लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी शुरू हो गई है, सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ही अपने अपने तरीके से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने किसी नेता को उतारने की है जो सरकार की नीतियों से बेहतर जनता को योजना दे सके और मोदी के वाकपटुता का संजीदगी से जवाब दे सके. फिलहाल जो नाम मोदी के सामने है उसमें मल्लिकार्जुन खड़गे, नीतीश कुमार और स्वयं राहुल गांधी है जिनके तरकश में तीर तो है लेकिन वे निशाने से लगातार चूक रहे हैं.
अब बात मुद्दे की…मोदी के तरकश में चार वो तीर है जिसके सहारे वो एक सौ 40 करोड़ आबादी वाले देश भारत में करीब 117 करोड़ जनता से किसी न किसी तरह सीधे संवाद करते हैं. मसलन फ्री राशन योजना- 81 करोड़, आयुष्मान भारत- 22 करोड़, उज्जवला योजना- 10 करोड़ और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत करीब 4 करोड़ लोगों को घर यानी कुल 117 करोड़ की आबादी. वैसे तो मोदी सरकार की योजना घर-घर तक पहुंच चुकी है, फिर भी अगर हम 117 करोड़ डेटा को ही डिकोड करें तो करीब 58 करोड़ वोटर तक मोदी सरकार की डारेक्ट पहुंच है. इस आबादी को और नीचे तक डिकोड करें तो करीब 29 करोड़ मतदाता ( वोटिंग प्रतिशत को हम अगर 50 % ही माने ) मोदी की इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं. इनका भी अगर आधा वोट बीजेपी को मिलता है तो कुल मतदाता करीब 15 करोड़ बनता है जो कुल आबादी का 10 फीसदी है, बीजेपी एक काडर बेस्ड पार्टी है जिनके बारे में कहा जाता है कि हर दूसरा व्यक्ति मोदी के काम की या तो चर्चा करता है या फिर आलोचना करता है ऐसे में अगर 33 फीसदी मतदाता भी 2024 में “एक बार फिर मोदी सरकार” के स्लोगन को अपने हृदय में उतार लेता है और सरकारी योजना के 10 फीसदी लाभार्थी भी मौजूदा सरकार में ही भरोसा जताते हैं तो भी बीजेपी के पक्ष में 43 % मतदान होता दिखाई पड़ता है जो 2019 के 37.4 वोट शेयर से करीब पांच फीसदी जादा है, ऐसे में भाजपा 2024 के आम चुनाव में एक बार फिर 300 से ज्यादा सीटें जीतती हुई दिखाई पड़ती है.
सन 1984 के लोकसभा चुनाव में देश के मतदाता पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में Polarized थे. इस समय देश की जनता राष्ट्रीय अस्मिता और हिंदुत्व के नाम पर भाजपा के पक्ष में Polarized दिख रही है. सही तस्वीर तो तब सामने आएगी जब 22 जनवरी 2024 को भगवान “श्री राम ” के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरा हो जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक भाजपा का मत प्रतिशत 2019 के मुकाबले 05 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है जो 1984 में कांग्रेस को मिले मत प्रतिशत के बराबर है, ऐसे में काफी मुमकिन है कि एनडीए को इस चुनाव में 414 से ज्यादा सीटें मिले. भाजपा को 2019 में 37.4 % वोट मिले थे जो बढ़कर 43 फीसदी होने की संभावना है और 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को मिले वोट प्रतिशत के निकट संभावित है.
हौसले के तरकश में कोशिश का वो तीर जिंदा रखो, हार जाओ जिंदगी में सब कुछ मगर फिर से जीतने की उम्मीद जिंदा रखो..
अब I.N.D.I Alliance के लिए हौसले के तरकश में कोशिश के तीर को जिंदा रखने की बारी है, अलाएंस के लोग नीतीश को नेता मानने को तैयार नहीं है और देश राहुल गांधी के नेतृत्व के दो बार नकार चुका है ऐसे में बचते है सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे, जो North Vs South के जियोग्रैफिकल डिवाइड में मोदी के मुकाबले फिट तो बैठते हैं, लेकिन उनकी पार्टी का चुनावी इन्फ्रास्ट्रक्चर बीजेपी के चुनावी तंत्र के सामने काफी लचर है. जिसका एक नमूना हाल में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के परिणाम में देखने को मिला. ऐसा नहीं है कि देश में मुद्दों की कमी है, मुद्दे काफी हैं. लेकिन उसे उठाकर देशव्यापी आंदोलन बनाने के लिए एक नेता चाहिए. जो कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव में तो दिखाई दे. चाहे वे खुद राहुल गांधी ही क्यों ना हो.
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नीतीश कुमार का समय अब लद चुका है. उनकी पार्टी गैर बीजेपी गठबंधन में किसी भी और दल के साथ समझौता करके 2019 के परिणाम को नहीं दुहरा सकती, उनकी पार्टी भाजपा के साथ मिलकर पिछले लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीत पाई थी. इस बार I.N.D.I Alliance के साथ अगर वो चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें 16 सीट से ज्यादा सीटों पर लड़ने की इजाजत नहीं मिलेगी. सामने मुकाबला भाजपा से है. जिसका अगर बिहार में बहुत खराब प्रदर्शन हुआ तब भी कम से कम 20 सीटें जितेगी. ऐसे में नीतीश के खाते में 06 से 08 सीटें ही आती हैं और 10 सीट से कम जीतकर आप मोदी को भला कैसे चुनौती दे सकते है, जिनकी पार्टी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पिछले चार साल से लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है.
ममता बनर्जी किसी भी हाल में बंगाल में फिर से कांग्रेस के पनपते हुए नहीं देखना चाहती हैं, शरद पवार के लिए समय और परिस्थिति दोनो माकूल नहीं है महाराष्ट्र में भतीजे अजीत पवार के बागी हो जाने से उनके हौसले पस्त हैं. हालांकि राजनीति क्रिकेट की तरह ही अनिश्चितताओं का खेल है. चाहे वह 1977 का चुनाव हो या फिर 2004 का चुनाव परिणाम. न तो कांगेस के मन के अनुरूप आया, और न ही भाजपा के मन के अनुरूप, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में मुद्दा सिर्फ और सिर्फ “ मोदी की गारंटी है” जिसका काट फिलहाल I.N.D.I Alliance के पास नहीं है.
-भारत एक्सप्रेस
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