Ranbir Kapoor: अभिनेता रणबीर कपूर ने सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित दूसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में अपने दादा राज कपूर को याद करते हुए कहा कि वे उनके आदर्श और सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं, लेकिन अभिनेता के रूप में राज कपूर उन्हें ज्यादा प्रभावित नहीं करते, पर निर्देशक के रूप में वे मेरे आदर्श हैं. इस अवसर पर उन्हें वैरायटी मैगजीन की ओर से मार्टिन डेल ने वैरायटी इंटरनेशनल वैनगार्ड अवार्ड प्रदान किया.
उन्होंने कहा कि मैं उनकी कई फिल्मों को बेइंतहा पसंद करता हूं जैसे श्री 420, आवारा, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है, प्रेम रोग. मैं जब छह साल का था तो उनका निधन हुआ, इसलिए मेरे पास उनके साथ की बहुत यादें नहीं है, सिवाय इसके कि जो कुछ उनके बारे में मैंने अपने माता पिता ( नीतू – ऋषि कपूर) से सुना और उनकी फिल्मों को देखकर उन्हें जाना. मैंने जीवन और सिनेमा के बारे में उनकी फिल्में देखकर बहुत कुछ उनसे सीखा है.
रणबीर कपूर ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं राज कपूर का पोता हूं पर कपूर खानदान के होने को एक जिम्मेदारी के तौर पर लेता हूं, बोझ या दबाव के रूप में नहीं/ इस बात को मैं ‘ टेकेन फार ग्रांटेड ‘ नहीं लेता. राज कपूर ने हमारे परिवार के लिए जो किया और उनके कारण दुनिया में हमें जो महत्व मिला, इसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूंगा. मैं यह नहीं चाहता हूं कि कल कोई ये कहे कि मैं इसलिए फिल्म इंडस्ट्री में हूं क्योंकि मैं राज कपूर का पोता हूं. ( आई डोंट वांट दैट सम डे समबाडी से आई एम जस्ट ग्रैंडसन आफ राज कपूर).
एक पाकिस्तानी फिल्मकार ने जब उनसे पूछा कि आज कोई पाकिस्तानी भारत में और कोई हिंदुस्तानी पाकिस्तान में न तो फिल्म बना सकता है न फिल्म में काम कर सकता है. तो क्या इन दोनों देशों के बाहर मसलन सऊदी अरब में आप मेरी फिल्म में काम करना पसंद करेंगे. तो रणबीर कपूर ने कहा कि ‘ क्यों नहीं, एक कलाकार के लिए कोई बाउंड्री नहीं होती. मैं पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री को बधाई देता हूं कि उन्होंने ‘ मौला जाट जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई. पिछले कई सालों में ऐसी फिल्म हमने नहीं देखी.’ (मौला जाट अंततः दिसंबर अंत तक भारत में रिलीज होगी).
अपनी नवजात बेटी के पालन पोषण को लेकर पूछे गए एक सवाल पर रणबीर कपूर ने कहा, ‘एक बच्ची के पिता होने का सुख कुछ अलग होता है. हमारे लिए वह समय बहुत उत्तेजक था. जैसे ही मैं कहता हूं कि मैं एक बच्ची का पिता बन गया हूं, मेरे दिमाग में सितारे झिलमिलाने लगते हैं. यह भी कि आप किसी लड़की के साथ काम करते हैं, दोस्त बनते हैं, प्रेम होता है, पति पत्नी बन जाते हैं और एक बच्ची के मां बाप बनते हैं. मैं साल में 280 दिन काम करता हूं और आलिया (भट्ट) मुझसे ज्यादा काम करती है. बच्ची की देखभाल के लिए हम बारी बारी से काम से ब्रेक लेते हैं. पैरेंटिंग एक चुनौती भरा काम है. आप चाहते है कि आपको जो जीवन मूल्य विरासत में मिले हैं, वह सब अपने बच्चे को हस्तांतरित करें। बच्चे के सामने आपको एक उदाहरण सेट करना होता है.
रणबीर कपूर ने अपने फिल्मी करियर पर बात करते हुए कहा, ‘न्यूयार्क के मशहूर द ली स्ट्रासबर्ग थियेटर एंड फिल्म स्कूल से मेथड ऐक्टिंग का नौ महीने का कोर्स करने के बाद जब मैंने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक ‘(2005) में उनके असिस्टेंट के रूप में काम करना शुरू किया तो मेरे सामने एक नई दुनिया खुलती गई. पहले मुझे लगता था कि कोई भी मेकअप करके ऐक्टिंग कर सकता है. मेथड ऐक्टिंग सीखते हुए मुझे लगा कि यह तो कुछ और ही है. हर किसी के बस का नहीं है।मैंने संजय लीला भंसाली के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखा. पिताजी (ऋषि कपूर) मेरी कार लेकर चले जाते थे और मुझे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आना जाना पड़ता था. संजय लीला भंसाली काम के मामले में सचमुच हार्ड टास्क मास्टर है. मैं उनके बीस असिस्टेंट मे से एक था. इन सब चीजों ने मुझे ज़मीन का आदमी बनाया.’
रणबीर ने कहा, ‘मैंने पहली बार अमिताभ बच्चन और रानी मुखर्जी जैसे दिग्गज कलाकारों को काम करते देखा. पहली बार मुझे तब अभिनय के जादू का पता चला. उन्होंने ही मुझे अपनी फिल्म ‘सांवरिया ‘ (2007) में ब्रेक दिया. उन्होंने मेथड ऐक्टिंग के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा कि हर फिल्म अपने मेथड से बनती है. जब मैं इम्तियाज अली की ‘रॉक स्टार ‘ कर रहा था जो एक म्यूजिशियन के बारे में है तो मुझे न तो गाना आता था न बजाना, आज भी नहीं आता. मैंने चेन्नई में ए आर रहमान के स्टूडियो में चालीस दिन के लिए अपने आप को बंद कर लिया. मैंने एक संगीतकार में जो कुछ होता है उसके बारे में सीखना शुरू किया. मुझे वायलिन बजाना नहीं आता था. मैं इम्तियाज अली के साथ जगह जगह कई लोगों से मिला. उन्होंने दिल्ली में मुझे जनार्दन झाखड़ से मिलवाया जो एक बड़े जे जे राक स्टार थे.’ मैंने बहुत मेहनत की. मैं जब फिल्मों में शुरूआत कर रहा था तो आमिर खान से सलाह लेने गया. उन्होंने कहा कि अपना सामान बांधों और ट्रेन से देश घूमने निकल जाओ. लोगों से मिलो, जगहों को देखो और अलग अलग संस्कृतियों को समझने की कोशिश करो. मुझे अफसोस है कि मैं यह नहीं कर पाया. पर मैं अभिनेता बनने की चाह रखने वाले युवाओं को यह सलाह जरूर देना चाहता हूं.’
उन्होंने कहा कि ‘सांवरिया’ और ‘बचना ऐ हसीनों’ फिल्मों में काम करने के बाद मुझे लगने लगा कि ऐक्टर होने का मतलब केवल हीरो होना है. पर जब वेक अप सिड की स्क्रिप्ट आई तो लगा कि नही आप एक चरित्र निभाने जा रहे हैं. उन्होंने निर्देशक अयान मुखर्जी के साथ काम करने के अनुभवों पर कहा कि वेक अप सिड ‘( 2009) और ‘ये जवानी है दीवानी ‘(2013) के बाद उनके साथ ‘ ब्रह्मास्त्र भाग एक शिव करना एक ड्रीम प्रोजेक्ट था. यह बहुत महंगी फिल्म है. मुझे भी इस फिल्म के दूसरे भाग देव का इंतजार है.
रणबीर कपूर ने भोपाल में प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ का अनुभव साझा करते हुए कहा कि इसकी स्क्रिप्ट उन्हें बहुत पसंद आई. भले ही वह ‘ गॉडफादर’ या महाभारत से प्रेरित थी. मुझे अर्जुन की भूमिका दी गई थी. मैं अब यह स्वीकार करता हूं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे ज्यादा कुछ समझ में नहीं आया था, पर डबिंग के समय एक एक चीज खुलनी शुरू हुई तब मेरी समझ में आया कि यह फिल्म कितनी गहरी और सार्थक है. मुझे इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं राजनीति फिल्म में कुछ ज्यादा गहराई से अपने चरित्र को क्यों नहीं कर पाया. उस फिल्म का सबसे अहम हिस्सा था भोपाल शहर, वहां के लोग और नूर ए सबा होटल. आज भी मैं चाहता हूं कि मैं अपनी कोई फिल्म भोपाल में शूट करूं.
उन्होंने राजकुमार हिरानी की संजय दत्त पर बनी फिल्म’ संजू’ के बारे में कहा कि वे बचपना से ही संजय दत्त के प्रशंसक रहे हैं. मेरी बहन अपनी अलमारी में सलमान खान के पोस्टर लगाती थी जबकि मैं संजय दत्त का। राजकुमार हिरानी भारतीय सिनेमा के एक ग्रेट फिल्मकार हैं. जब उन्होंने मुझे संजू की स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए मैसेज किया तो मैंने झट से जवाब दिया कि यह संजय दत्त की बायोपिक नहीं हो सकती. तब तक प्रेस में आ चुका था कि राजकुमार हिरानी संजय दत्त की बायोपिक बनाने जा रहे हैं. आप एक ऐसे अभिनेता की बायोपिक कैसे बना सकते हैं जो अभी जीवित है, सक्रिय है, ऐक्टिंग कर रहा है. हिरानी एक अलग तरह की फिल्में बनाते रहे हैं जबकि संजय दत्त पर जो फिल्म होगी वह बहुत डार्क और ग्राफिक होगी. जब फिल्म रिलीज हुई तो बहुत सारी बातें कही गई मसलन संजय दत्त को क्लीन बताया गया है. मेरे सामने दूसरी चुनौती थी कि मैं कितनी गहराई से इस चरित्र को निभा सकता हूं. मैंने काफी होमवर्क किया था. सुबह ढाई बजे लोकेशन पर पहुंच जाता, एक डेढ़ घंटे मेकअप लगाने मे लगता और फिर बारह घंटे की बिना रूके शूटिंग शुरू होती, फिर डेढ़ घंटे मेकअप उतारने में लगता.
