विश्लेषण

घरों को बर्बाद करता सट्टा

चुनावी मौसम हो या कोई टूर्नामेंट, सटोरियों की हमेशा मौज ही रहती है. इस आधुनिक जुए के खेल ने अपनी गिरफ़्त में करोड़ों घर बर्बाद किए हैं. आए दिन अखबारों में खबर छपती हैं कि किसी ने सट्टे में हारी हुई रकम न अदा कर पाने के चलते या तो अपनी जमीन, वाहन या ज़ेवर बेच दिये या परिवार सहित आत्महत्या कर ली. सवाल उठता है कि सीधे-सादे लोग जो मेहनत कर अपनी घर का चूल्हा-चौका चला रहे होते हैं उन्हें सट्टे की आदत कैसे पड़ती है? दूसरों की बर्बादी देखने के बावजूद सट्टेबाजी इतनी लोकप्रिय क्यों हो रही है? मशहूर खिलाड़ी और अभिनेता इस खेल के बदले हुए स्वरूप ‘गेमिंग ऐप’ के लिए विज्ञापन कर बेकसूर लोगों को क्यों इस चक्रव्यूह में फंसा रहे हैं? क्या इसके लिए सूचना क्रांति को जिम्मेदार ठहराया जाए?

जब भी कभी क्रिकेट, फुटबॉल या अन्य किसी लोकप्रिय खेल के टूर्नामेंट की धूम मचती है वैसे ही सट्टा बाज़ार भी अपने पांव पसार लेता है. आधुनिकता के चलते ऐसे कई गेमिंग ऐप सामने आ चुके हैं जो लुभावने विज्ञापन बना कर सीधे-सादे लोगों को इस काले कारोबार के मायाजाल में फंसा लेते हैं. शुरुआत में एक छोटी सी जीत ही काफ़ी होती है किसी को इस जाल में आसानी फंसाने के लिए. मिसाल के तौर पर यदि कोई व्यक्ति किसी मित्र या जानकार को जीतता हुआ देखता है तो उत्सुकतावश वो भी एक छोटी सी रक़म किसी खिलाड़ी या टीम पर लगा देता है. यदि मित्र की सलाह काम कर जाए और बताई गई टीम या खिलाड़ी पर लगी बाज़ी जीत में बदल जाती है तो लगता है कि बिना कुछ परिश्रम किए घर बैठे ही पैसे कमा लिए. बस इतना ही काफ़ी होता है सट्टे की लत लगने के लिये.

ऐसा ही कुछ होता है चुनावों के नतीजों के अनुमानों को लेकर. जैसे ही चुनाव संपन्न हो जाते हैं सट्टा बाजार गर्म होना शुरू हो जाता है. कभी-कभी तो कई चरणों में संपन्न होने वाले चुनावों को सट्टा बाजार के भाव और उससे संबंधित खबरें प्रभावित भी करने का काम करते हैं. ऐसे में कभी-कभी चुनावी उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टी का समर्थन करने वाले भी इस पशोपेश में हो जाते हैं कि कहीं उनके द्वारा दिया गया मत जाया तो नहीं गया? परंतु चुनावों में ऐसा नहीं होता कि चुनावी नतीजों को सट्टा बाजार नियंत्रित करे. चुनावों में जिस भी पार्टी या उम्मीदवार की हवा होती है वही विजयी होता है क्योंकि उसके काम को ही जनता का समर्थन मिलता है. सट्टा बाजार के आकलन को तो केवल मनोरंजन की दृष्टि से देखना चाहिए. अभी तक ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं मिला है जहां सट्टा बाज़ार ने चुनावी नतीजों को प्रभावित कर उन्हें बदल दिया हो.

वहीं अगर खेलों की बात करें तो ज्यादातर सट्टेबाजी अंडरवर्ल्ड के माफियाओं द्वारा संचालित होती है. वो किसी न किसी रूप में खेल और खिलाड़ियों दोनों को अपने तरीके से प्रभावित करने की कोशिश में लगे रहते हैं. वो अपने फायदे में मैचों को फिक्स कराना भी चाहते हैं. उनके द्वारा खिलाड़ियों को फांसने की कोशिश भी की जाती है. ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब कोई खिलाड़ी उनके जाल में नहीं फंसना चाहता तो उन्हें धमकियां भी मिली हैं. पिछले कुछ बरसों में एशियाई मुल्कों में मैच फिक्सिंग और स्पाट फिक्सिंग की घटनाएं भी बढ़ी हैं.

