विश्लेषण

मोदी राज में अटकलों की कोई जगह नहीं

पाँच राज्यों के चुनाव संपन्न होते ही भाजपा द्वारा जीते गये तीन राज्यों में ‘कौन बनेगा मुख्य मंत्री’ को लेकर काफ़ी अटकलें लगने लगी। सभी राजनैतिक पंडित, पत्रकार और विश्लेषक अनुमान लगाने लग गये कि तीन राज्यों में किसका चेहरा सामने आएगा। परंतु इसके साथ ही सभी का यह मानना था कि मोदी राज में किसी भी तरह की अटकलों की कोई भी जगह नहीं है। यह बात भी चर्चा में आती है कि जब भी किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति होने वाली होती है तो यदि व्यक्ति का नाम उस पद के लिए उठने लगता है तो उसे वह पद नहीं मिलता। प्रधान मंत्री मोदी एक ऐसे चेहरे को सामने लाते हैं जिसका किसी को कोई भी अंदाज़ा नहीं होता।

कुछ वर्ष पहले जब ‘राडिया टेप्स’ का खुलासा हुआ था तो, काफ़ी हंगामा मचा था कि किस तरह महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों को कुछ पत्रकार और कॉर्पोरेट जगत के लोग नियंत्रित करते हैं। इसके चलते उस समय की सरकार विपक्ष के सवालों के घेरे में थी। परंतु किसी भी दल की सरकार हो वह बिना कॉर्पोरेट के सहयोग के नहीं चलती। जो भी कॉर्पोरेट घराने जिस भी सरकार का सहयोग करते हैं स्वाभाविक है कि वो बदले में कुछ न कुछ तो लेंगे ही। इसलिए हर नियुक्ति पर उनकी सलाह को अहमियत दी जाती है। परंतु मोदी सरकार में ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिला है जहां नियुक्तियों को लेकर किसी कॉर्पोरेट घराने का दख़ल दिखाई दिया हो। अलबत्ता विपक्षी दल भाजपा सरकार पर नियुक्तियों के मामले में  कुछ कॉर्पोरेट घरानों के प्रति ‘नज़दीकी’ का आरोप लगाती आई है।

जिस तरह तीन राज्यों में मोदी सरकार ने नये चेहरों को राज्य के मुखिया के रूप में पदासीन किया है उससे पूरे भाजपा काडर में दो तरह के संदेश गये हैं। पहला यह कि भले ही आप पहली बार ही चुनाव जीते हों आप राज्य के मुख्य मंत्री भी बन सकते हैं। दूसरा यह कि भले ही आपकी लोकप्रियता बहुत अधिक हो, होगा वही जो पार्टी की आला कमान तय करेगी, आप तो पार्टी के कार्यकर्ता ही रहेंगे। ऐसे में जो भी स्थानीय नेता पार्टी के बैनर तले अपनी राजनीति करते हैं उन्हें यह समझना होगा कि जब तक उनके सर पर भाजपा जैसे किसी बड़े दल का हाथ है तभी तक उनकी राजनीति बढ़ती रहेगी। जैसे ही कोई लोकप्रिय नेता पार्टी आला कमान के साथ नाफ़रमानी करेगा उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। फिर वो नेता चाहे किसी भी राज्य का मुख्य मंत्री रह चुका हो और अपने समर्थकों द्वारा हंगामा खड़ा करवाए या मीडिया में अपने समर्थकों द्वारा भावुक वीडियो डलवाए। इन हथकंडों से कुछ नहीं होने वाला।

किसी भी क्षेत्र में जब नये चेहरों को सामने लाया जाता है तो यही समझा जाता है कि उस क्षेत्र के वरिष्ठ लोगों ने अपना उत्तराधिकारी चुनने का फ़ैसला कर लिया है और सभी लोग उसे स्वीकार लेते हैं। ऐसा आप हर क्षेत्र में देखते हैं फिर वो चाहे खेल जगत हो, कॉर्पोरेट जगत हो या राजनीति। परिवर्तन हों तो तय ही है। परंतु जब भी किसी क्षेत्र के एक लोकप्रिय चेहरे को किसी महत्वपूर्ण पद से हटाया जाता है तो कभी-कभी वो विद्रोह का रास्ता भी अपनाने की सोचता है। इसलिए आए दिन आपको कॉर्पोरेट जगत, फ़िल्म जगत या राजनीति में ऐसे विद्रोह दिखाई देते हैं जो विभाजन करने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में एक मज़बूत घराना चाहे वो कॉर्पोरेट या राजनैतिक ही क्यों न हो बिखराव की ओर चल देता है। ऐसा होना उस परिवार के लिए बहुत घातक साबित होता है।