संजू के रिलीज होने के बाद कोरोना आ गया. मेरे पिता ऋषि कपूर बीमार पड़े और हमें उन्ह इलाज के लिए न्यूयॉर्क ले जाना पड़ा पर हम उन्हें नहीं बचा सके. ब्रह्मास्त्र शुरू हो गई थी. उसे बनने में साढ़े तीन साल लगे। फिर शमशेरा आई जो बाक्स आफिस पर एक डिजास्टर साबित हुई. मेरी गलती थी कि मैं भयंकर गर्मी में दाढ़ी में शूट कर रहा था और मेरा चेहरा गोंद की तरह पिघल रहा था. मैं न तो मुस्कुरा पा रहा था न ढंग से बात कर पा रहा था.
रणबीर कपूर ने अनुराग कश्यप की ‘बॉम्बे वेलवेट ‘ पर एक सवाल के जवाब में कहा कि वह फिल्म भी एक बड़ी डिजास्टर थी. शुरू में मैं बहुत उत्साहित था अनुराग कश्यप और दूसरे अभिनेताओं को लेकर. पर होता क्या है कि जब फिल्म बननी शुरू होती है तो आप सबकुछ सरेंडर कर देते हैं. आपका उस प्रक्रिया पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता. उसके बाद मैंने एक फिल्म प्रोड्यूस की अनुराग बासु की ‘ जग्गा जासूस ‘ और वह भी डिजास्टर साबित हुई. इससे मेरे दिल को बहुत चोट पहुंची. फिल्म बनाना एक महंगा काम है. यहां आडियंस इज द किंग. मसाला फिल्म बनाना तो और भी कठिन है. इसमें आपको सबकुछ डालना पड़ता है. इम्तियाज अली की ‘ तमाशा ‘ में मैंने बहुत मिहनत की थी, आज भी लोग उस फिल्म के बारे में बात करते हैं. मै आज तक यह नहीं समझ पाया कि तमाशा क्यों नहीं चली. अब मैंने सोचा है कि अपने करियर के अंतिम चरण में केवल दर्शकों के लिए व्यावसायिक फिल्मे ही करूंगा.
एक्टर ने कहा, ‘मैं एक ऐसे परिवार से आता हूं जिसके कई सदस्यों ने सिनेमा में बड़ी बड़ी उपलब्धियां हासिल की. अनुराग बसु की ‘ बर्फी ‘ में मैंने अपने दादा राज कपूर को ट्रिब्यूट दिया है जो चार्ली चैपलिन के ग्रेट फैन थे, मैं भी उनका फैन हूं. पर राज कपूर एक अल्टीमेट हीरो थे जो कामेडी में ट्रेजडी और ट्रेजेडी में कामेडी कर सकते थे. कपूर खानदान का होने के कारण यह सही है कि मुझे फिल्मों में आसानी से अवसर मिल गया जबकि दूसरों को थोड़ी मुश्किल होती है.’
रणबीर कपूर ने कहा कि वे हिंदी फिल्मों में तब आए जब महज एक दो युवा हीरो थे और पुराने हीरो बूढ़े हो रहे थे. वह मेरे लिए सही समय था. वेक अप सिड, राक स्टार, राजनीति जैसी कमर्शियल फिल्मे ही मुझे मिली. उस समय मुझे आर्ट फिल्म या इंडीपेंडेंट फिल्म नहीं मिली. मुझे भी फिल्म इंडस्ट्री को, यहां की संस्कृति को, भूमिकाओं को समझने में कई साल लगे. न्यूयॉर्क में पढ़ने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि मैं अकेले रहना सीख गया. सहपाठियों से बात करते हुए दूसरों की संस्कृति के बारे में जाना. मैं शुरू से ही अंतर्मुखी स्वभाव का था, इसलिए स्कूल कालेज में कभी मेरा चयन ड्रामाटिक सोसायटी में नहीं हुआ। विदेश में पढ़ाई के दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा. उन्होंने अपनी आने वाली दो फिल्मों के बारे में बताया कि इन फिल्मों से उन्हें उम्मीद है कि वे दर्शकों को पसंद आएगी. पहली फिल्म लव रंजन की है जो एक रोमांटिक कामेडी है जिसमें उनके साथ श्रद्धा कपूर हैं. यह फिल्म अगले साल 8 मार्च को रिलीज होगी. दूसरी फिल्म संदीप रेड्डी वंगा की है, एनिमल, जो एक गैंगस्टर फिल्म है. यह फिल्म अगले साल 23 अगस्त को रिलीज होगी.
-भारत एक्सप्रेस
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