विश्लेषण

TV न्यूज बिजनेस और बॉलीवुड के क्या एक जैसे हैं हालात ? डॉ. अनुराग बत्रा ने उठाए बड़े सवाल

डॉ. अनुराग बत्रा

वर्ष 2020 में जब कोविड-19 ने दस्तक दी थी, उसके बाद के 12 महीने न्यूज चैनल्स के लिए काफी अनुकूल रहे और यह एक तरह से विजेता बनकर उभरे, वहीं इस दौरान दर्शक न आने से सिनेमा हॉल्स की हालत खराब रही और धीरे-धीरे इन हालातों ने हिंदी और बॉलीवुड सिनेमा में भी अपने पैर पसार लिए.

दरअसल, जब कोविड आया तो पहले साल में लोग इस महामारी के बारे में और देश-दुनिया में क्या हो रहा है, यह जानने के लिए टीवी चैनल्स से चिपके रहते थे. लोगों में यह जानने की उत्सुकता भी काफी रहती थी, कि कोविड से जुड़े अपडेट्स कैसे मिलें और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं. ऐसे में घरों से बाहर न निकलने की मजबूरी में अपडेट्स के लिए ज्यादातर लोग न्यूज चैनल्स का ही सहारा लेते थे. इस दौरान न्यूज रिपोर्टर्स, कैमरामैन और न्यूजरूम से जुड़े तमाम प्रोफेशनल्स ने दिन-रात लगातार मेहनत कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि लोगों को कोविड से जुड़े तमाम अपडेट्स और देश-दुनिया की खबरें मिलती रहें.

इसके विपरीत कोविड को लेकर तमाम पाबंदियों के कारण देशभर के सिनेमा हॉल बंद कर दिए गए, फिर चाहे वे मल्टीप्लेक्स हों अथवा सिंगल थियेटर्स. दर्शकों के लिए सिनेमा हॉल्स में सिनेमा देखना मुश्किल हो गया, ऐसे में सिनेमा के शौकीनों ने ‘ओवर द टॉप’ (OTT) प्लेटफॉर्म का रुख कर लिया. ओटीटी ने व्युअर्स के लिए सभी प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट खोजने के लिए प्रेरित किया और उन्हें अपने घर में सुरक्षित माहौल में कंटेंट देखने का आदी बना दिया.

इसके बाद सरकार द्वारा चलाए गए टीकाकरण अभियान और कोविड में कमी के कारण धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पटरी पर पटरी पर लौटने लगी. मैरिज हॉल, होटल्स, रेस्टोरेंट्स, एयरलाइंस, मॉल्स, स्कूल और कार्यालय आदि फिर खुल गए और अपने पुराने रूप में लौटने लगे, लेकिन उत्तर भारत के सिनेमा हॉल्स में यह ट्रेंड दिखाई नहीं दिया. ऐसा लगने लगा कि हिंदी फिल्मों और बॉलीवुड कंटेंट के लिए सिनेमाघरों में आने वाले व्युअर्स की कमी हो गई है. इसके विपरीत दक्षिण भारत के मार्केट ने एक के बाद एक हिट फिल्में देना जारी रखा और इसने सिनेमा हॉल्स में रिकॉर्ड संख्या में दर्शकों को आकर्षित किया. बॉक्स ऑफिस पर अपने कलेक्शन के कारण दक्षिण भारत का सिनेमा मार्केट और बड़ा होता चला गया. दक्षिण भारतीय फिल्में देखने के लिए सिनेमाघरों में दर्शकों की भीड़ उमड़ रही थी.

‘आरआरआर’ (RRR), ‘पीएस 1’ (Ponniyin Selvan 1) और ‘पुष्पा’ (Pushpa: The Rise) जैसी फिल्में बहुत बड़ी हिट साबित हुईं. बॉलीवुड की सबसे बड़ी हिट मूवी भी इनके पास तक नहीं ठहर रही थी. इस स्थिति ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर हो क्या रहा है और दक्षिण सिनेमा की तुलना में बॉलीवुड के इस तरह के कमजोर प्रदर्शन के पीछे क्या कारण है?

सिनेमा प्रेमी होने के नाते मुझे सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखना पसंद है. फरवरी 2021 में जब कोरोना की लहर थम सी गई और प्रतिबंधों में कुछ समय के लिए ढील दी गई तो मैं साउथ दिल्ली के एक सिनेमा हॉल में हिंदी मूवी देखने गया. वहां सिनेमा हॉल में मुझे अपने साथ सिर्फ छह दर्शक और मिले. इस घटना ने मुझे तब सोचने पर मजबूर कर दिया और पिछले लंबे समय से मैं इस बारे में लगातार सोच रहा हूं. अपनी इंडस्ट्री के तमाम लोगों की तरह मैं हतप्रभ था कि आखिर यह हो क्या रहा है और क्यों हो रहा है? मैं सोच रहा था कि आखिर बॉलीवुड का आकर्षण कहां खत्म हो गया?

