विश्लेषण

कृष्णानंद राय की हत्या से सहम उठा था पूर्वांचल, मुख्तार का नाम आया था सामने

Krishnanand Rai Murder: तारीख थी 29 नवम्बर और वर्ष था 2005. उस दिन कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने मात्र एक पार्टी या प्रदेश को ही नहीं बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. आखिर मामला एके 47, विधायिका, अपराध और लोगों के जीवन से जो जुड़ा हुआ था.

देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार गए बमुश्किल एक वर्ष ही हुए थे और देश में यूपीए गठबंधन की सरकार ने बागडोर संभाली थी कि उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक कृष्णानंद राय (Krishnanand Rai) समेत 7 लोगों की सरेआम एके 47 से लगभग 500 राउंड फायरिंग करके हत्या कर दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर में 100 से अधिक गोलियों के निशान मिले थे और सातों लोगों के शरीर में 67 गोलियां मिली थीं.

2002 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कृष्णानन्द राय ने गाजीपुर जिले के 378 – मुहम्मदाबाद विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी तौर पर चुनाव में भाग लिया और 5 बार के विधायक अफजाल अंसारी (Afzal Ansari) को शिकस्त दी थी. यह विजय भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ी विजय के तौर पर देखी जा रही थी क्योंकि 5 बार के विधायक को उस समय चुनावी मैदान में वह भी पूर्वांचल में हराना आसान बात नहीं थी.

जानकारों के अनुसार, क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई साल 2000 के आसपास से चली आ रही थी. 2005 में हुए हत्याकांड को भी उसी वर्चस्व की लड़ाई से जोड़कर देखा जाता है. सामान्यतः तो कृष्णानन्द राय बुलेटप्रूफ गाड़ी से चलते थे लेकिन उस दिन संयोगवश वह मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के भांवरकोल ब्लाक के सियाड़ी गांव में आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन करने के बाद सियाड़ी से लट्ठुडीह – कोटवा मार्ग के बसनिया चट्टी के पास पहुंचे ही थे कि पहले से घात लगाकर बैठे अपराधियों ने 29 नवंबर वर्ष 2005 को अचानक उनके काफिले पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार कर दी. अपराधियों ने स्वचालित हथियारों से भाजपा विधायक कृष्णानंद राय व उनके छह साथियों मुहम्मदाबाद के पूर्व ब्लाक प्रमुख श्यामाशंकर राय, भांवरकोल ब्लाक के भाजपा मंडल अध्यक्ष रमेश राय, अखिलेश राय, शेषनाथ पटेल, मुन्ना यादव व उनके अंगरक्षक निर्भय नारायण उपाध्याय की हत्या कर दी थी.

यह कृष्णानन्द राय की शख्सियत का ही कमाल था कि ये हत्याकांड अखबारों के एक दो पन्नों तक ही सिमटकर नहीं रहा, बल्कि इससे पूरा पूर्वांचल सहम उठा था और इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि इस हत्याकांड से चारों ओर हड़कंप मच गया था. लगभग एक सप्ताह तक गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी, बक्सर के साथ ही आगजनी, तोड़फोड़ आंदोलनों का दौर चलता रहा. उस समय पूरा पूर्वांचल सहमा हुआ दिख रहा था. स्थानीय लोगों के अनुसार कृष्णानन्द राय (K N Rai) गरीबों की हर तरह से मदद करते थे. यहां तक कि लड़कियों की शादी में वह अपने स्तर से उनकी मदद किया करते थे.

जब यह वारदात हुई थी, तो उस वक्त सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. उस दरम्यान राजनाथ सिंह से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक भारतीय जनता पार्टी के अधिकांशत: शीर्ष नेता गाजीपुर आ गये थे और वाराणसी में राजनाथ सिंह तो तत्कालीन विधायक अजय राय के साथ कई दिन धरने पर भी बैठे रहे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) इस घटना की सीबीआई (CBI) जांच कराएं, लेकिन मुलायम सिंह यादव तैयार नहीं हुए थे. बहुत कोशिशों के बाद स्व. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय (Alka Rai) की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत की ओर से पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया और सीबीआई कोर्ट में यह मुकदमा चला.

केस सीबीआई कोर्ट में तकरीबन 14 वर्षों तक चला लेकिन पर्याप्त सबूत न होने की वजह से कोई आरोपी सिद्ध नहीं हो सका, जो कि इस हत्याकांड का सबसे निराशाजनक पहलू रहा.

Divyendu Rai

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