ऐसा नहीं है कि जांच एजेंसियों के पास इस ख़तरनाक खेल की कोई जानकारी नहीं है. पिछले दिनों कई गेमिंग एप की शिकायत मिलने पर जांच एजेंसियों ने कड़ी कार्यवाही भी की. परंतु इन गोरखधंधे को चलाने वाले कभी पकड़े नहीं जाते. केवल उनके प्यादे ही बलि का बकरा बनते हैं. एक अनुमान के तहत भारत का सट्टा बाजार करीब तीन लाख करोड़ या इससे अधिक रकम का है. क्रिकेट के खेल को ही लें तो इस खेल में सट्टेबाजी का धंधा हर मैच पर करीब दो सौ करोड़ रुपए का है. परंतु अघोषित तौर पर ये आंकड़ा सात सौ करोड़ रुपए का बताया जाता है. सट्टेबाजी के गैरकानूनी माफिया सिंडिकेट, आधुनिक मैच फिक्सर्स क्रिकेट में अपने पैर जमा चुके हैं. कारोबार इतने व्यवस्थित तरीके से चलता है कि कोई सोच भी नहीं सकता.

परंतु इस गोरखधंधे में हारने वाले मासूम लोग यह नहीं जानते कि लालच के चलते जल्दी ज़्यादा पैसा कमाने के चक्कर में वे अपने बाप-दादा की मेहनत से बनाई हुई जमीन जायदाद को गिरवी या बेचने में क्षण बाहर भी नहीं लगाते. बहकावे में आकर जब यह सट्टा हार जाते हैं तो या तो मजदूरी करने को मजबूर हो जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं. सोचने वाली बात है कि सट्टे या जुए के खेल में कोई हारता है तो कोई जीतता है. परंतु सट्टा खिलाने वालों का घर हमेशा भरा रहता है. सट्टा चलाने वाले माफिया अपने प्यादों की मदद से मासूमों को फंसाते हैं और अपने धंधे को बढ़ाते हैं. परंतु एक बात इस खेल में एक बात अहम है कि ‘सट्टे की जीत बुरी है’. क्योंकि सट्टे की जीत ही है जो उसकी लत लगाती है, यदि कोई सट्टे के शुरुआती दौर में हारने लग जाए तो वो सचेत हो जाएगा और आगे नहीं खेलेगा. इसलिए सट्टे की यह कड़वी सच्चाई जानने के बाद जहां तक हो सके सट्टे से बच कर रहें और बर्बादी की ओर न जाएं.

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं.

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

Recent Posts

दिल्ली की हवा हुई जहरीली, 400 के करीब पहुंचा औसत एक्यूआई

Delhi Air Quality: दीपावली के बाद से ही राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली की हवा जहरीली…

5 mins ago

अमेरिका में कैसे चुना जाता है नया राष्ट्रपति, क्या है ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ सिस्टम

US Presidential Elections 2024: दुनिया की निगाह अमेरिका में 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति…

13 mins ago

महिला पर विवादित टिप्पणी के चलते संजय राउत के भाई सुनील राउत पर मुकदमा दर्ज

Sunil Raut Controversial Comment: शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार और संजय राउत के भाई सुनील राउत…

35 mins ago

BJP नेता गौरव वल्लभ का बड़ा बयान, ’23 नवंबर से बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुनकर झारखंड से बाहर खदेड़ा जाएगा’

Jharkhand Assembly Election 2024: बीजेपी नेता गौरव वल्लभ ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को यह…

56 mins ago

Delhi Waqf Board Case: आप के खिलाफ दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने को लेकर कोर्ट 6 नवंबर को सुनाएगा फैसला

दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़े धन शोधन के मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के…

11 hours ago