विश्लेषण

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी!

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी. लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे. कफ़ील आज़र अमरोहवी ने जब अपनी ये नज़्म लिखी होगी तब उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं होगा कि उनकी नज़्म के शेर कई परिस्थितियों में इस्तेमाल किए जाएंगे. जब भी कभी किसी रहस्यमयी घटना का आंशिक पर्दाफ़ाश होता है तो अक्सर इसी शेर को याद किया जाता है. आपने संसद में भी माननीय सांसदों से इस शेर को कई बार सुना होगा. आज इस शेर को एक बार फिर से याद किया जा रहा है. कारण है जम्मू कश्मीर की घाटी में घटी एक घटना का, जिसने पूरे देश को अचंभे में डाल रखा है.

पिछले दिनों एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें एक शख़्स ने ख़ुद को प्रधानमंत्री कार्यालय का एक बड़ा अधिकारी बता कर जम्मू कश्मीर में ‘जेड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा ले ली और उन्हीं के संरक्षण में सीमावर्ती राज्य के कई संवेदनशील इलाक़ों में भी चला गया. डॉक्टर किरण पटेल नाम के इस अधिकारी ने सरकारी चिन्ह वाले अपने कार्ड भी छपवा रखे थे. अक्तूबर 2022 से फ़रवरी 2023 तक इसने जम्मू कश्मीर के कई ‘सरकारी दौरे’ भी कर डाले. इतना ही नहीं वहां के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कुछ महत्वपूर्ण मामलों में मीटिंग भी की. उन अधिकारियों पर अपना रौब भी दिखाया. अपने मित्रों में अपने रुतबे का दिखावा करने की मंशा से, कई संवेदनशील इलाक़ों में सुरक्षाकर्मियों के साथ फ़ोटो और वीडियो को सोशल मीडिया पर भी डाला.

ऐसे वीडियो और सरकारी तंत्र के रुतबे को देख कर कौन होगा जो ऐसे व्यक्ति को वास्तव में प्रधान मंत्री कार्यालय का एक बड़ा अधिकारी ना मान ले. इसके पाखंड का भांडा तब फूटा जब इसने फ़रवरी 2023 में ही जम्मू कश्मीर में कई दौरे कर डाले. एक अधिकारी को जब संदेह हुआ तो उसने दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में फ़ोन लगा कर इस व्यक्ति के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही. जब पता चला कि न तो इस नाम का कोई व्यक्ति है और न ही वो पद प्रधान मंत्री कार्यालय में है. जब दिल्ली से ये पूछा गया कि ये जानकारी क्यों ली जा रही है तो श्रीनगर के अधिकारी ने सब सच बताया. दोनों अधिकारियों ने यह तय किया कि इस ठग को रंगे हाथों पकड़ा जाए. जब श्रीनगर पुलिस ने इसे किसी वशिष्ठ व्यक्ति से मिलवाने के लिए कहा तो ये बहरूपिया तुरंत राज़ी हो गया. इसकी ख़ुशी उस समय थम गई जब हमेशा कि तरह उसे बुलेट प्रूफ़ गाड़ी में बैठाने के बजाय पुलिस की साधारण गाड़ी में बिठाया गया. उसके बाद जो भी हुआ वो आप सबको पता ही है.

जम्मू कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ शेष पाल वैद ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया कि जब भी कभी किसी व्यक्ति को ‘जेड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाती है तो संबंधित अधिकारियों को लिखित सूचना दी जाती है. इस मामले में क्योंकि ये व्यक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन था तो तय नियमों के अनुसार दिल्ली से जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को सूचना भेजी जाती. जो कि इस मामले में नहीं भेजी गई. इसलिए इस ठग को प्रदान की गई सुरक्षा ग़ैर क़ानूनी है. इसके साथ ही डॉ. वैद के अनुसार इस पद के अधिकारी को ज़ेड प्लस की सुरक्षा प्रदान करने का कोई प्रावधान ही नहीं है. ऐसी सुरक्षा तो केवल अति वशिष्ठ व्यक्तियों को ही दी जाती है किसी आम अधिकारी को नहीं. जिस तरह से किरण पटेल को सरकारी सुरक्षा के घेरे में घाटी के संवेदनशील इलाक़ों में घूमते हुए देखा गया है उसे सुरक्षा में चूक मानने से इनकार नहीं किया जा सकता.

