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नागा साधुओं को संपत्ति का अधिकार मांगना उनकी मान्यताओं और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि नागा साधुओं को पूरी तरह से भोग विलास से दूर रहकर जीवन जीने वाला माना जाता है. उनके नाम पर संपत्ति का अधिकार मांगना उनकी मान्यताओं और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है. हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक नागा साधु के मंदिर के नाम पर संपत्ति का सीमांकन करने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए की. महंत नागा बाबा भोला गिरि के उत्तराधिकारी अविनाश गिरि ने यह याचिका दायर की थी.

विनाशकारी परिणाम होंगे

हाईकोर्ट ने कहा कि नागा साधुओं की जीवनशैली पर शोध प्रबंध लिखने का कोई प्रयास नहीं करते हुए, जैसा कि हम हिंदू धर्म में समझते हैं, नागा साधु भगवान शिव के भक्त हैं और उन्हें सांसारिक मामलों से पूरी तरह अलग रहने का जीवन जीने के लिए कहा गया है, इसलिए उनके नाम पर संपत्ति के अधिकार की मांग करना उनकी मान्यताओं और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है.

अदालत ने यह भी कहा कि देश के विभिन्न भागों में हजारों साधु, बाबा, फकीर और गुरु हैं और अगर उनमें से हर एक को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी गई तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘हमारे देश में हमें विभिन्न भागों में हजारों साधु, बाबा, फकीर या गुरु मिल सकते हैं और अगर हर एक को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी जाती है और निहित स्वार्थ वाले समूह इसे अपने निजी लाभ के लिए उपयोग करना जारी रखते हैं, तो इससे बड़े सार्वजनिक हित को खतरे में डालने वाले विनाशकारी परिणाम होंगे.’


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प्रशासन को निर्देश देने की मांग

याचिका में स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह घाट संख्या 33, त्रिवेणी घाट, निगमबोध घाट, जमुना बाजार में स्थित भूमि का सीमांकन याचिकाकर्ता के नाम पर करे, क्योंकि यह भूमि वर्ष 1996 से उनके कब्जे में है.

अदालत को बताया गया कि 22 फरवरी 2023 को दिल्ली सरकार के बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने संबंधित संपत्ति के आसपास के क्षेत्र में विभिन्न झुग्गियों और अन्य इमारतों को ध्वस्त कर दिया और अब नागा बाबा भोला गिरि के मंदिर को ध्वस्त करने का खतरा मंडरा रहा है.

जस्टिस शर्मा ने मामले पर विचार किया और माना कि याचिकाकर्ता एक ‘श्रेणी का अतिचारी’ है और विचाराधीन संपत्ति यमुना नदी के पुनरुद्धार जैसे बड़े सार्वजनिक हित के लिए थी.

ऐतिहासिक महत्व का स्था नहीं

अदालत ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 1996 में मरने वाले पूज्य बाबा के एक मंदिर के अलावा टिन शेड और अन्य सुविधाओं के साथ दो कमरे बनाए हैं, लेकिन फिर रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि यह स्थान किसी ऐतिहासिक महत्व का है या पूजा के लिए या दिवंगत बाबा को प्रार्थना करने के लिए जनता को समर्पित है.’

अदालत ने यह भी कहा कि अभिलेखों के अनुसार, इस क्षेत्र में केवल 32 ऐतिहासिक घाट थे और याचिकाकर्ता ने जिस भूमि पर स्थित है, उसे घाट संख्या 33 बताकर कहानी को नया मोड़ देने का प्रयास किया है. न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात का एक भी प्रमाण नहीं है कि यह तीर्थस्थल ऐतिहासिक महत्व का स्थान था और आम जनता को समर्पित था.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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