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जानें अमेठी में 1967 से लेकर अब तक कैसा रहा है कांग्रेस का सफर…? गांधी परिवार ने पहली बार इस साल चखा था जीत का स्वाद

Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा चुनाव को लेकर पारा ठीक उसी तरह से हाई है जैसे इस समय यूपी सहित देश के तमाम हिस्सों में तापमान बढ़ रहा है. जहां देश में दो चरणों का चुनाव हो चुका है तो वहीं अन्य सीटों के लिए नामांकन जारी है. इस बार देश में सात चरणों में चुनाव होगा. हालांकि इस दौरान उत्तर प्रदेश की वीवीआई सीटों में से एक मानी जाने वाली अमेठी और रायबरेली सीट को लेकर लगातार चर्चा तेज है. दरअसल ये दोनों सीटें कांग्रेस का गढ़ रही है लेकिन अभी तक इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी नहीं उतारा गया है तो वहीं भाजपा ने अमेठी में अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.

गौरतलब है कि पिछले आम चुनावों में भाजपा की स्मृति ईरानी में राहुल गांधी को उनके ही गढ़ यानी अमेठी में हरा दिया था हालांकि तब राहुल गांधी वायनाड से जीत गए थे. तो वहीं इस बार भी राहुल गांधी को ही अमेठी से चुनाव लड़ने को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. इसी बीच इन कयासों को कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल के दावों ने और हवा दे दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी ही अमेठी से चुनाव लड़ेंगे और कल अंतिम दिन पर्चा दाखिल करेंगे. इसी बीच सोशल मीडिया पर अमेठी सीट का 57 पुराना इतिहास भी वायरल हो रहा है, जिसमें इस सीट पर गांधी-नेहरु परिवार के दबदबे का किस्सा सामने आ रहा है. तो आइए जानते हैं इस सीट पर कैसा रहा है कांग्रेस का सफर-

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1967 से ही है कांग्रेस का दबदबा

बता दें कि अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी और यहां पर उसी समय से गांधी-नेहरु परिवार का दबदबा रहा है. पहली बार यानी 1977 के लोकसभा चुनाव में सजंय गांधी ने चुनाव लड़ा था लेकिन वह जीत हासिल नहीं कर सके थे. उस वक्त उनको विपक्षी संयु्क्त उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह ने 75,844 वोट के अंतर से हरा दिया था.

1980 में मिली जीत

हालांकि 1980 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार के गिरने के बाद फिर से आम चुनाव हुए तो कांग्रेस ने संजय गांधी पर ही भरोसा जताया. इस बार संजय ने कमाल किया और रविंद्र प्रताप सिंह को 1,28,545 वोटों के अंतर से हरा कर अपनी पिछली हार का भी बदला ले लिया था लेकिन गांधी परिवार के लिए दुख की घड़ी तब आई जब संजय गांधी का निधन हो गया. इसके बाद इस सीट पर 1981 में चुनाव हुआ और फिर इस बार उनके भाई राजीव गांधी को अमेठी से उतारा गया और उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद 1984 में फिर राजीव गांधी जीते. हालांकि तब  संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी परिवार से अलग होकर चुनाव लड़ रही थीं और इसी सीट से वह अपने देवर के खिलाफ उतरी थीं लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा. 3,14,878 वोट के अंतर से मेनका हार गई थीं. इसके बाद से ही ये सीट गांधी परिवार का गढ़ बन गई और फिर यहां से कई बार राजीव गांधी जीते. 1991 में उनकी हत्या होने के बाद कांग्रेस ने उनके ही करीबी सतीश शर्मा को यहां से मैदान में उतारा था.

कांग्रेस के इस प्रत्याशी को भी मिली थी जीत

कांग्रस की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए सतीश शर्मा ने भी इस सीट पर फतह हासिल की थी. हालांकि 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के संजय सिंह ने कांग्रेस को चुनौती दी और गांधी परिवार के गढ़ में घुस कर सतीश शर्मा को करीब 23 हजार वोटों से हरा दिया हालांकि इसके बाद फिर लोकसभा चुनाव होने पर कांग्रेस ने फिर अपना पासा फेंका और इस सीट से सोनिया गांधी को उतारा गया. गांधी परिवार की साख को बचाने के लिए सोनिया गांधी ने 1999 में इस सीट पर जीत हासिल कर ली. तब वह करीब 3 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीती थीं.

राहुल गांधी के चुनाव लड़ने का भी सफर शुरू हुआ था यहीं से

इसके बाद इस सीट पर गांधी परिवार के कुलदीपक यानी राहुल गांधी को उतारा गया. राहुल गांधी ने इसी सीट से चुनाव लड़कर अपना चुनावी सफर शुरू किया था. 2004 के लोकसभा चुनाव में वह उतरे और 2,90,853 वोट के अंतर से जीत हासिल की थी. इसके बाद 2009 में भी इस सीट से जीत हासिल की और सांसद चुने गए.

भाजपा की स्मृति ईरानी ने दी कड़ी टक्कर

फिलहाल अमेठी में अब हवा बदली हुई है. यहां पर भाजपा की स्मृति ईरानी लगातार मैदान में डटी हुई हैं और वह 2014 में जरूर राहुल गांधी से इस सीट पर हार गई थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर करीब 55 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीता था. इस तरह से एक बार फिर भाजपा गांधी परिवार के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हो गई थीं. फिलहाल वर्तमान में भी वह लगातार इस सीट पर डटी हुई हैं और इस बार भी भाजपा ने स्मृति को ही अपना उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में ये साफ होता है कि अमेठी जहां एक ओर गांधी परिवार का गढ़ रहा तो वहीं कई बार इस सीट पर गांधी परिवार को हार का मुंह भी देखना पड़ा. जहां गांधी परिवार की एक बहू सोनिया ने इस सीट पर काफी वक्त तक कब्जा जमा कर रखा तो वहीं मेनका गांधी को यहां हार ही मिली. तो वहीं अब कांग्रेस फिर से इस सीट पर कब्जा हासिल करने के लिए डटी हुई है. फिलहाल देखना ये है कि क्या इस बार कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल कर सकेगी या नहीं?

-भारत एक्सप्रेस

 

 

Archana Sharma

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