वहीं, न्यूज चैनल्स ने बेहतर प्रदर्शन करना जारी रखा और उनका रेवेन्यू स्थिर रहा. देखा जाए तो कोविड के पहले 21 महीनों में उनके रेवेन्यू में वास्तव में बढ़ोतरी ही हुई है. हालांकि इस साल अप्रैल के बाद कुछ प्रमुख न्यूज चैनल्स के व्युअर्स की संख्या में गिरावट आई और मैंने टीवी रेटिंग मैकेनिज्म पर कुछ बुनियादी सवाल पूछते हुए एक लेख भी लिखा, जिसका अभी भी कोई जवाब नहीं मिला है.

मेरा अब भी मानना है कि रेटिंग सिस्टम में सुधार और इसे छेड़छाड़ से बचाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. हालांकि, जो बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी, वह यह थी कि रेटिंग रिसर्च के अनुसार न्यूज चैनल/टीवी दर्शकों की संख्या नहीं बढ़ रही है. अब हमें इसकी जांच करनी होगी कि इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं. मैं दिन में दो से तीन घंटे न्यूज देखता हूं. मैं सिनेमा के बिना तो रह सकता हूं, लेकिन टीवी न्यूज के बिना नहीं. मैं 1991 से ऐसा कर रहा हूं. पहले दूरदर्शन, फिर सीएनएन और पिछले 20 वर्षों से सभी प्रमुख न्यूज चैनल्स को देख रहा हूं. न्यूज देखना भी मेरा काम है और मैं इसे गंभीरता से लेता हूं लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि मुझे टीवी न्यूज देखना अच्छा लगता है.

यदि इसके ऐतिहासिक संदर्भ को देखें तो भारतीय टीवी न्यूज बिजनेस मुख्यत: ‘चार सी’ (Crime, Cricket, Cinema और पिछले छह वर्षों से Cacophony) पर निर्भर है. Cacophony से मेरा आशय स्टूडियो में होने वाली टीवी डिबेट्स से है. सवाल यह है कि टीवी न्यूज के बारे में ऐसा क्या बदल गया है जो इसे अपने व्युअर्स को बढ़ाने में मदद नहीं कर रहा है? क्या दर्शकों के मापन को व्यवस्थित करने के तरीके में किसी तरह की समस्या है? क्या यह सिस्टम एंटरटेनमेंट चैनल्स का फेवर करता है? मुझे नहीं पता। मुझे ऐसा नहीं लगता। हालांकि, मैं केवल इस बारे में एक सवाल पूछ रहा हूं।

वास्तव में करीब चार साल पहले संभवत: सबसे प्रसिद्ध भारतीय मीडिया लीडर जो देश के सबसे बड़े बिजनेस के मालिक और दुनिया के अग्रणी मीडिया मालिक के साथ पार्टनरशिप कर एंटरप्रिन्योर में बदल गए हैं, ने भारतीय टीवी पर एंटरटेनमेंट कंटेंट के गिरते स्वरूप के बारे में शिकायत की थी और कुछ कठिन व गंभीर सवाल पूछे थे. यह मीडिया लीडर उन चुनिंदा लोगों में थे, जो व्युअरशिप रेटिंग मैकेनिज्म के फाउंडिंग मेंबर यानी संस्थापक सदस्य थे और मीडिया इंडस्ट्री में उनका दबदबा व विश्वसनीयता रखते थे. सवाल यह है कि एक प्रसिद्ध मीडिया लीडर ने कुछ सीधे बुनियादी सवालों के साथ एंटरटेनमेंट टीवी कंटेंट को लेकर क्यों दर्शकों की संख्या में गिरावट पर सवाल उठाया? क्या वह इससे संतुष्ट नहीं थे? क्या उनके सवालों का समाधान किया गया? केवल एक चीज जिस पर आप ध्यान देना चाहेंगे, वह यह है कि वह अब एक प्रमुख स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर में शेयरधारक हैं, जो एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म पर एक शेयरधारक भी है. मुद्दा यह है कि ये प्रश्न सभी टीवी न्यूज मालिकों, सीईओ और संपादकों द्वारा भी उठाए जाने चाहिए, क्योंकि ये बुनियादी सवाल हैं. टीवी न्यूज व्युअरशिप क्यों घट रही है?

यदि हम थोड़ी देर के लिए टीवी न्यूज व्युअरशिप डेटा और उसके यूनिवर्स को देखें, तो हमें पूछना होगा कि टीवी न्यूज व्युअरशिप न बढ़ने के क्या कारण हैं? यदि व्युअरशिप में ठहराव या कमी की बात वास्तव में सच है तो सभी को एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने और इसे ईमानदारी से रिपोर्ट करने वाले बिजनेस मीडिया को दोष देने के बजाय टीवी न्यूज के प्रमोटर्स, सीईओ और संपादकों को आत्मनिरीक्षण करना होगा। उन्हें जवाब मिल जाएगा और अगर वे सही सवाल पूछते हैं तो उम्मीद है कि समाधान भी होगा। हालांकि मेरे विचार में टीवी न्यूज के दर्शकों की संख्या नहीं बढ़ रही है और सिनेमा हॉल दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, उसके पीछे एक ही तरह के कारण हैं.

