प्लास्टिक एक धीमा जहर है, ये हम नहीं रिसर्च कहता है. वैज्ञानिकों को रिसर्च में मस्तिष्क के उस हिस्से में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं, जो सूंघने की क्षमता को नियंत्रित करता है. प्लास्टिक कोशिकाओं तक में घुसपैठ कर रहा है, और उनमें बदलाव कर रहा है. इंसानी शरीर में प्लास्टिक के इन महीन कणों की मात्रा अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है. दुनिया में शायद ही कोई ऐसी जगह बची हो, जहां पर प्लास्टिक और उसके महीन कण मौजूद न हों. वैज्ञानिकों को हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई में यहां तक की हवा और बादल में भी प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं.
प्लास्टिक में BPA और phthalates जैसे रसायन होते हैं. प्लास्टिक बैग्स जब अल्ट्रावॉयलेट रेज के संपर्क में आती हैं तो उनसे ग्रीन हाउस गैस निकलती है. प्लास्टिक के इस्तेमाल से सीसा, कैडमियम और पारा जैसे कैमिकल सीधे इंसानी शरीर के संपर्क में आते हैं. ये जहरीले पदार्थ कैंसर, जन्मजात विकलांगता, इम्यून सिस्टम और बचपन में बच्चों के विकास को प्रभावित कर सकते है. BPA थायराइड हार्मोन रिसेप्टर को कम करता है जिससे हाइपोथायरायडिज्म हो सकता है. प्लास्टिक के कारण हम कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं. प्लास्टिक को जलाने से डॉयोक्सीन नाम गैस निकलती है, जिसके कारण कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.
मानव प्लेसेंटा में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पुष्टि की जा चुकी है. ये अपने साथ ऐसे पदार्थ ले जाता है जो हार्मोन के नियमित को कंट्रोल करने के काम पर असर डालता है. मानव स्वास्थ्य पर ऑक्सीडेटिव तनाव के साथ-साथ क्रोनिक डीएनए पर असर डालते हैं.
प्लास्टिक निर्माण के समय निकलने वाली जहरीली गैस पर्यावरण को प्रदूषित करती है. प्लास्टिक की बैग्स में स्टोर किया गया या रखा हुआ खाना बहुत जल्दी खराब होने लगता है. प्लास्टिक के तत्वों के भोजन में मिल जाने से अस्थमा, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. प्लास्टिक बैग्स पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ रहा है.
किडनी और गले की बीमारी, बांझपन और हार्मोन बिगड़ने का बड़ा कारण प्लास्टिक की थैलियों में गर्म खाने को पैक करने की वजहें हैं. दरअसल, प्लास्टिक की थैलियों में पॉलीविनाइल क्लोराइड और पॉलीस्टाइनिन होता है.
समुद्र में फेंका जाने वाला प्लास्टिक आखिर में किसी न किसी रूप में वापस आ ही जाता है. असल में लैंडफिल और दूसरे वातावरणों में प्लास्टिक कचरे से माइक्रो प्लास्टिक जमीन और आस-पास के जलस्रोतों से रिसता है. प्लास्टिक से प्रदूषित जमीन की पैदावार के इस्तेमाल के जरिए वो इंसानी शरीर में भी पहुंच रहा है.
प्लास्टिक मौत का सामान बन गया है. इसका रिसाइकिल नहीं होने पाने की वजह से भी परेशानियां बढ़ती जा रही है. इसके लिए जरूरी है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा हो और वो इसके इस्तेमाल को कम से कमतर करने की कोशिश करें. प्लास्टिक की समस्या से निजात पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सख्त कानून बनाए जाने की कोशिश शुरू हुई है लेकिन, इसको लेकर दुनियाभर के देशों में आम सहमति बनाना बड़ी चुनौती है. प्लास्टिक पूरे सिस्टम को तहस नहस कर रहा है और दुनियाभर के देशों को इसके उत्पादन और इस्तेमाल पर रोक लगाना होगा. प्लास्टिक से छुटकारा पाना हर हाल में जरूरी है.
