Delhi Fake Cancer Medicine Case: कैंसर मौत का दूसरा नाम है. इस बीमारी का इलाज जितना मुश्किल है, उतना ही महंगा भी है. मौत से जूझ रहे मरीजों को कंगाल बनाकर उन्हें मौत के मुंह में धकेलने का एक पूरा सिंडिकेट है और इसके तार विदेशों तक फैले हैं. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने ऐसे ही एक गिरोह का पर्दाफाश करते हुए एफआईआर दर्ज की है और इसके अब तक कम से कम 12 सदस्यों को अपनी गिरफ्त में लिया है.
क्राइम ब्रांच ने दिल्ली-एनसीआर के कुछ अस्पतालों में कैंसर और कीमोथेरेपी दवाओं के निर्माण और बिक्री में कथित तौर पर शामिल एक संगठित आपराधिक रैकेट की जांच की थी.
क्राइम ब्रांच के अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी मामले की जांच शुरू कर दी है. कैंसर की नकली दवाओं के उत्पादन और बिक्री करने वाले इस गिरोह का पता चलने के बाद बीते दिनों ED ने दिल्ली-एनसीआर में 10 जगहों पर छापेमारी की थी. इस गिरोह के खिलाफ ED ने Money Laundering के तहत केस दर्ज करने के बाद कई जगहों पर छापेमारी की है. छापेमारी में आरोपियों के दो ठिकानों से 65 लाख रुपये की नकदी मिली है और तमाम तरह के दस्तावेज भी बरामद हुए हैं. ईडी ने इन ठिकानों से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भी बरामद किए हैं, जिससे कई अन्य चौंकाने वाले खुलासे भी हुए हैं.
ईडी ने इस मामले में विफिल जैन, सूरज शाट, नीरज चौहान, परवेज मलिक, कोमल तिवारी, अभिनय और तुषार चौहान के ठिकानों पर छापेमारी की है. नीरज चौहान गुरुग्राम का रहने वाला है, जबकि बाकी के आरोपी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों के रहने वाले हैं. आरोपियों के निशाने पर दिल्ली के बाहर से आने वाले मरीज होते थे. ये खास तौर से हरियाणा, बिहार के अलावा नेपाल और अफ्रीकी देशों से आने वाले मरीजों को अपना शिकार बनाते थे.
ईडी की छापेमारी में एक आरोपी सूरज शाट के घर से 23 लाख रुपये की नकदी बीन बैग से बरामद की गई है. आरोपियों के पास से चल-अचल संपत्ति के बारे में कई आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं. ईडी ने दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की एफआईआर को आधार बनाकर ये मामला दर्ज किया है. आरोपियों ने कथित तौर पर खाली शीशियों में एंटी-फंगल दवा भरी और उन्हें भारत, चीन और अमेरिका में ‘जीवनरक्षक’ कैंसर दवाओं के रूप में 1 से 3 लाख रुपये प्रति शीशी (Vial) की दर पर बेचा था.
इस योजना के पीछे के मास्टरमाइंड विफिल जैन ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन उसने एक बड़ा रैकेट तैयार किया था. मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन और ऑन्कोलॉजी प्रबंधन की पृष्ठभूमि वाले नीरज चौहान ने रैकेट का विस्तार करने के लिए जैन के साथ हाथ मिलाया. दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कैंसर अस्पताल के पूर्व फार्मासिस्ट परवेज ने इस रैकेट के लिए खाली शीशियां जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं.
दो साल के व्यापक ऑपरेशन के बाद दिल्ली पुलिस ने नकली दवाओं के निर्माण के लिए इस्तेमाल किए गए फ्लैटों के केयरटेकर पश्चिम बंगाल के सूरज सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया था. अधिकारियों ने निर्माण स्थल और संदिग्धों के आवासों से कैप-सीलिंग मशीनें, खाली शीशियां, पैकेजिंग बक्से और नकदी भी जब्त की थी.
इस गिरोह के खिलाफ जानकारी मिलने के बाद क्राइम ब्रांच ने सबसे पहले कार्रवाई शुरू की थी. इसके लिए क्राइम ब्रांच ने एक टीम का भी गठन किया था. आरोपियों में दिल्ली के कुछ नामी अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं. ये लोग ही इस गिरोह के अहम सदस्य और ये ही इस गिरोह को इस्तेमाल में आ चुकी दवाओं की शीशी (Vial) को मुहैया कराते थे. अस्पताल में मरीजों के इस्तेमाल के बाद दवाओं की शीशी खाली होने के बाद ये लोग गिरोह के अन्य सदस्यों को उन्हें बेच दिया करते थे.
क्राइम ब्रांच की छापेमारी में सैकड़ों की तादाद में नकली दवाएं बरामद की गई थीं. तफ्तीश में सामने आया कि दवाएं कैंसर के मरीजों को बेची जाती थीं. इसके अलावा ये शीशियां ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं की थीं, जिनमें नकली दवा भरकर बेचा जाता था. आरोपियों में से 2 रोहिणी स्थित राजीव गांधी कैंसर अस्पताल के कर्मचारी हैं. पुलिस के अनुसार, पकड़े गए दोनों युवक कैंसर की नकली दवा और खाली बोतल सप्लाई करने का काम करते थे.