राजनीति में जब भी किसी बड़े क़द्दावर नेता को मुख्य धारा की राजनीति से हटाना होता है तो उन्हें काफ़ी सम्मान के साथ या तो ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेज दिया जाता है या किसी राज्य का राज्यपाल बना दिया जाता है। ऐसे में उस नेता को समझ लेना चाहिए कि उनकी राजनैतिक पारी की समाप्ति हो चुकी है और उन्हें इस ‘राजनैतिक वनवास’ को स्वीकार लेना चाहिए। पिछले कुछ दशकों में ऐसे कुछ उदाहरण सामने आए हैं जहां विभिन्न दलों के कुछ क़द्दावर नेताओं ने बग़ावत करने की तो सोची, परंतु किन्ही कारणों से या तो उन्हें भरपूर समर्थन नहीं मिला या समर्थकों ने भी इस बात का अंदाज़ा लगा लिया कि नई पीढ़ी के साथ चलने में ही भलाई है। नतीजा यह होता है कि इन बाग़ी नेताओं को पहले जो पद सहज मिल रहा था अब उन्हें उस पद के लिए काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी। ऐसे में जब ‘चिड़िया दाना चुग लेती है’ तो पछताने से कुछ भी हाथ नहीं लगता।

मोदी सरकार में किसी भी पद पर नियुक्ति की भविष्यवाणी का नहीं किए जाना एक सीधा संदेश है कि प्रधान मंत्री मोदी की हर कार्यकर्ता पर नज़र है और उसे उसकी मेहनत के अनुसार ही उचित इनाम या दंड दिया जाएगा। यदि कोई भी कार्यकर्ता अपनी क्षमता से अधिक महत्वाकांक्षी होगा तो उसे उसके परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए। भाजपा जैसे एक मज़बूत दल को किसी कार्यकर्ता द्वारा चुनौती देना आसान नहीं होगा। वहीं किसी भी बड़े दल के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी यह समझ लेना चाहिए कि स्थानीय क़द्दावर नेताओं को उनका उचित सम्मान भी दिया जाए और टिकट बँटवारे में उनके अनुभव को भी सही स्थान मिले। हर राजनैतिक दल एक परिवार की तरह होता है और परिवार के हर सदस्य को पूरी अहमियत दी जानी चाहिए। कोई भी सरकार या दल केवल अटकलों के आधार पर नहीं चल सकता उसके लिए सभी पहलुओं को देखना आवश्यक होता है।

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

Recent Posts

Madhya Pradesh: सौरभ शर्मा मामले में ED की हुई एंट्री, मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज, DRI भी जांच में जुटी

भोपाल के मिंडोरा इलाके में एक लावारिस कार में बड़ी मात्रा में नकद और कीमती…

6 mins ago

सीएम योगी आदित्यनाथ ने चौधरी चरण सिंह की 122वीं जयंती पर किसानों को किया सम्मानित

Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की…

44 mins ago

Delhi HC 24 दिसंबर को बीजेपी की याचिका पर करेगा सुनवाई, CAG रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने की मांग

दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट…

1 hour ago

पीएम मोदी ने 71 हजार युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, बोले- भारत का युवा, नए आत्मविश्वास से भरा हुआ

पीएम मोदी ने आगे कहा कि भाषा एक समय हाशिए पर रहने वाले समुदायों के…

1 hour ago

लैंड फॉर जॉब घोटाले पर सीबीआई और ईडी के मामलों की सुनवाई 16 और 17 जनवरी को

इस मामले में लालू प्रसाद यादव सहित उनके परिवार के पांच सदस्य आरोपी है. इसमें…

2 hours ago

राजयोगी ब्रह्माकुमार ओमप्रकाश ‘भाईजी’ की 9वीं पुण्यतिथि कल, इंदौर में मीडिया सेमिनार का होगा आयोजन, भारत एक्सप्रेस के सीएमडी उपेन्द्र राय होंगे मुख्य अतिथि

राजयोगी ब्रह्माकुमार ओमप्रकाश 'भाईजी' ब्रह्माकुमारीज संस्था के मीडिया प्रभाग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं इंदौर…

2 hours ago