विश्लेषण

खाड़ी में बारिश से तबाही, क्या बदल रहा है मौसम का मिजाज

खाड़ी देशों में आंधी तूफान और भारी वर्षा इन दिनों पूरी दुनिया को चौका रही है। रेगिस्तानी इलाकों में इतनी बड़ी बारिश और तबाही का मंजर कैसे हो गया? क्या यह जलवायु परिवर्तन का असर है या कुदरत के काम में मानव की दखलंदाजी का परिणाम है।

बेमौसमी बारिश की जद में कई देश

भयानक आंधी तूफान से खाड़ी के चार देश सऊदी अरब, बहरीन, कतर, ओमान में भयंकर तबाही मच गई, जिसमें सऊदी अरब अमीरात (यूएई) में इस भारी वर्षा और तूफान से स्थिति गंभीर हो गई। राजधानी अबु धाबी सहित आधुनिक शहर दुबई में चारों तरफ पानी ही पानी हो गया। जनजीवन अस्तव्यस्त और सभी गतिविधियां रुक गईं। वहीं ओमान में तूफान और भारी बारिश का कहर ऐसा हुआ कि न जानें कितनी ही जिंदगी चली गईं तो  वहीं बाढ़ से नदिया ऊफान लेने लगी, जिनकी जद में कई शहर आ गए। काफी लोगों को एयरलिफ्ट कर बचाया गया।

यही नहीं इसी दौरान पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान और खैबरपख्तून सहित अफगानिस्तान के इलाकों में भी भारी बारिश की वजह से लोग त्राहिमाम कर रहे है। इन देशों में हालात सुधरने तक लोगों को बाहर निकलने की मनाही है। पाकिस्तान डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने 22 अप्रैल तक भारी बारिश ओलावृष्टि का अलर्ट जारी किया है।

गगन चुंबी इमारतों का शहर दुबई डूबा

प्राकृतिक तूफान से दुबई का हाल तो ऐसा हुआ कि 15 और 16 अप्रैल को दो दिन की वर्षा से पूरी दुबई डूब गई। आंधी तूफान से ऊंची इमारतों की बालकनी में रखे सामान उड़ गए। लोगों की कारें जहां तहां डूब गई। मॉल, घर और बड़े बड़े ऑफिसों की इमारतों में अंदर तक पानी घुस गया। दुनिया के सबसे व्यस्ततम एयरपोर्ट में से एक दुबई अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जलमग्न हो गया। तमाम अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं और हवाई जहाजों को पार्क करने के लिए जलमग्न एयरपोर्ट पर ऊंचाई पर जगह तलाशनी पड़ी। सड़कों पर वाहनों की जगह बचाव के लिए रबर नाव चलने लगीं। कभी इतना पानी नहीं बरसने के कारण ड्रेनेज सिस्टम भी तैयार नहीं, दुबई क्या आबूधाबी जैसे शहर भी ताल तलैया बन गए।

क्या क्लाउड सीडिंग से बढ़ा मंजर

संयुक्त अरब अमीरात रेगिस्तान में बसे अपने शहरों को हरा भरा करने और घटते सीमित भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए अक्सर साल में करीब कितनी ही बार क्लाउड सीडिंग से करीब 1000 घंटे वर्षा कराता है। इससे 30 से 35 प्रतिशत अधिक बारिश हो जाती है। हालांकि यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि इस घटना से पहले कृत्रिम बारिश के कितने प्रयास हुए। लेकिन दुबई में इस तरह की भारी वर्षा नहीं हुई।

कृत्रिम बारिश करने के लिए विज्ञान ने ईजाद तो कर ली है। कुछ वर्ष पहले चीन में जब ओलंपिक खेल हुए तो खबर थी की उद्घाटन से पहले बादलों को क्लाउड सीडिंग पहले ही वर्षा कर दी गई। दुबई में भी कृत्रिम बारिश करने के लिए एयरक्राफ्ट के जरिए कैमिकल का छिड़काव कर क्लाउड सीडिंग की जाती है। लेकिन अभी यह कहना मुश्किल है कि किस प्रयास से कितनी अधिक बारिश होगी। परंतु क्लाउड सीडिंग से इतना तो जरूर है की मौसम में बदलाव लाने को मानव की प्रकृति से छेड़छाड़ का दुस्साहस कर रहा है। विज्ञान ने काफी प्रगति की है लेकिन अभी भी वह प्रकृति से कोसों दूर है, मनचाही बारिश कराना और हवा चलाना अभी भी मानव के कंट्रोल में नहीं है।