पुलिस ने मोतीनगर और गुरुग्राम के दो फ्लैट में छापा मारकर कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी की 7 विदेशी व 2 भारतीय यानी कुल 9 ब्रांड्स की नकली दवाइयां बरामद की थीं. जांच से पता चला था कि राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र में तैनात कीमोथेरेपी यूनिट का प्रभारी कोमल तिवारी व उसी यूनिट में तैनात नर्सिंग कर्मचारी अभिनव कोहली अपने साथियों को अस्पताल में मरीजों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी की दवाओं की खाली शीशियां मुहैया कराते थे.
इसके बदले ये दोनों अपने साथियों से प्रति खाली शीशी के चार से पांच हजार रुपये लेते थे. खाली शीशियों में ये लोग एंटी-फंगल दवा भरकर उसे महंगी दरों में बेच देते थे. एंटी फंगल दवा से शरीर को कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है तो इससे कोई फायदा भी नहीं होता है. यह पानी की तरह होता है.
जांच में खुलासा हुआ कि कैंसर की नकली दवाओं को बनाने और उसे देशभर में बेचने का एक पूरा सिंडिकेट है. पुलिस के मुताबिक, आरोपी अब तक 25 करोड़ रुपये की नकली दवाएं बेच चुके हैं. इस गिरोह के तार दिल्ली सहित देश के कई राज्यों के साथ-साथ विदेश में भी फैला हुआ है.
बिहार के मुजफ्फरपुर में कैंसर की नकली दवा सप्लाई करने के आरोप में आदित्य कृष्ण को दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार किया था. टीम दो दिनों से ही शहर में डेरा डाले थी. नीरज चौहान के साथ आदित्य कृष्णा सीधे तौर पर जुड़ा था और नकली दवाओं की सप्लाई करता था. नीरज से दवाएं खरीदने के बाद वो उसे पुणे और एनसीआर में पहुंचाता था. आदित्य कृष्णा की मुजफ्फरपुर में दवा की दुकान भी है और वहीं से उसने सप्लाई चेन बना रखा था.
क्राइम ब्रांच गिरोह में शामिल अन्य आरोपियों का पता लगा रही है. साथ ही यह भी पता लगा रही कि ये किस तरह और कब से नकली दवा बनाकर कारोबार कर रहे थे. वहीं ईडी इन आरोपियों के मनी ट्रेल के बारे में पता लगा रही है. यह गिरोह अफ्रीकी देशों के अलावा नेपाल जैसे देशों से इलाज के लिए आने वाले मरीजों को शिकार बनाते थे.
दिल्ली क्राइम ब्रांच को एक सूचना मिली थी कि नकली कैंसर की दवा का निर्माण मोतीनगर इलाके में हो रहा है. इसके बाद क्राइम ब्रांच ने एक टीम का गठन किया गया. टीम ने मोतीनगर, गुरुग्राम सहित चार स्थानों पर छापेमारी कर 1.75 करोड़ रुपये की चार ब्रांड्स के 140 इंजेक्शन को शीशी बरामद की. साथ ही 50 हजार नकदी समेत कई खाली शीशियां भी मिली थीं. साउथ सिटी गुरुग्राम स्थित नीरज चौहान के घर से नकली कैंसर इंजेक्शनों की 137 शीशी, 519 खाली शोशी सहित सात अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के 137 इंजेक्शन मिले थे, जिसकी कीमत 2.15 करोड़ आंकी गई.
5000 रुपये की शीशी और 100 रुपये की नकली दवा का बड़ा खेल करने वाले की हकीकत सामने आने पर हर कोई दहल गया. गुरुग्राम साउथ सिटी के एक फ्लैट में दवाओं का स्टॉक रखा गया था. पुलिस को अंदेशा है कि इस गैंग के जरिये इनके बड़े नेटवर्क तक पहुंचने में मदद मिल सकती है. ये गैंग कितना बड़ा है. इसने कहां-कहां दवाएं सप्लाई की. किन-किन लोगों को दवाएं दीं, इन बातों का पता लगाया जा रहा है. कैंसर की दवाओं का काला कारोबार महज दिल्ली-एनसीआर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके तार देशभर में फैला है. इस गिरोह का भंडाफोड़ के बाद अब इसके असली कारोबारी तक पहुंचने की तैयारी चल रही है. फिलहाल मामले की जांच जारी है.
ये गैंग बेहद ही शातिराना तरीके से काम कर रहा था. तीन स्तरों पर इस काम को पूरा किया जाता था. सबसे पहले असली दवाओं की खाली शीशी को इकट्ठा किया जाता था और इस काम में अस्पतालों में काम करने वाले लोगों को शामिल किया गया था, जो मामूली कीमत पर इस्तेमाल हो चुकी दवा की शीशी नकली दवा बनाने वाले गैंग को उपलब्ध कराता था.
फिर उसी शीशी में टॉक्सिक दवाओं को भर दिया जाता था. अब इस पर ब्रांडेड कंपनियों के स्टीकर सील मुहर लगाकर पैकिंग की जाती थी. इस तरह से तैयार कैंसर की नकली दवाओं को बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा था. इसे तैयार करने में जहां बमुश्किल से 100 रुपये खर्च होता था, वहीं इसकी लोगों से 3 लाख रुपये तक की रकम ऐंठी जाती थी. असली कीमत पर लोग इंजेक्शन और दवाएं ले रहे थे और लेकिन मरीजों को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि वो जो दवा ले रहे हैं वो असल में जहर से कम नहीं है.
-भारत एक्सप्रेस
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