बीते साल जिमखाना क्लब में वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर प्रशासक नियुक्त कराने वाला कंपनी कार्य मंत्रालय बीस महीने में एक भी मामले की जांच नहीं करा पाया है. हैरानी की बात है कि रिटायर्ड होने के बाद यहां नियुक्त होने वाले कई पूर्व नौकरशाह खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में फंस रहे हैं. क्लब के सदस्य अब इनके विरोध में एकजुट होने लगे हैं. जानकारों की माने तो इन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो सरकारी निदेशक ही सरकार की फजीहत करा सकते हैं.
जिमखाना प्रबंधन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए नियुक्त सरकारी निदेशकों की कार्यशैली ओर सवाल उठने लगे हैं. जिसके चलते क्लब सदस्यों ने नियमों का हवाला देकर 15 जनवरी को आम सभा की बैठक बुलाने की मांग की है. आरोप है कि क्लब और सरकार के बीच चल रहे मुक़दमे की पैरवी के लिए सरकारी निदेशकों ने क्लब के ही करोड़ों रुपए अपने चहेते वकीलों को फीस के तौर पर दे दिए. अनिवार्य नियमों की अनदेखी कर आम सभा की बैठक भी नहीं बुलाई. इतना ही नहीं एक खास कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए ठेका देने की कवायद भी जारी है.
दरअसल भारत सरकार के कंपनी कार्य मंत्रालय ने जिमखाना क्लब में नियमों का उल्लंघन करने और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिनके चलते एनसीएलएटी ने फरवरी 2021 में यहां प्रशासक नियुक्त कर दिया. लेकिन डेढ़ साल से ज्यादा समय बीतने के बावजूद कंपनी कार्य मंत्रालय के प्रशासक और निदेशक क्लब प्रबंधन के खिलाफ अनियमितता और भ्रष्टाचार से जुड़े एक भी मामले की जांच नहीं कर पाए. आरोप है कि सेवानिवृत्ति के बाद क्लब में नियुक्त होने वाले कृपा-पात्रों ने तो क्लब को आरामगाह बना डाला. यही वजह है कि इनमें से कई पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं.
बीते साल तत्कालीन प्रशासक ओम पाठक ने आम सभा की बैठक बुलाई थी. पाठक द्वारा 23 दिसंबर 2021 को बैठक में पेश रिपोर्ट को 95 करीब फीसदी वोटों के साथ सदस्यों ने खारिज कर दिया. जिसके बाद क्लब के सरकारी प्रबंधकों ने आम सभा की बैठक ही नहीं बुलाई. आरोप है कि सरकारी निदेशक क्लब के पैसा गलत तरीके से उड़ा रहे हैं. बीते डेढ़ साल के भीतर सरकारी निदेशकों ने क्लब का 50 करोड़ रुपए से ज़्यादा खर्च कर दिया. यही वजह है कि क्लब के तीस सदस्यों ने आर्टिकल 32 के माध्यम से अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए 15 जनवरी को आम सभा की बैठक बुलाने के लिए जनरल कमेटी को पत्र लिखा है.
पत्र में दिए गए एजेंडे के अनुसार पहला बिंदु दिसंबर 2022 में ख़ारिज हुई आम सभा को फिर से बुलाने, वित्त वर्ष 2020-21 का लेखा-जोखा पेश करने, अप्रैल 2021 से अभी तक खर्च क्लब के पैसा का हिसाब पेश करने और कानूनी लड़ाई पर खर्च की गई राशि सार्वजनिक करने के मुद्दे पर चर्चा की जानी है. आम सभा में यह भी चर्चा होगी कि क्लब प्रबंधन पर लगे आरोपों की जांच के लिए सरकारी निदेशकों ने क्या-क्या जांच और कार्रवाई की है. इतना ही नहीं डेविस कप के मामले में भी विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है.
क्लब सूत्रों के अनुसार इस साल अप्रैल में क्लब में नियुक्त निदेशकों में से कुछ लोग अपने संदिग्ध क्रियाकलापों के कारण जवाबदेही से बच रहे हैं. इनमें से एक निदेशक ने कुछ मामलों में क्लब की पैरवी करने वाले पुराने वकील को हटाकर अपनी चहेती लॉ फर्म को ठेका दिला दिया. हैरानी की बात है कि पुराना वकील जो काम ढाई हजार रुपए में करता था, अब उसी काम के लिए 25 हजार प्रति पेशी के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है.
क्लब निदेशकों पर आरोप है कि उन्होंने 26 अगस्त को अवैध तरीके से क्लब में सचिव की नियुक्ति कर दी. क्लब संविधान के अनुसार बैठक में कम से कम छह निदेशकों की अनिवार्य मौजूदगी के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकता है. मगर क्लब में नियुक्त छह निदेशकों में से एक ने जुलाई में इस्तीफ़ा दे दिया था. ऐसे में क्लब के बाकी पांच सदस्य कोई निर्णय ले ही नहीं सकते थे. लेकिन क्लब की जनरल कमेटी की बैठक में ना तो नियमों की परवाह की गई और ना ही मंत्रालय को समय पर इसकी जानकारी दी गई.
नियुक्ति के तुरंत बाद क्लब के अध्यक्ष बने पूर्व आईपीएस मलय सिन्हा भी आरोपों में फंस गए हैं. आरोप है कि क्लब के आईटी प्रबंधक की नोटिंग और अवैध तरीके से नियुक्त किए गए क्लब सचिव राजीव होरा और सहायक सचिव की स्वीकृति को आधार बनाकर मलय सिन्हा ने करीब 85 लाख के कंप्यूटर और हार्डवेयर खरीदने की मंजूरी दे दी. जबकि इसके लिए आम सभा से अनुमति लेकर वित्तीय नियमों का पालन किया जाना चाहिए था. आरोप यह भी है कि पुराना सॉफ्टवेयर सही होने के बावजूद नए कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर इसलिए खरीदने की तैयारी की जा रही है ताकि एक खास कंपनी को इसका फायदा पहुंचाया जा सके.
मलय सिन्हा कहते हैं कि जनरल कमेटी सारा काम नियम-कायदों के तहत कर रही है. सभी कार्य अदालत के आदेशानुसार ही किए जा रहे हैं. इसमें सभी जीसी सदस्यों का सहयोग और सहमति शामिल रहती है. इतना ही नहीं हर मामले में सामान्य वित्तीय नियमों का पालन भी किया जा रहा है. लेकिन अवैध तौर पर राजीव होरा की सचिव पद पर नियुक्ति, करीब 85 लाख के कंप्यूटर और हार्डवेयर खरीदने की कवायद से जुड़े आरोप और आम सभा के लिए क्लब सदस्यों द्वारा लिखे गए ईमेल के बारे में कोई जवाब नहीं देते.
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