दुनियाभर हो रहे प्लास्टिक के इस्तेमाल और उसके कचरे से होने वाली परेशानियां अब अलार्मिंग स्टेज में पहुंच गई है. मौजूदा वक्त में ही इसका निपटारा एक चुनौती है और अगर इसका इस्तेमाल कम नहीं हुआ तो इकोसिस्टम पूरी तरह से तहस-नहस हो जाएगा.
प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम किया जाना चाहिए, साथ ही बच्चों के टिफिन, पानी की बोतल आदि के लिए प्लास्टिक वाली चीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. प्लास्टिक के टिफिन में न तो गर्म खाना रखें, न ही इसे माइक्रोवेब करें. इससे प्लास्टिक में मौजूद कैमिकल्स के पिघलने और उसके खाने में मिल जाने की संभावना बनी रहती है. प्लास्टिक के डिब्बों में खाने-पीने का समान नहीं खरीदें. इससे जहरीले पदार्थों से अपनी हिफाजत कर सकते हैं साथ ही प्लास्टिक का कचरे भी कम होगा. सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल न करें. दोबारा इस्तेमाल होने वाली पानी की बोतल, कपड़े की किराने की थैलियाँ और कांच के कंटेनर का इस्तेमाल ज्यादा बेहतर विकल्प है. इससे हेल्थ को तो नुकसान नहीं ही होगा साथ ही आर्थिक नुकसान को भी कम से कमतर किया जा सकेगा.
वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्यावरण, धरती, पशु-पक्षी ही नहीं खुद इंसान के लिए भी प्लास्टिक खासकर यूज एंड थ्रो पॉलीथिन बैग का इस्तेमाल बेहद ही खतरनाक है. लोगों में इसको लेकर जागरूकता की कमी है. पॉलीथिन बैग में सब्जी या फल बंद करके रखने से उन तक हवा नहीं पहुंच पाती है. पॉलीथिन बैग में रखे सामान पर बैक्टीरिया जल्दी पनपता है जिससे वह सामान जल्दी खराब हो जाता है. पॉलीथिन बैग में गर्म खाना पैक करने से भी केमिकल रिएक्शन होती है. इन केमिकल से हॉर्मोनल बदलाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं.
प्लास्टिक महामारी से निपटने के लिए, एक अच्छा पहला कदम एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन और खपत पर प्रतिबंध लगाना है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसके संकट पर गौर करते हुए 2040 तक प्लास्टिक के उत्पादन और प्रदूषण में 80 प्रतिशत तक की कटौती का प्रस्ताव किया है. इसके लिए बाकायदा कड़े अंतरराष्ट्रीय कानून बना कर इसी साल पारित किया जाना है. हालांकि इस प्रस्ताव से कई तेल निर्यातक देशों को दिक्कत है लेकिन 175 देशों ने इस पर अपनी सहमति जताई है.
ये भी पढ़ें- पीछे हटने को तैयार नहीं किसान
प्लास्टिक धीमा जहर है और ये पूरे वातावरण को अपनी चपेट में लेता जा रहा है. धरती पर इसके बढ़ रहे बोझ को कम करके ही वातावरण को सुरक्षित किया जा सकता है. प्लास्टिक प्रदूषण धरती की मौत की तीव्रता को बढ़ा रही है. करोड़ों टन इकट्ठा हो चुके प्लास्टिक के कचरे के निपटारे के साथ ही इसकी रोकथाम की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे. प्लास्टिक रिसाइकिलिंग के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी. प्लास्टिक सुविधा नहीं मौत है और इसे हर किसी को समझना होगा और तभी इसकी रोकथाम भी हो पाएगी.
-भारत एक्सप्रेस
जून, 2022 में योजना के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया गया, जिसमें देश में डिजाइन, विकसित…
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में…
ओडिशा में दो कोयला ब्लॉक के आवंटन से संबंधित कथित कोयला घोटाला मामले में राऊज…
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (NCPUL) के तत्वावधान में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में…
आलिया और शेन की पहली मुलाकात 2020 के कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुई थी. इसके…
आध्यात्मिक गुरु सतगुरु ने भारतीय संसद में बढ़ते व्यवधानों पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने…