खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि खनिज युक्त भूमि पर टैक्स लगाने के राज्यों को दिया गया अधिकार 1 अप्रैल 2005 से लागू होगा. संविधान पीठ के इस फैसले से बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा को फायदा होगा.
संविधान पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि राज्यों द्वारा टैक्स की मांग के भुगतान का समय 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होगा और इसका भुगतान 12 वर्षों की अवधि में किस्तों में किया जाएगा. 25 जुलाई 2024 से पहले के किसी भी तरह के टैक्स की मांग पर राज्य कोई ब्याज या जुर्माना की मांग नहीं कर पाएंगे. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा लिखित और जस्टिस हृषिकेश रॉय, ए एस ओका, जे बी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुयान, एस सी शर्मा और ए जी मसीह की पीठ ने यह फैसला दिया है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 25 जुलाई को दिए अपने फैसले में कहा था कि रॉयल्टी को कर नहीं माना जा सकता है. इस फैसले से खनिज व खदान सम्पन्न राज्य बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा को फायदा होगा. मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर 25 जुलाई का फैसला पिछली तारीख से लागू होता है, तो कम्पनियां इसका खर्च नागरिकों पर डाल सकती हैं. उन्होंने कहा कि 1989 का फैसला 35 साल तक के लिए लागू था और 25 जुलाई के फैसला का आर्थिक असर हर राज्य में अलग-अलग होगा.
बता दें कि 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि राज्यों के पास खनिजों पर कर लगाने का अधिकार है. जबकि 1989 के फैसले में यह अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया था. कुछ राज्यों ने केंद्र से कर और रॉयल्टी की वापसी की मांग की है, लेकिन केंद्र सरकार का कहना था कि अगर यह मांग मान ली जाती है, तो इससे नागरिकों पर असर पड़ेगा और सरकारी कम्पनियों को 70 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
गौरतलब है कि 2011 में मामले को 89 जजों की बेंच के पास भेज दिया गया था. तीन जजों की बाकी बेंच ने 9 जजों को भेजे जाने के लिए 11 सवाल तैयार किये थे. इनमें महत्वपूर्ण कर कानून के सवाल शामिल थे. जैसे कि क्या रॉयल्टी को कर के समान माना जा सकता है? क्या राज्य विधानमंडल भूमि पर कर लगाते समय भूमि की उपज के मूल्य के आधार पर कर का उपाय अपना सकता है? तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सीधे 9 जजों के पास भेजा था, क्योंकि इस मामले में पांच जजों और सात जजों के संविधान पीठ के फैसलों के बीच विरोधाभास था.
-भारत एक्सप्रेस
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