दिल्ली हाईकोर्ट ने पोक्सो मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा आरोपी पर गंभीर आरोप है और अपराध में जबरदस्ती के माध्यम से बच्चे के शोषण और अश्लील उद्देश्यों के लिए ब्लैकमेल करना शामिल है. जस्टिस अमित महाराज की पीठ ने टिप्पणी की कि आवेदक की हरकतें नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराध करने के लिए गुमनामी और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की व्यापक पहूंच का फायदा उठाने की खतरनाक प्रवृति का उदाहरण देती है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अपराधों के व्यापक सामाजिक प्रभाव और प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग के खिलाफ एक मजबूत संदेश भेजने की तत्काल आवश्यकता है.
कोर्ट ने आदेश में कहा कि यह देखते हुए वर्तमान मामले में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य शामिल है. जांच एजेंसी का काम कठिन लगता है और जिस तरीके से वे उचित समझें, मामले की जांच करने के लिए उन्हें निष्पक्षता से मौका दिया जाना चाहिए. इस मामले में गहन जांच की आवश्यकता है जिसे गिरफ्तारी पूर्व जमानत देने का आदेश पारित करके कम नहीं किया जाना चाहिए. गिरफ्तारी पूर्व जमानत की राहत एक कानूनी सुरक्षा है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को गिरफ्तारी की शक्ति के संभावित दुरुपयोग से बचाना है. यह निर्दोष व्यक्तियों के उत्पीड़न से बचाया है. यह निर्दोष व्यक्तियों के उत्पीड़न और अनन्यपूर्ण हिरासत को रोकने में एक महत्वपूर्ण उपकरण की भूमिका निभाता है.
अदालत ने कहा यह स्थापित कानून है कि हिरासत में पूछताछ किसी ऐसे संदिग्ध से पूछताछ करने की तुलना में गुणात्मक रूप से अधिक पूछताछ उन्मुख है जो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 के तहत अनुकूल आदेश के साथ अच्छी तरह अनुकूल आदेश के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. आवेदन को अग्रिम जमानत देने से निसंदेह आगे की जांच बाधित होगी. जमानत का आदेश नियमित तरीके से नहीं दिया जा सकता है, ताकि आवेदक को इसे ढाल के रूप में उपयोग करने की अनुमति मिल सके. इस अदालत ने केस डायरी का अवलोकन किया है और पीड़िता, पीड़िता की मां और सह-अभियुक्तों के बयानों का अध्ययन किया है. केस डायरी में आवेदक को आरोपों में फंसाने वाली सामग्रियां है, जिनकी पुलिस जांच कर रही है.
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आरोपी पर पीड़िता को वीडियो कॉल पर स्पष्ट यौन कृत्यों में शामिल होने के लिए मजबूर करने, उसकी सहमति के बिना इसे रिकॉर्ड करने और इसका उपयोग पीड़िता को ब्लैकमेल करने के लिए करने का आरोप है. इस तरह के कृत्य न केवल पीड़ित की व्यक्तिगत गरिमा और गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं, बल्कि बीएनएस और पोक्सो अधिनियम के तहत गंभीर अपराध भी बनते है.
-भारत एक्सप्रेस
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