यह अटकले लगाई जा रही हैं कि क्लाउड सीडिंग ने इस भारी वर्षा में योगदान दिया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आंधी तूफान लाने वाले वाले सिस्टम और एजेंसियों ने पहले ही पूर्वानुमान लगाकर भारी आंधी तूफान और बारिश की चेतावनी दे दी थी। फिर ओमान और बहरीन में तो क्लाउड सीडिंग नही की गई, फिर वहां क्यों भारी बारिश हुई। समझा जा रहा है कि समुद्री इलाके में भारी दवाब के चलते तबाही की बारिश हुई है। प्रश्न यह है कि आखिर खाड़ी देशों में इस तरह आंधी तूफान और बारिश क्यों हो रहे हैं। जबकि खड़ी देशों में आमतौर पर इन दिनों बारिश नही होती। विशेषज्ञों का मानना है कि मिडिल ईस्ट में मौसम बदलने के पीछे की वजह है कि दक्षिण पश्चिम की ओर से लो प्रेशर है और इसी प्रेशर की वजह से बने बादलों ने मिडिल ईस्ट के इन देशों में कहर ढाया।

दुबई में टूटा 75 साल का रिकॉर्ड

पिछले 75 साल में दुबई में इतनी भारी बारिश नहीं हुई है। दो दिन में डेढ़ दो साल में होने वाली बारिश के बराबर पानी बरस गया। सऊदी अरब में पानी से तबाही के मंजर को देखकर लोग दंग रह गए। आखिर रेगिस्तान में इतना पानी कैसे बरस गया। यूएई में 15 और 16 अप्रैल को बारिश हुई और इन दो दिन की बारिश में पूरा यूएई डूब गया। इन दो दिनों में 120 मिलीमीटर बारिश हुई जबकि दुबई में पूरे साल में लगभग 90 मिलीमीटर बारिश होती है।

द वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर में दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के मौसम संबंधी आंकड़े बताते हैं कि सोमवार को देर रात से सुबह तक लगभग 20 मिलीमीटर बारिश हुई। फिर मंगलवार सुबह शुरु हुई बारिश ने 24 घंटे में 142 मिलीमीटर (5.59 इंच) बारिश कर दी। जबकि दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पूरे वर्ष में कुल 94.7 मिलीमीटर (3.73 इंच) ही बारिश होती है।

जलवायु परिवर्तन का मौसम पर प्रभाव

मात्र दो दिन में पूरे साल भर के बराबर बारिश का होना जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की ओर इंगित करता है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में बड़े तूफानों, बाढ़, सूखा और जंगलों की आग के लिए जिम्मेदार है। ऐसी घटनाएं जो पिछले 75 साल में ना हुई हो और एकाएक हो जाएं यह बहुत ही चिंताजनक बात है। संयुक्त राष्ट्र की कॉप 28 जलवायु वार्ता हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात में ही हुई, जिसमें बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग की चिताओं से निपटने के लिए रोड मैप भी बनाए गए।

जलवायु परिवर्तन का ये है असर

समुद्र तल बढ़ रहा है, वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री से ऊपर की दिशा की ओर है। सर्दी के मौसम में गर्मी और गर्मी के मौसम में सर्दी, तापमान ऊपर नीचे, कहीं इलाके सूख रहे हैं तो कहीं वनों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं। यूएई जैसे रेगिस्तानी इलाकों में भारी वर्षा और तबाही की घटनाएं हो रही हैं। ये बढ़ती मौसमी घटनाएं जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम हैं।

अभी नही संभले तो आगे क्या

वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी और मौसम के बदलावों को लेकर संयुक्त राष्ट्र में 1992 में चिंतन बैठक हुई थी और इसे लेकर पेरिस समझौता हुआ था। फिर 1992 में रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में रोड मैप तैयार किया गया। इस सम्मेलन के उप महासचिव रहे नितिन देसाई ने डाउन टू अर्थ को दिए एक इंटरव्यू में बताया की उस समय अमेरिका जैसे कई देश इस बात को लेकर संशय में थे कि क्या वाकई में इंसानों की वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की पहली रिपोर्ट में तो खुले तौर पर इसे जिम्मेदार नहीं माना था लेकिन 2001 में अपनी तीसरी रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की गई की इंसानों की वजह से भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है। आज तो इस बात पर आम सहमति भी है।

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जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तत्काल काम करने के लिए सभी देशों को अपनी योजनाओं को बताने और उनके लक्ष्य को पाने की जरूरत है। नहीं तो दुबई जैसी घटनाएं होना आम बात हो जाएगी।

अनिरूद्ध गौड़, वरिष्ठ पत्रकार

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