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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला: सशस्त्र बलों में गर्भवती महिला अभ्यर्थियों के लिए मेडिकल जांच कराने की नीति अनुचित

सशस्त्र बलों में गर्भवती महिला अभ्यर्थियों के भर्ती को लेकर प्रसव के छह हफ्ते बाद मेडिकल जांच कराने की नीति को दिल्ली हाई कोर्ट ने अनुचित बताया है. जस्टिस रेखा पल्ली एवं जस्टिस शालिंदर कौर की पीठ ने कहा कि छह सप्ताह की अवधि बहुत कम है, क्योंकि गर्भवती महिला उम्मीदवार के लिए हमेशा यह संभव नहीं हो सकता कि वह उक्त अवधि के भीतर अपनी पूरी मेडिकल फिटनेस हासिल कर ले और वजन कम कर ले.

नीति में संशोधन की आवश्यकता

अदालत ने इसके बाद प्रतिवादी अधिकारियों को संबंधित चिकित्सा विशेषज्ञों के परामर्श से इसको लेकर स्थापित दिशानिर्देशों के प्रावधानों पर फिर से विचार करने को कहा और फिटनेस के लिए उचित समय देने पर विचार करने को कहा. पीठ ने इसके साथ ही अपने इस फैसले को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (एसएसबी) के अतिरिक्त महानिदेशक (चिकित्सा) के समक्ष रखने का निर्देश दिया.

याचिका का आधार

कोर्ट ने यह निर्देश एक महिला अभ्यर्थी की याचिका पर दी जिसके प्रसवावस्था के अंतिम चरण होने के आधार पर मेडिकल जांच रोक दी गई थी. उस महिला ने एसएसबी में ओबीसी कोटे के तहत कांस्टेबल (वॉशर मैन)-महिला के पद के लिए आवेदन किया था.

पदों के नामकरण में संशोधन की सिफारिश

पीठ ने इसके अलावा एसएसबी से पदों के नामकरण में संशोधन करने पर भी विचार करने को कहा, जो पहले केवल पुरुष उम्मीदवारों के लिए निर्धारित थे, लेकिन अब महिलाओं के लिए भी खुले हैं. साथ ही उम्मीद जाहिर की कि प्रतिवादी स्वयं इस पर गौर करेंगे.

कोर्ट ने स्वीकार की याचिका

कोर्ट ने इसके बाद महिला की याचिका स्वीकार कर लिया और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वह महिला की एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड से जांच कराए. अगर उसे फिट होने के बाद नियुक्त किया जाता है तो उसे वेतन केवल उस तारीख से लेने का अधिकार होगा, जिस दिन उसे नियुक्त किया जाएगा. एसएसबी ने कहा था कि गर्भावस्था के सभी मामलों में उम्मीदवारों को मेडिकल फिटनेस हासिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया जाता है. उसके बाद अगर उसका वजह निर्धारित वजन से कम होता है तो उसे नियुक्त कर लिया जाता है.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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