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लोकसभा में नेताओं की पत्नी-बेटियों का दबदबा, Women Reservation Bill पास होने के बाद सोनिया-जया ही नहीं, सबको मिलेगा मौका!

Women Reservation Bill: हमारे देश की राजनीति में महिलाओं की स्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है. संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन दोबारा पेश होने के बावजूद यह अभी भी लोकसभा में लंबित है. यदि ये विधेयक संसद से पास हो जाता है तो देश की राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी 33 फीसदी हो जाएगी. लेकिन इसका एक डार्क साइड भी है. आज भी पंचायत चुनाव में महिला आरक्षित सीट पर चुनाव जीतने के बाद महिलाओं के पति ही कामकाज संभालते हैं. इसके लिए नाम भी तय किए गए हैं. मुखिया पति, सरपंच पति, प्रधान पति आदि-आदि.

क्या है महिला आरक्षण विधेयक ?

राजनीति में महिलाओं का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता से पहले और संविधान सभा में भी चर्चा की गई थी. स्वतंत्र भारत में इस मुद्दे ने 1970 के दशक में ही जोर पकड़ लिया था. विधेयक में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है. लगभग 27 वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर नए सिरे से जोर दिया जा रहा है. लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से कम है, जबकि कई राज्य विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है. यह बिल सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को संसद में पेश किया गया था.

समर्थन में कौन-कौन हैं ?

आमतौर पर सभी दल विधेयक के समर्थन में हैं, फिर भी प्रस्ताव को मूर्त रूप देने के लिए पिछले 13 वर्षों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है. बैठक के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ”सभी विपक्षी दलों ने इसी संसद सत्र में महिला आरक्षण बिल पारित करने की मांग की.” बीजेपी के सहयोगी और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ”हम सरकार से अपील करते हैं कि वह इसी संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करे.” बीजद और बीआरएस सहित कई क्षेत्रीय दलों ने भी विधेयक को पेश करने पर जोर दिया. बीजेडी सांसद पिनाकी मिश्रा ने कहा कि नए संसद भवन से एक नए युग की शुरुआत होनी चाहिए और महिला आरक्षण विधेयक पारित होना चाहिए.

महिला आरक्षण विधेयक की अबतक की जर्नी

  • महिला आरक्षण विधेयक सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को संसद में पेश किया गया था. इस विधेयक एचडी देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार ने लोकसभा में पेश किया था.
  • इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना है.
  • आरक्षण मानदंड- बिल के अनुसार, सीटें रोटेशन के आधार पर आरक्षित की जाएंगी.
  • सीटों का निर्धारण ड्रा द्वारा इस प्रकार किया जाएगा कि प्रत्येक तीन लगातार आम चुनावों में एक सीट केवल एक बार आरक्षित की जाएगी.
  • वाजपेयी सरकार ने लोकसभा में इस विधेयक को आगे बढ़ाया लेकिन यह फिर भी पारित नहीं हुआ.
  • कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने मई 2008 में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए फिर से विधेयक पेश किया.
  • इसके पुन: प्रस्तुतीकरण के बाद, विधेयक 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा द्वारा पारित कर दिया गया, लेकिन लोकसभा में अभी भी लंबित है.

 

बता दें कि अगर इस बार दोनों सदनों से महिला आरक्षण विधेयक पास हो जाता है तो लोकसभा की कुल 543 में से करीब 180 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. हालांकि, सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इन सीटों से आम महिलाएं चुनकर संसद पहुंच पाएंगी? क्योंकि, वर्तमान में लोकसभा में महिलाओं सांसदों को लेकर जो डेटा है, वो हैरान करने वाला है. दरअसल, जो भी महिलाएं इस वक्त संसद में बैठती हैं उनमें से अधिक राजनीतिक घरानों से ताल्लुक रखती हैं. कोई नेता की बेटी हैं तो कोई नेताओं की बहु.

लोकसभा में 78 महिला सांसद

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, लोकसभा में कुल 543 में से 78 महिला सांसद हैं. राज्यसभा में 24 महिला सांसद हैं, यानी करीब 14 प्रतिशत. कई राज्यों की विधानसभाओं में 10 प्रतिशत से भी कम महिला विधायिका हैं. महिलाओं के लिए सर्वाधिक आरक्षण वाले राज्यों में त्रिपुरा टॉप पर है. यहां के सदन में 15 फीसदी महिलाए हैं. छत्तीसगढ़ में 14.44 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 13.7 प्रतिशत और झारखंड में 12.35 प्रतिशत महिला विधायक हैं. इसके बाद बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 10-12 प्रतिशत महिला विधायक हैं.

आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है. एडीआर के मुताबिक देश में करीब 4300 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें महिला विधायकों की संख्या सिर्फ 340 के आसपास है.

इसमें भी जो महिलाएं सदन में हैं उनका राजनीतिक घरानों से ताल्लुक है. इनमें से अगर कुछ का जिक्र करें तो सबसे पहले नाम गांधी परिवार का सामने आता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा के 78 महिला सांसदों में से 32 सांसद या तो नेताओं की पत्नी हैं या नेताओं की बेटी. राज्यसभा का भी यही हाल है. उदाहरण के लिए अगर यूपी को ही चुने तो 11 महिलाओं में से दो तो गांधी परिवार की ही बहु हैं. रायबरेली से राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी. वहीं सुल्तानपुर सीट से संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी. इसके इतर हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा प्रयागराज सीट से सांसद हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा बदायूं और पूर्व विधायक आजाद अरी की पत्नी संगीता आजाद लालगंज सीट से सांसद हैं.

-भारत एक्सप्रेस

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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