ग़ौरतलब है कि अकसर यह देखा जाता है कि यदि कभी कोई चरवाहा गलती से भी सरहद पार करके इस पार या उस पार चला जाए तो दोनों देशों की पुलिस, ख़ुफ़िया विभाग और सेना उसे जासूस मान कर उसकी सख़्ती से पूछताछ करतीं हैं. बाद में भले ही वो चरवाहा बेक़सूर साबित हो लेकिन उसकी जांच किए बिना उसे छोड़ा नहीं जाता. इस मामले में देखा जाए तो जब यह साबित हो चुका है कि किरण पटेल बहरूपिया बन कर ख़ुद को प्रधानमंत्री कार्यालय का एक वरिष्ठ अधिकारी बता रहा था तो क्या पुलिस, ख़ुफ़िया विभाग और सेना इसे जासूस समझ कर इसकी पूछताछ करेंगे? क्या इस बहरूपिये को बिना जांच किए सुरक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करवाने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही होगी?

आज के दौर में ये बात आम हो चुकी है कि जब भी हमें किसी सरकारी दफ़्तर में जाना होता है तो बिना एंट्री पास के आप उस कार्यालय में नहीं घुस सकते. एक दफ़्तर में एंट्री पास के लिए भी नियम तय होते हैं, जिनका पालन सख़्ती से किया जाता है. उसी तरह किसी को उच्च श्रेणी की सुरक्षा व अन्य सुविधाएं देने के लिए भी तय नियम होते हैं. सूचना क्रांति के इस युग में प्रधान मंत्री कार्यालय समेत किसी भी मंत्रालय या सरकारी दफ़्तर में तैनात अधिकारियों की जानकारी आम आदमी को बड़ी आसानी से मिल जाती है. सरकारी अधिकारियों को यह जानकारी लेने में कुछ ही क्षण लगते हैं. फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि जब किरण पटेल पहली बार घाटी के ‘सरकारी दौरे’ पर आया तो उसके बारे में जाँच नहीं हुई? अब जब मामले ने तूल पकड़ लिया है तो जांच होना तो स्वाभाविक ही है. परंतु इस जांच की आंच कितनी दूर तक जाएगी यह तो आनेवाला समय ही बताएगा.

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं.

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

Recent Posts

Pollution: फिर खराब हुई दिल्‍ली की हवा, ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंचा AQI

Air Pollution In Delhi: दिल्ली के नौ इलाकों में एक्यूआई का स्तर 300 से ऊपर…

18 mins ago

1984 के सिख विरोधी दंगा पीड़ितों को मिले Job Letter, कहा- सुरक्षित नजर आ रहा हमारे बच्चों का भविष्य

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (LG VK Saxena) ने कुछ दिन पहले तिलक विहार इलाके…

19 mins ago

Maharashtra Election Result: शुरुआती रुझानों में महायुति और एमवीए के बीच कड़ी टक्कर, भाजपा और शिवसेना को बढ़त

Maharashtra Election Result: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में डाले गए वोटों की गिनती शुरू हो गई…

35 mins ago

Maharashtra Assembly Election 2024: बीजेपी मुख्यालय में जलेबी की मिठास, सिद्धिविनायक में शायना एनसी की आराधना, सियासी हलचल तेज!

Maharashtra Assembly Election 2024: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों से पहले उम्मीदवार पूजा-अर्चना और…

1 hour ago

Uttar Pradesh Bypolls: सपा बोली- मतगणना में बेईमानी न होने दें, वरना चुनाव आयोग के खिलाफ होगा आंदोलन

उत्तर प्रदेश की कटेहरी, करहल, मीरापुर, गाजियाबाद, मझवान, खैर, फूलपुर, कुंदरकी और सीसामऊ सीटों पर…

1 hour ago