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Maharashtra: पहले मां की हत्या की, फिर दिल-दिमाग, लिवर-किडनी पकाकर खाने वाला था, हाईकोर्ट ने मौत की सजा बरकरार रखी

बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में बीते मंगलवार (1 अक्टूबर) को एक खौफनाक घटना की सुनवाई हुई, जिसके बारे में जानकर आपकी रूह कांप जाएगी और मानवता से भरोसा भी उठ जाएगा. ये घटना वैसे तो 2017 की है, लेकिन इस मामले की अदालती कार्रवाई 7 साल बाद भी जारी है.

क्या हुआ था

ये घटना महाराष्ट्र (Maharashtra) के कोल्हापुर (Kolhapur) से सामने आई थी. 28 अगस्त 2017 को पूरे राज्य में उस समय सनसनी फैल गई जब पता चला कि एक व्यक्ति अपनी 63 वर्ष की मां हत्या कर कथित तौर पर उसके कुछ अंगों को पकाकर खाने वाला था. आरोपी की पहचान सुनील रामा कुचकोरवी (Sunil Rama Kuchkoravi) और मां की पहचान यल्लामा रामा कुचकोरवी (Yallama Rama Kuchkoravi) के रूप में हुई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, हत्या के बाद उसने चाकू से अपनी मां के शरीर को काटा, उनके अंग निकाले और कुछ अंगों (दिमाग, दिल, लिवर, किडनी, आंत) को तवे पर पका रहा था. इस दौरान पड़ोस के एक बच्चे ने उसे खून से लथपथ देखा तो बात पूरे मोहल्ले में जंगल की आग की तरह फैल गई, जिसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था.

सुनील ने इस खौफनाक घटना को इसलिए अंजाम दिया था, क्योंकि उसकी मां ने उसे शराब खरीदने के लिए पैसे देने से इनकार कर दिया था. दोषी फिलहाल पुणे की यदवदा जेल में बंद है.

कोल्हापुर अदालत का फैसला

इसके बाद मामला अदालत में पहुंचा. जुलाई 2021 में कोल्हापुर सेशन कोर्ट (Kolhapur Session Court) ने आरोपी बेटे को इस जघन्य अपराध के लिए दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस अपराध ने समाज की चेतना को झकझोर कर रख दिया है. इस तरह के अपराध को करने के बाद सुनील कुचकोरवी के व्यवहार में कोई पश्चाताप या आत्मग्लानि नहीं थी.


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बचाव पक्ष की क्या थी दलील

कोल्हापुर सेशन कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील युग मोहित चौधरी और पायोशी रॉय ने तर्क दिया था कि राज्य को दोषी की पृष्ठभूमि, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को कम करने वाले कारकों के रूप में विचार करना चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि कुचकोरवी को किसी भी संभावित मानसिक बीमारी या अस्थिर व्यवहार के सबूत पेश करने का अवसर दिया जाना चाहिए. तब अदालत ने उनकी मानसिक स्थिति की रिपोर्ट भी तलब की थी.

फिर मामला हाईकोर्ट पहुंचा

इसके बाद आरोपी ने कोल्हापुर अदालत के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर बीते 1 अक्टूबर को अदालत ने फैसला सुनाया है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि वह दोषी सुनील कुचकोरवी की मौत की सजा की पुष्टि कर रही है और कहा कि उसके सुधरने की कोई संभावना नहीं है. पीठ ने कहा कि यह नरभक्षण (Cannibalism) का मामला था और यह दुर्लभतम श्रेणी (Rarest of Rare) में आता है.

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘यह मामला दुर्लभतम श्रेणी में आता है. दोषी ने न केवल अपनी मां की हत्या की, बल्कि उसने उनके शरीर के अंगों – दिल, दिमाग, लिवर, किडनी, आंत को निकाल लिया और उन्हें तवे पर पका रहा था.’

दोषी के सुधरने की संभावना नहीं

पीठ ने कहा, ‘उसने उनकी पसलियां पकाई थीं और उसका दिल भी पकाने वाला था यह नरभक्षण का मामला है. दोषी के सुधार की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि उसमें नरभक्षण की प्रवृत्ति है. अगर उसे आजीवन कारावास दिया जाता है, तो वह जेल में भी इसी तरह का अपराध कर सकता है.’

कुचकोरवी को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए फैसले की जानकारी दी गई. सुनील कुचकोरवी को बताया गया कि उसके पास अपील दायर करने के लिए 30 दिन का समय है.

-भारत एक्सप्रेस

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