1:  कंटेंट के पुराने फॉर्मूले से चिपके रहना और उसमें नयापन न लाना. कुछ नया न करना और पुराने ढर्रे पर भी चलना. बॉलीवुड और टीवी न्यूज दोनों के लिए तेजी से और बड़े पैमाने पर कंटेंट में नयापन लाने की जरूरत है.

2:  नए चैलेंजर्स मौजूदा प्लेयर्स को चकमा दे रहे हैं. नई प्रतिभाओं और विचारों को अधिक महत्व देना होगा और कंटेंट के साथ प्रयोग करने के अलावा कंटेंट की बोल्डनेस प्रदर्शित करनी होगी. यदि यह काम करती है तो इसका विस्तार किया जाना चाहिए. WION इसका एक बड़ा उदाहरण है. WION के अच्छे प्रदर्शन के पीछे कई कारण हैं, लेकिन डिजिटल की तरफ झुकाव और कंटेंट में विविधता इसके दो मुख्य कारण हैं.

3: हमें टीवी न्यूज से जुड़े सभी क्रियाकलापों खासकर एडिटोरियल और बॉलीवुड में युवा लीडर्स की जरूरत है.

4: दोनों को शॉर्टकट लेना बंद करना होगा. इसे इस तरह समझ सकते हैं. टीवी न्यूज की बात करें तो कुछ टीवी न्यूज ब्रॉडकास्टर्स इस तथ्य के बावजूद काफी हो-हल्ला कर रहे हैं कि वे नंबर वन इसलिए हैं कि उनकी अधिकांश रेटिंग लैंडिंग पेजों में किए गए निवेश से आती है, न कि कंटेंट या मार्केटिंग से. बॉलीवुड में शॉर्टकट की बात करें तो बड़े स्टार्स, बड़े डायरेक्टर्स और सेफ स्क्रिप्ट्स हैं.

5: टीवी न्यूज और बॉलीवुड ने ‘नया स्वाद’ चख लिया है. आजकल व्युअर्स न्यूज स्टार्टअप्स से वीडियो कंटेंट ले रहे हैं, जो न सिर्फ डिजिटल है बल्कि बोल्ड भी है. यही बात बॉलीवुड पर भी लागू होती है. नए डायरेक्टर्स बोल्ड थीम्स और स्क्रिप्ट्स पर प्रयोग कर रहे हैं. वह वर्जित (taboo) मुद्दों को उठा रहे हैं जो वास्तविक हैं और लोगों को आकर्षित करते हैं.

6:  पैमाना कई गुना बड़ा होना चाहिए और कंटेंट व डिस्ट्रीब्यूशन को बढ़ाया जाना चाहिए. टीवी न्यूज में भारतीय न्यूज ब्रॉडकास्टर्स को मेरे पसंदीदा टीवी न्यूज चैनल ‘सीएनएन’ से सीखना होगा कि वे कैसे किसी कार्यक्रम को कवर करते हैं, एंकर्स और ब्रैंड्स को आगे बढ़ाते हैं और दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए एक चेहरे पर निर्भर नहीं होते हैं. वहीं बॉलीवुड को दक्षिण भारतीय सिनेमा प्रेरित कर सकता है कि कैसे उनकी क्वालिटी होती है और किस तरह का उनका प्रॉडक्शन होता है।

हालांकि ऑडियंस मीजरमेंट सिस्टम को ठीक करने और अधिक ईमानदार बनाने की आवश्यकता है, प्रमुख ब्रॉडकास्टर्स अपने वास्तविक व्युअर्स के बारे में और अधिक ईमानदार होने के लिए लैंडिंग पृष्ठों को छोड़ सकते हैं. आप केवल वही सुधार सकते हैं जो आप माप सकते हैं. जब लैंडिंग पेज आपको व्युअरशिप देते हैं, तब अगर आप पूरे पेज के विज्ञापन निकालते हैं तो ऐसे में आप किससे मजाक कर रहे हैं?

यह झूठी उपलब्धि की भावना है और आप चुप हैं. आप अपनी टीमों और ईकोसिस्टम को बता रहे हैं कि यह ठीक है और जो कोई भी लैंडिंग पृष्ठों पर अधिक खर्च कर सकता है, वह अपने प्रमोटरों, आंतरिक सहयोगियों और विज्ञापनदाताओं को मूर्ख बना सकता है. न,न यह गलत है. वास्तविकता को अपनाना चाहिए. इससे केवल वही लोग लाभान्वित होते हैं जो टीवी न्यूज ईकोसिस्टम को प्रभावित करना चाहते हैं। उनके झांसे में न आएं। सत्य की जीत होनी चाहिए और उसकी जीत अवश्य होगी.

(मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे इस आर्टिकल को आप exchange4media.com पर पढ़ सकते हैं। लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं। लेखक दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया पर लिख रहे हैं।)

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