आवश्यक हैं.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण पेश हुए थे. भूषण ने कहा कि जब तक शांति भंग होने की आशंका न हो तब तक धारा 144 का आदेश जारी नहीं कर सकते. यह आदेशा चुनाव से पहले किया जा रहा है, जिसके कारण सभी रैलियां रोक दी गई हैं.

-भारत एक्सप्रेस

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